Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ २१४] [नन्दीसूत्र इस प्रकार अनुयोग का विषय वर्णित हुआ। स्मरण रखना चाहिये कि अनुयोग के दोनों प्रकार इतिहास से सम्बन्धित हैं। (५)चूलिका १०९–से किं तं चूलिआओ ? चूलिआओ आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिआओ सेसाई पुव्वाइं अचूलिआई। से तं चूलिआओ। १०९-चूलिका क्या है ? उत्तर—आदि के चार पूर्वो में चूलिकाएँ हैं, शेष पूर्वो में चूलिकाएँ नहीं हैं। यह चूलिकारूप दृष्टिवाद का वर्णन है। विवेचन—चूलिका अर्थात् चूला, शिखर को कहते हैं। जो विषय परिकर्म, सूत्र, पूर्व, तथा अनुयोग में वर्णित नहीं है, उस अवर्णित विषय का वर्णन चूला में किया गया है। चूर्णिकार ने कहा "दिट्ठिवाये जं परिकम्म-सुत्तपुव्व-अणुओगे न भणियं तं चूलासु भणियं ति।" चूलिका आधुनिक काल में प्रचलित परिशिष्ट के समान है। इसलिए दृष्टिवाद के पहले चार भेदों का अध्ययन करने के पश्चात् ही इसे पढ़ना चाहिये। इसमें उक्त-अनुक्त विषयों का संग्रह है। यह दृष्टिवाद की चूला है। आदि के चार पूर्यों में चूलिकाओं का उल्लेख है, शेष में नहीं। इस पाँचवें अध्ययन में उन्हीं का वर्णन है। चूलिकाएँ उन-उन पूर्वो का अंग हैं। चूलिकाओं में क्रमशः ४, १२, ८, १० इस प्रकार ३४ वस्तुएँ हैं। श्रुतरूपी मेरु चूलिका से ही सुशोभित है अतः इसका वर्णन सबके बाद किया गया है। दृष्टिवाद का उपसंहार ११०—दिट्ठिवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ।। से अंगट्ठयाए बारसमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, चोइसपुव्वाइं, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चूलवत्थू, संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडिआओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहुडिआओ, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेन्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति, पण्णविजंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करण परूवणा आधविज्जति। से तं दिट्ठिवाए।॥ सूत्र ५६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253