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[नन्दीसूत्र से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं 'फासे' त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस फासओ' त्ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ 'अमुगे एस सुफासे'। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ धारेइ संखेन्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं।
से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा, तेणं 'सुमिणे' त्ति उग्गहिए, नो चेव. णं जाणइ 'के वेस सुमिणे' त्ति? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ 'अमुगे एस सुमिणे'। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं होइ, तओ धारणं पविसइ, तओ धारेइ संखेन्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं। से त्तं मल्लगदिटुंतेणं।
६४ जैसे किसी परुष ने अव्यक्त शब्द को सनकर 'यह कोई शब्द है' इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु वह यह नहीं जानता कि 'यह शब्द क्या-किसका है?' तब वह ईहा में प्रवेश करता है, फिर यह जानता है कि 'यह अमुक शब्द है।' फिर अवाय अर्थात् निश्चय ज्ञान में प्रवेश करता है। तत्पश्चात् उसे उपगत हो जाता है और फिर वह धारणा में प्रवेश करता है, और उसे संख्यात काल और असंख्यातकाल पर्यन्त धारण किये रहता है।
जैसे-अज्ञात नाम वाला कोई व्यक्ति अव्यक्त अथवा अस्पष्ट रूप को देखे, उसने यह कोई 'रूप है' इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु वह यह नहीं जान पाया कि 'यह क्या-किसका रूप है?' तब वह ईहा में प्रविष्ट होता है तथा छानबीन करके यह 'अमुक रूप' है इस प्रकार जानता है। तत्पश्चात अवाय में प्रविष्ट होकर उपगत हो जाता है, फिर धारणा में प्रवेश करके संख्यात काल अथवा असंख्यात काल तक धारणा कर रखता है।
जैसे—अज्ञातनामा कोई पुरुष अव्यक्त गंध को सूंघता है, उसने यह "यह कोई गंध है" इस प्रकार ग्रहण किया, किन्तु वह यह नहीं जानता कि 'यह क्या-किस प्रकार की गंध है?' तदनन्तर ईहा में प्रवेश करके जानता है कि 'यह अमुक गंध है।' फिर अवाय में प्रवेश करके गंध से उपगत हो जाता है। तत्पश्चात् धारणा करके उसे संख्यात व असंख्यात काल तक धारण किये रहता है।
जैसे कोई व्यक्ति किसी रस का आस्वादन करता है। वह 'यह रस को ग्रहण करता है' किन्तु यह नहीं जानता कि 'यह क्या-कौन सा रस है ?' तब ईहा में प्रवेश करके वह जान लेता है कि 'यह अमुक प्रकार का रस है।' तत्पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है। तब उसे उपगत हो जाता है। तदनन्तर धारणा करके संख्यात एवं असंख्यात काल तक धारण किये रहता है।
जैसे—कोई पुरुष अव्यक्त स्पर्श को स्पर्श करता है, उसने 'यह कोई स्पर्श है' इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु 'यह नहीं जाना कि''यह स्पर्श क्या-किस प्रकार का है?' तब ईहा में प्रवेश करता है और जानता है कि "यह अमुक का स्पर्श है।" तत्पश्चात् अवाय में प्रवेश कर वह उपगत होता है। फिर धारणा में प्रवेश करने के बाद संख्यात अथवा असंख्यात काल पर्यन्त धारण किये रहता है।
जैसे कोई पुरुष अव्यक्त स्वप्न को देखे, उसने यह स्वप्न है' इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु