Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ श्रुतज्ञान] [१७७ (१) आचारांगसूत्र (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र (३) स्थानाङ्गसूत्र (४) समवायाङ्गसूत्र (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवतीसूत्र (६) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र (७) उपासकदशाङ्गसूत्र (८) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र (९) अनुत्तरौपातिकदशाङ्गसूत्र (१०) प्रश्नव्याकरणसूत्र (११) विपाकसूत्र (१२) दृष्टिवादाङ्गसूत्र। विवेचन—इस सूत्र में अङ्गप्रविष्ट सूत्रों का नामोल्लेख किया गया है। सूत्रकार अग्रिम सूत्रों में क्रमशः बतायेंगे कि किस सूत्र में क्या-क्या विषय है। इससे जिज्ञासुओं को सभी अङ्ग सूत्रों का सामान्यतया ज्ञान हो सकेगा। द्वादशांगी गणिपिटक ८३ से किं तं आयारे ? आयारेणं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोअर-विणय-वेणइअ-सिक्खा-भासा-अभासाचरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जंति। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा (१) नाणायारे (२) दंसणायारे (३) चरित्तायारे (४) तपायारे (५) वीरियायारे। आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखिन्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निन्जुत्तीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। सेणं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे, दो सुअक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, साय-कड-निबद्ध-निकाइआ, जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पनविनंति, परूविजंति, दंसिज्जंति, निदंसिजंति, उवदंसिन्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। से तं आयारे। ॥ सूत्र० ४६॥ ८३–आचाराङ्गश्रुत किस प्रकार का है ? आचाराङ्ग में. बाह्य आभ्यंतर परिग्रह से रहित श्रमण निर्ग्रन्थों का आचार, गोचर-भिक्षा के ग्रहण करने की विधि, विनय-ज्ञानादि की विनय, विनय का फल कर्मक्षय आदि, ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा, तथा शिष्य को सत्य और व्यवहार भाषा बोलने योग्य है और मिश्र तथा असत्य भाषा त्याज्य है, चरण-व्रतादि, करण-पिण्डविशुद्धि आदि, यात्रा-संयम का निर्वाह और नाना प्रकार धारण करके विचरण करना इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है। वह आचार संक्षेप में पाँच प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे (१) ज्ञानाचार (२) दर्शनाचार (३) चारित्राचार (४) तपाचार और (५) वीर्याचार । आचारश्रुत में सूत्र और अर्थ से परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ-छंद संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ वर्णित हैं। आचाराङ्ग अर्थ से प्रथम अंग है। उसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं। पच्यासी उद्देशनकाल हैं, पच्यासी समुद्देशनंकाल हैं। पदपरिमाण से अठारह हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253