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काल
ज्ञान के पांच प्रकार]
[४१ सूक्ष्मतर हैं।
अवधिज्ञानी रूपी द्रव्यों को ही जान सकता है, अरूपी को विषय नहीं करता। अतएव मूलपाठ में जहाँ क्षेत्र और काल को जानना कहा गया है वहाँ उतने क्षेत्र और काल में अवस्थित रूपी द्रव्य समझना चाहिए, क्योंकि क्षेत्र और काल अरूपी हैं।
परमावधिज्ञान केवलज्ञान होने से अन्तर्मुहूर्त पहले उत्पन्न होता है। उसमें परमाणु को भी विषय करने की शक्ति है। इस प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञान का विषय वर्णन किया गया है, फिर भी जिज्ञासुओं को समझने में असानी रहे, इसलिए एक तालिका भी काल और क्षेत्र को समझने के लिए दी जा रही है
क्षेत्र १ एक अंगुल का असंख्यातवां भाग देखे एक आवलिका का असंख्यातवाँ भाग देखे। २ अंगुल का संख्यातवां भाग देखे
आवलिका का संख्यातवां भाग देखे। ३ एक अंगुल
आवलिका से कुछ न्यून। ४ पृथक्त्व अंगुल
एक आवलिका। ५ एक हस्त
एक मुहूर्त से कुछ न्यून। ६ एक कोस
एक दिवस से कुछ न्यून। एक योजन
पृथक्त्व दिवस। ८. पच्चीस योजन
एक पक्ष से कुछ न्यून। भरतक्षेत्र
अर्द्धमास। १० जम्बूद्वीप
एक मास से कुछ अधिक। ११ अढ़ाई द्वीप
एक वर्ष। १२ रुचक द्वीप
पृथक्त्व वर्ष। १३ संख्यात द्वीप
संख्यात काल। संख्यात व अंसख्यात द्वीप एवं समुद्रों पल्योपमादि असंख्यात काल। की भजना
हीयमान अवधिज्ञान २२-से किं तं हीयमाणयं ओहिणाणं ?
हीणमाणयं ओहिणाणं अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वट्टमाणस्स, वट्टमाणचरित्तस्स, संकिलिस्समाणस्स, संकिलिस्समाणचरित्तस्स सव्वओ समंता ओही परिहीयते।से त्तं हीयमाणय
ओहिणाणं।
२२-शिष्य ने प्रश्न किया—भगवन्! हीयमान अवधिज्ञान किस प्रकार का है? आचार्य ने उत्तर दिया-अप्रशस्त-विचारों में वर्तने वाले अविरति सम्यग्दृष्टि जीव तथा