Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 232
________________ श्रुतज्ञान] [१९७ कैवल्य होते ही निर्वाण पद प्राप्त कर लिया, उनके जीवन का वर्णन इसमें दिया गया है। अन्तकृत् केवली भी उन्हें ही कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में आठ वर्ग हैं, प्रथम और अन्तिम वर्ग में दस-दस अध्ययन हैं, इसी दृष्टि से अन्तकृत् के साथ दशा शब्द का प्रयोग किया गया है। इसमें भगवान् अरिष्टनेमि और महावीर स्वामी के शासनकाल में होने वाले अन्तकृत् केवलियों का ही वर्णन है। अरिष्टनेमि के समय में जिन नरनारियों ने, यादववंशीय राजकुमारों और श्रीकृष्ण की रानियों ने कर्म-मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त किया उनका वर्णन है तथा छठे वर्ग से लेकर आठवें तक में श्रेष्ठी, राजकुमार तथा राजा श्रेणिक की महारानियों के तपःपूत जीवन का उल्लेख है जिन्होंने संयम धारण करके घोर तपस्या एवं उत्कृष्ट चारित्र की आराधना करते हुए अन्त में संथारे के द्वारा कर्म-क्षय करके सिद्ध-पद की प्राप्ति की। अन्तिम श्वासोच्छ्वास में कैवल्य प्राप्त करके मोक्ष जाने वाली नब्बे आत्माओं का इसमें वर्णन है। सूत्र की शैली ऐसी है कि एक का वर्णन करने पर शेष वर्णन उसी प्रकार से आया है। जहाँ आयु, संथारा अथवा क्रियानुष्ठान में विविधता या विशेषताएँ थीं, उसका उल्लेख किया गया है। सामान्य वर्णन सभी का एक जैसा ही है। अध्ययनों के समूह का नाम वर्ग है, शेष वर्णन भावार्थ में दिया जा चुका है। (९)श्री अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र से किं तं अणुत्तरोववाइअदसाओ ? अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोववाइआणं नगराई, उजाणाई, चेइआइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअपरलोइआइड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वजाओ, परिआगा, सुअपरिग्गहा तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ आघविजंति। ___अणुत्तरोववाइअदसासु णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगद्दारा, संखेन्जा वेढा, संखेन्जा सिलोगा, संखेन्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेन्जाओ संगहणीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्ठयाए नवमे अंगे, एगे सुअखंधे तिण्णि वग्गा, तिण्णि उद्देसणकाला, तिणि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पनविजंति, परूविजंति, दंसिज्जंति, निदंसिजंति, उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ। से तं अणुत्तरोववाइअदसाओ ॥ सूत्र ५४॥ प्रश्न—भगवन्! अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र में क्या वर्णन है ? उत्तर—अनुरौपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले पुण्यशाली आत्माओं के

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