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[ नन्दीसूत्र
ने खोटे रुपये निकालकर नोली में असली रुपये भरे, केवल उतने शेष रहे जितनी जगह काटकर सी दी गई थी। न्यायकर्ता ने इससे अनुमान लगाया कि अवश्य ही इसमें खोटे रुपये डाले गये तथा साहूकार को न्यायकर्त्ता ने यथोचित दंड देकर अपनी औत्पत्तिकी बुद्धिका परिचय दिया ।
(२१) नाणक—एक व्यक्ति ने किसी सेठ के यहाँ एक हजार सुवर्ण मोहरों से भरी हुई थैली मुद्रित करके धरोहर रूप में रख दी और देशान्तर में चल गया । कुछ समय बीत जाने पर सेठ ने थैली में से शुद्ध सोने की मोहरें निकालकर नकली मोहरें भर दीं तथा पुनः थैली सीकर मुद्रित कर दी। कई वर्ष पश्चात् जब मोहरों का स्वामी आया तो सेठ ने थैली उसे थमा दी। व्यक्ति ने अपनी थैली पहचानी और अपने नाम से मुद्रित भी देखकर घर लौट आया । किन्तु घर आकर जब मोहरें निकाली तो पाया कि थैली में उसकी असली मोहरें नहीं अपितु नकली मोहरें भरी थीं। वह घबराकर सेठ के पास आया। बोला- 'सेठजी ! मेरी मोहरें असली थीं किन्तु इसमें से तो नकली निकली हैं ।' सेठ ने उत्तर दिया- 'मैं असली नकली कुछ नहीं जानता। मैंने तो तुम्हारी थैली जैसी की तैसी वापिस कर दी ।' पर वह व्यक्ति हजार मोहरों की हानि कैसे सह सकता था ! वह न्यायालय जा पहुँचा।
न्यायाधीश ने दोनों के बयान लिये तथा सारी घटना समझी। उसने थैली के मालिक से पूछा- 'तुमने किस वर्ष सेठ के पास थैली रखी थी?' व्यक्ति ने वर्ष और दिन बता दिया। तब न्यायाधीश ने मोहरों की परीक्षा की तो पाया कि भरी हुई मोहरें नई बनी थीं। वह समझ गया कि मोहरें बदली गई हैं। उसने सेठ से असली मोहरें मंगवाकर उस व्यक्ति को दिलवाई तथा दण्ड भी दिया । इस प्रकार न्यायाधीश ने अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि से सही न्याय किया ।
(२२) भिक्षु किसी व्यक्ति ने एक संन्यासी के पास आकर एक हजार सोने की मोहरें धरोहर के रूप में रखीं। वह विदेश में चला गया। कुछ समय बाद लौटा और आकर भिक्षु अपनी धरोहर माँगी। किन्तु भिक्षु टाल-मटोल करने लगा और आज-कल करके समय निकालने लगा । व्यक्ति बड़ी चिन्ता में था कि किस प्रकार भिक्षु से अपनी अमानत निकलवाऊँ ।
संयोगवश एक दिन उसे कुछ जुआरी मिले। बातचीत के दौरान उसने अपनी चिन्ता उन्हें कह सुनाई। जुआरियों ने उसे आश्वासन देते हुए उसकी अमानत भिक्षु से निकलवा देने का वायदा किया और कुछ संकेत करके चले गये। अगले दिन जुआरी गेरुए रंग के कपड़े पहन, संन्यासी का वेश बनाकर उस भिक्षु के पास पहुँचे और बोले— 'हमारे पास ये सोने की कुछ खूंटियाँ हैं, आप इन्हें अपने पास रख लें। हमें विदेश भ्रमण के लिए जाना है। आप बड़े सत्यवादी महात्मा हैं, अतः आपके पास धरोहर रखने आए हैं ।'
साधु-वेशधारी वे जुआरी भिक्षु से यह बात कह ही रहे थे कि उसी समय वह व्यक्ति भी पूर्व संकेतानुसार वहाँ आ गया बोला- महात्मा जी ! वह हजार मोहरों वाली थैली मुझे वापिस दे दीजिये । '
भिक्षु संन्यासियों के सामने अपयश के कारण तथा सोने की खूंटियों के लोभ के कारण पहले