Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 227
________________ १९२] [नन्दीसूत्र बारहवाँ, चौदहवाँ, अठारहवां और बीसवाँ, यह सभी शतक दस-दस उद्देशकों में विभाजित हैं। पन्द्रहवें शतक में उद्देशक भेद नहीं है। सूत्रों की संख्या आठ सौ सड़सठ है। प्रश्नोत्तर के रूप में विषयों का विवेचन किया गया है। ___इस अङ्गसूत्र में सभी प्रश्न गौतम स्वामी के किए हुए नहीं हैं अपितु इन्द्रों के, देवताओं के, मुनियों के, संन्यासियों के तथा श्रावकादिकों के भी हैं और उत्तर भी केवल भगवान् महावीर के दिये हुए नहीं, वरन् गौतम आदि मुनिवरों के हैं और कहीं-कहीं श्रावकों के दिये हुए भी हैं। यह सूत्र अन्य सूत्रों से विशाल हैं। इसमें पण्णवणा, जीवाभिगम, उववाई, राजप्रश्नीय, आवश्यक, नन्दी तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि सूत्रों के नामोल्लेख व इनके उद्धरण भी दिये गये हैं। सैद्धान्तिक, ऐतिहासिक, द्रव्यानुयोग तथा चरण-करणानुयोग की भी इसमें विस्तृत व्याख्या है। बहुत से विषय ऐसे भी हैं जिन्हें न समझ पाने से जिज्ञासु को भ्रम या सन्देह हो सकता है अतः उन्हें सूत्रों के विशेषज्ञों से समझना चाहिए। (६) श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र ८८-से किं तं नायाधम्मकहाओ ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई, उजाणाई चेइयाई, वणसंडा, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाइओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ अ आघविज्जंति। ___ दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्म-कहाए पंच-पंच अक्खाइआसयाई, एगमेगाए अक्खाइआए पंच-पंचउवक्खाइआसयाई, एगमेगाए उवक्खाइआए पंच-पंच अक्खाइया-उवक्कखाइआसयाई, एवमेव सपुव्वावरेणं अद्भुट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति त्ति समक्खायं। नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निजुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए छठे अंगे, दो सुअक्खंधा, एगुणवीसं अज्झयणा, एगुणवीसं उद्देसणकाला, एगुणवीसं समुद्देसणकाला, संखेन्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेन्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ, जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पनविजंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिन्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ। से त्तं नायाधम्मकहाओ। ॥ सूत्र ५१॥ ८८-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र किस प्रकार है—उसमें क्या वर्णन है?

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