Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 237
________________ २०२] [नन्दीसूत्र अनीति, मांस तथा अंडे आदि भक्षण के परिणाम, परस्त्रीगमन, वेश्यागमन, रिश्वतखोरी तथा चोरी आदि दुष्कर्मों के कुफलों का उदाहरणों के द्वारा वर्णन किया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि जीव इन सब पापों के कारण किस प्रकार नरक और तिर्यंच गतियों में जाकर नाना प्रकार की दारुणतर यातनाएँ पाता है, जन्म-मरण करता रहता है तथा दुःख-परम्परा बढ़ाता जाता है। अज्ञान के कारण जीव पाप करते समय तो प्रसन्न होता है पर जब उनके फल भोगने का समय आता है, तब दीनतापूर्वक रोता और पश्चात्ताप करता है। ९४ से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, वणसंडाई, चेइआई, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअ-पारलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वजाओ, परिआगा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा अंतकिरिआओ, आघविजंति। ९४–प्रश्न—सुख विपाकश्रुत किस प्रकार का है ? उत्तर—सुखविपाक श्रुत में सुखविपाकों के अर्थात् सुखरूप फल को भोगने वाले जीवों के नगर, उद्यान, वनखण्ड, व्यन्तरायतन, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोकपरलोक से सम्बन्धित ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या (दीक्षा), दीक्षापर्याय, श्रुत का ग्रहण, उपधानतप, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, सुखों की परम्परा, पुनः बोधिलाभ, अन्तक्रिया इत्यादि विषयों का वर्णन है। विवेचन उपर्युक्त पाठ में सुखविपाक के विषय का विवरण दिया गया है। विपाकसूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध का नाम सुखविपाक है। इस अंग के दस अध्ययन हैं, जिनमें उन भव्य एवं पुण्यशाली आत्माओं का वर्णन है, जिन्होंने पूर्वभव में सुपात्रदान देकर मनुष्य भव की आयु का बंध किया और मनुष्यभव प्राप्त करके अतुल वैभव प्राप्त किया। किन्तु मनुष्यभव को भी उन्होंने केवल सांसारिक सुखोपभोग करके ही व्यर्थ नहीं गँवाया, अपितु अपार ऋद्धि का त्याग करके संयम ग्रहण किया और तप-साधना करते हुए शरीर त्यागकर देवलोकों में देवत्व की प्राप्ति की। भविष्य में वे महाविदेह क्षेत्र में निर्वाण पद प्राप्त करेंगे। यह सब सुपात्रदान का माहात्म्य है। सूत्र में सुबाहुकुमार की कथा विस्तारपूर्वक दी गई है, शेष सब अध्ययनों में संक्षिप्त वर्णन है। इन कथाओं से सहज ही ज्ञात हो जाता है कि पुण्यानुबन्धी पुण्य का फल कितना कल्याणकारी होता है। सुखविपाक में वर्णित दस कुमारों की कथाओं के प्रभाव से भव्य श्रोताओं अथवा अध्येताओं के जीवन में भी शनैः-शनैः ऐसे गुणों का आविर्भाव हो सकता है, जिनसे अन्त में सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करते हुए वे निर्वाण पद की प्राप्ति कर सकें। ९५-विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेन्जा वेढा, संखेन्जा सिलोगा, संखेन्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ।

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