Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 247
________________ २१२] [नन्दीसूत्र इस प्रकार यह पूर्वगत दृष्टिवाद अङ्ग-श्रुत का वर्णन हुआ। (४) अनुयोग १०७-से किं तं अणुओगे? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा (१) मूलपढमाणुओगे (२) गंडिआणुओगे य। से किं तं मूलपढमाणुओगे ? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि, अभिसेआ, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पाओ, तित्थपवत्तणाणि अ, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिण-मणपज्जव-ओहिनाणी, सम्मत्तसुअनाणिणो अ, वाई, अणुत्तरगई अ, उत्तरवेउव्विणो.अ मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहोदेसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तिआई भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे तिमिरओघविप्पमुक्के, सुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते। एवमन्ने अ एवमाइभावा मूलपढमाणुओगे कहिआ। से तं मूलपढमाणुओगे। १०७—प्रश्न— भगवन्! अनुयोग कितने प्रकार का है ? उत्तर—वह दो प्रकार का है, यथा—मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या वर्णन है ? मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवन्तों के पूर्व भवों का वर्णन, देवलोक में जाना, देवलोक का आयुष्य, देवलोक से च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, देवादिकृत जन्माभिषेक, तथा राज्याभिषक, प्रधान राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या (मुनि-दीक्षा) तत्पश्चात् घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति करना, शिष्य-समुदाय, गण, गणधर, आर्यिकाएँ, प्रवर्तिनीयां, चतुर्विध संघ का परिमाण-संख्या, जिन-सामान्यकेवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी एवं सम्यक्श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तरगति और उत्तरवैक्रियधारी मुनि यावन्मात्र मुनि सिद्ध हुए, मोक्ष-मार्ग जैसे दिखाया, जितने समय तक पादपोपगमन संथारा किया, जिस स्थान पर जितने भक्तों का छेद किया, अज्ञान अंधकार के प्रवाह से मुक्त होकर जो महामुनि मोक्ष के प्रधान सुख को प्राप्त हुए इत्यादि। इनके अतिरिक्त अन्य भाव भी मूल प्रथमानुयोग में प्रतिपादित किये गए हैं। यह मूल प्रथमानुयोग का विषय हुआ। विवेचन –उक्त सूत्र में अनुयोग का वर्णन किया गया है। जो योग अनुरूप अथवा अनुकूल हो वह अनुयोग कहलाता है। जो सूत्र के साथ अनुरूप सम्बन्ध रखता है, वह अनुयोग है। अनुयोग के दो प्रकार हैं मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। - मूलप्रथमानुयोग में तीर्थंकरों के विषय में विस्तृत रूप से निरूपण किया गया है। सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर तीर्थंकर पद की प्राप्ति तक उनके भवों का तथा जीवनचर्या का वर्णन किया गया

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