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मतिज्ञान]
[९९ निश्चित की गई रात्रि में शिक्षक ने उनके साथ मंत्रोच्चारण करते हुए गोबर के सब पिण्ड नदी में प्रवाहित कर दिये और जब वे निश्चित स्थान पर पहुंचे तो कलाचार्य के बन्धुबान्धव उन्हें सुरक्षित निकालकर अपने घर ले गये।
कुछ समय बीतने पर एक दिन वह शिक्षक अपने शिष्यों और उनके सगे-सम्बन्धियों के समक्ष मात्र शरीर पर वस्त्र पहनकर विदाई लेकर अपने ग्राम की ओर चल दिया। यह देखकर लड़कों के अभिभावकों ने समझ लिया कि इसके पास कुछ नहीं है। अतः उसे लूटने और मारने का विचार छोड़ दिया। शिक्षक अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि के फल-स्वरूप सकुशल अपने घर पहुंच गया।
(२५) अर्थशास्त्र-नीतिशास्त्र—एक व्यक्ति की दो पत्नियाँ थी। दोनों में से एक बाँझ दी तथा दूसरी के एक पुत्र था। दोनों माताएं पुत्र का पालन-पोषण समान रूप से करती थीं। अतः लड़के को यह मालूम ही नहीं था कि उसकी सगी माता कौन है? एक बार वह वणिक अपनी दोनों पत्नियों और पुत्र को साथ लेकर भगवान् सुमतिनाथ के नगर में गया किन्तु वहाँ पहुंचने के कछ समय पश्चात ही उसका देहान्त हो गया। उसके मरणोपरान्त उसकी दोनों पत्नियों में सम्पर्ण धन-वैभव तथा पुत्र के लिये विवाद होने लगा, क्योंकि पुत्र पर जिस स्त्री का अधिकार होगा गृह-स्वामिनी बन सकती थी। कुछ भी निर्णय न होने से विवाद बढ़ता चला गया और राज-दरबार तक पहुंचा। वहाँ भी फैसला कुछ नहीं हो पाया। इसी बीच इस विवाद को महारानी सुमंगला ने भी सुना। वह गर्भवती थी। उसने दोनों वणिक-पत्नियों को अपने समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया। उनके आने पर कहा—'कुछ समय पश्चात् मेरे उदर से पुत्र जन्म लेगा और वह अमुक अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारा विवाद निपटायेगा। तब तक तुम दोनों यहीं आनन्दपूर्वक रहो।'
भगवान् सुमतिनाथ की माता, सुमंगला देवी की यह बात सुनकर वणिक की बन्ध्या पत्नी ने सोचा—'अभी तो महारानी के पुत्र का जन्म भी नहीं हुआ। पुत्र जन्म लेकर बड़ा होगा तब तक तो यहाँ आनन्द से रह लिया जाये। फिर जो होगा देखा जायेगा।' यह विचारकर उसने तुरन्त ही सुमंगला देवी की बात को स्वीकार कर लिया। यह देखकर महारानी सुमंगला ने जान लिया कि बच्चे की माता यह नहीं है। उसे तिरस्कृत कर वहाँ से निकाल दिया तथा बच्चा असली माता को सौंपकर उसे गृह-स्वामिनी बना दिया।
यह उदाहरण माता सुमंगला देवी की अर्थशास्त्रविषयक औत्पत्तिकी बुद्धि का है।
(२६) इच्छायमहं—किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसकी मृत्यु हो गई। सेठानी बड़ी परेशानी का अनुभव करने लगी, क्योंकि सेठ के द्वारा ब्याज आदि पर दिया हुआ रुपया वह वसूली नहीं कर पाती थी। तब उसने सेठ के एक मित्र को बुलाकर उससे कहा—'महानुभाव! कृपया आप मेरे पति द्वारा ब्याज आदि पर दिये गये रुपये वसूल कर मुझे दिलवा दें।' सेठ का मित्र बड़ा स्वार्थी था। वह बोला-'अगर तुम मुझे उस धन में से हिस्सा दो तो मैं रुपया वसूल कर लाऊँगा।' सेठानी ने इस बात को स्वीकार करते हुए उत्तर दिया—'जो आप चाहते हों वह मुझे दे देना।' तत्पश्चात्