Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 238
________________ श्रुतज्ञान ] [ २०३ सेणं अंगट्टयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुअक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिज्जाई, पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड- निबद्ध-निकाइआ जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्र्ज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं विवागसुयं । ॥ सूत्र ५६ ॥ ९५ – विपाकश्रुत में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियां, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । अंगों की अपेक्षा से वह ग्यारहवाँ अंग है । इसके दो श्रुतस्कंध, बीस अध्ययन, बीस उद्देशनकाल और बीस समुद्देशनकाल हैं। पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं, संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत - कृत - निबद्ध-निकाचित जिनप्ररूपित भाव हेतु आदि से निर्णीत किए गए हैं, प्ररूपित किए गए हैं, दिखलाए गए हैं, निदर्शित और उपदर्शित किए गए हैं। विपाकश्रुत का अध्ययन करनेवाला एवंभूत आत्मा ज्ञाता तथा विज्ञाता बन जाता है । इस तरह से चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। इस प्रकार यह विपाकश्रुत का विषय वर्णन किया गया । (१२) श्री दृष्टिवादश्रुत ९६ – से किं तं दिट्ठिवाए ? दिट्ठिवाए णं सव्वंभावपरूवणा आघविज्जड़ से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा (१) परिकम्मे (२) सुत्ताइं ( ३ ) पुव्ागए (४) अणुओगे ( ५ ) चूलिआ । ९६ –– प्रश्न—–— दृष्टिवाद क्या है? उत्तर— दृष्टिवाद — सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है । संक्षेप में वह पाँच प्रकार का है, यथा – (१) परिकर्म ( २ ) सूत्र (३) पूर्वगत (४) अनुयोग और (५) चूलिका । विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में दृष्टिवाद का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । यह अङ्गश्रुत जैन आगमों में सबसे महान् और महत्त्वपूर्ण है, किन्तु वर्तमान काल में उपलब्ध नहीं है। इसका विच्छेद हुए लगभग पन्द्रह सौ वर्ष हो चुके हैं 'दिट्ठिवाय' शब्द प्राकृत भाषा का है और संस्कृत में इसका रूप 'दृष्टिवाद' या 'दृष्टिपात' होता है । दृष्टि शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, नेत्रशक्ति, ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, नय आदि । संसार में जितने दर्शन हैं, जितना श्रुतज्ञान है और नयों की जितनी भी पद्धतियाँ हैं, उन सभी का समावेश दृष्टिवाद में हो जाता है । प्रत्येक वह शास्त्र, जिसमें दर्शन का विषय मुख्यरूप से वर्णित 1

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