Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 194
________________ श्रुतज्ञान] [१५९ श्रुतज्ञान विशेष, मतिज्ञान मूक है और श्रुतज्ञान मुखर, मतिज्ञान अनक्षर है और श्रुतज्ञान अक्षरपरिणत होता है। जब इन्द्रिय एवं मन से अनुभूति रूप ज्ञान होता है, तब वह मतिज्ञान कहलाता है और जब वह अक्षर रूप में स्वयं अनुभव करता है या दूसरे को अपना अभिप्राय किसी प्रकार की चेष्टा से बताता है, तब वह अनुभव और चेष्टा आदि श्रुतज्ञान कहा जाता है। ये दोनों ही ज्ञान सहचारी हैं। जीव का स्वभाव ऐसा है कि उसका उपयोग एक समय में एक ओर ही लग सकता है, एक साथ दोनों ओर नहीं। अनक्षरश्रुत—जो शब्द अभिप्राययुक्त एवं वर्णात्मक न हों, केवल ध्वनिमय हों, वे अनक्षरश्रुत कहलाते हैं। व्यक्ति दूसरे को अपनी कोई विशेष बात समझाने के लिये इच्छापूर्वक संकेत सहित अनक्षर शब्द करता है, वह अनक्षरश्रुत होता है। जैसे लंबे-लंबे श्वास लेना और छोड़ना, छींकना, खाँसना, हुंकार करना तथा सीटी, घंटी, बिगुल आदि बजाना। बुद्धिपूर्वक दूसरों को चेतावनी देने के लिए, हित-अहित जताने के लिये, प्रेम, द्वेष अथवा भय प्रदर्शित करने के लिये या अपने आनेजाने की सूचना देने के लिये जो भी शब्द या संकेत किये जाते हैं वे सब अनक्षरश्रुत में आते हैं। बिना प्रयोजन किया हुआ शब्द अनक्षरश्रुत नहीं होता। उक्त ध्वनियों को भावश्रुत का कारण होने से द्रव्यश्रुत कहा जाता है। संज्ञि-असंज्ञिश्रुत ७५-से किं तं सण्णिसुअं? सण्णिसुअंतिविहं पण्णत्तं, तं जहा—कालिओवएसेणं हेऊवएसेणं दिट्ठिवाओवएसेणं। से किं तं कालिओवएसेणं ? कालिओवएसेणं जस्स णं जत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमांसा, से णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं असण्णीति लब्भइ, से त्तं कालिओवएसेणं। से किं तं हेऊवएसेणं ? । हेऊवएसेणं-जस्स णं अत्थि अभिसंधारणपुव्विआ करणसत्ती, से णं सण्णीत्ति लब्भइ। जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुविआ करणसत्ती, से णं असण्णीत्ति लब्भई। से तं हेऊवएसेणं। से किं तं दिट्ठिवाओवएसेणं ? दिट्ठिवाओवएसेणं सण्णिसुअस्स खओवसमेणं सण्णी लब्भइ। असण्णिसुअस्स खओवसमेणं असण्णी लब्भइ। सेत्तं दिट्ठिवाओवएसेणं, सेत्तं सण्णिसुअं, से तं असण्णिसुअं। ॥ सूत्र ४०॥ ७५–संज्ञिश्रुत कितने प्रकार का है ?

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