Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ १८४] [ नन्दीसूत्र से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं सूयगडे | ॥ सूत्र ४७ ॥ ८४— प्रश्न –—–— सूत्रकृताङ्गश्रुत में किस विषय का वर्णन है ? उत्तर— सूत्रकृतांग में षड्द्रव्यात्मक लोक सूचित किया जाता है, केवल आकाश द्रव्यमय अलोक सूचित किया जाता है। लोकालोक दोनों सूचित किये जाते हैं । इसी प्रकार जीव, अजीव की सूचना दी जाती है । स्वमत, परमत और स्व- परमत की सूचना दी जाती है । सूत्रकृतांग में एक सौ अस्सी क्रियावादियों के, चौरासी अक्रियावादियों के, सड़सठ अज्ञानवादियों और बत्तीस विनयवादियों के, इस प्रकार तीन सौ त्रेसठ पाखंडियों का निराकरण करके स्वसिद्धांत की स्थापना की जाती है । सूत्रकृताङ्ग में परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । यह अङ्ग अर्थ की दृष्टि से दूसरा है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध और तेईस अध्ययन हैं । तेतीस उद्देशनकाल और तेतीस समुद्देशनकाल हैं । सूत्रकृतांग का पद-परिमाण छत्तीस हजार है। इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं । धर्मास्तिकाय आदि शाश्वत, प्रयत्नजन्य या प्रकृतिजन्य, निबद्ध एवं हेतु आदि द्वारा सिद्ध किए गए जिन-प्रणीत भाव कहे जाते हैं तथा इनका प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। सूत्रकृतांग का अध्ययन करने वाला तद्रूप अर्थात् सूत्रगत विषयों में तल्लीन होने से तदाकार आत्मा, ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार से इस सूत्र में चरण - करण की प्ररूपणा कही जाती 1 यह सूत्रकृतांग का वर्णन है । विवेचन—'सूच्' सूचायां धातु से 'सूत्रकृत' शब्द बनता है। इसका अर्थ है, जो समस्त जीवादि पदार्थों का बोध कराता है वह सूचकृत है । अथवा सूचनात् सूत्रम्, जो मोहनिद्रा में सुप्त या पदभ्रष्ट प्राणियों को जगाकर सन्मार्ग बताए, वह सूत्रकृत कहलाता है। या, जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों को सूत्र यानी धागे में पिरोकर एकत्रित किया जाता है, उसी प्रकार जिसके द्वारा नाना विषयों को तथा मत-मतान्तरों की मान्यताओं को क्रमबद्ध किया जाता है, उसे भी सूत्रकृत कहते हैं । सूत्रकृतांग में विभिन्न विचारकों की मान्यताओं का दिग्दर्शन कराया गया है। सूत्रकृत में लोक, अलोक तथा लोकालोक के स्वरूप का भी प्रतिपादन किया है। शुद्ध जीव परमात्मा है, शुद्ध अजीव जड़ पदार्थ है और संसारी जीव, शरीर से युक्त होने के कारण जीवाजीव कहलाते हैं । कोई द्रव्य न अपना स्वरूप छोड़ता है और न ही दूसरे के स्वरूप अपनाता है। यही द्रव्य का द्रव्यत्व है ।. उक्त सूत्र में मुख्तया स्वदर्शन, अन्यदर्शन तथा स्व-परदर्शनों का विवेचन किया गया है। अन्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253