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ज्ञान के पांच प्रकार ]
आदि ।
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(८) स्त्रीलिंगसिद्ध सूत्रकार ने स्त्रीत्व के तीन भेद बताये हैं, यथा- - (९) वेद से (२) निर्वृत्ति से और (३) वेष से । वेद के उदय से और वेष से मोक्ष संभव नहीं है, केवल शरीरनिर्वृत्ति से ही सिद्ध होना स्वीकार किया गया है । जो स्त्री के शरीर में रहते हुए मुक्त हो गये हैं, वे स्त्रीलिंगसिद्ध हैं ।
(९) पुरुषलिंगसिद्ध—– पुरुष की आकृति में रहते हुए मोक्ष प्राप्त करने वाले पुरुषलिंग सिद्ध कहलाते हैं ।
( १० ) नपुंसकलिंगसिद्ध – नपुंसक दो तरह के होते हैं । (१) स्त्री - नपुंसक (२) पुरुषनपुंसक। जो पुरुषनपुंसक सिद्ध होते हैं, वे नपुंसकलिंगसिद्ध कहलाते हैं ।
(११) स्वलिंगसिद्ध श्रमण का वेष, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि को धारण करके सिद्ध होता है, उसे स्वलिंगसिद्ध कहते हैं ।
(१२) अन्यलिंगसिद्ध— जो साधुवेष के धारक नहीं हैं किन्तु क्रिया जिनागमानुसार करके सिद्ध होते हैं वे अन्यलिंगसिद्ध कहलाते हैं ।
(१३) गृहस्थलिंगसिद्ध गृहस्थ वेष में मोक्ष प्राप्त करनेवाले, जैसे मरुदेवी माता । (१४) एकसिद्ध— एक समय में एक-एक सिद्ध होने वाले एकसिद्ध कहलाते हैं । (१५) अनेकसिद्ध – एक समय में दो से लेकर उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होने वाले अनेकसिद्ध कहे जाते हैं । इन सबका केवलज्ञान अनन्तरसिद्धकेवलज्ञान है ।
. इस प्रकार अनन्तरसिद्ध केवल ज्ञान का वर्णन समाप्त हुआ ।
परम्परसिद्ध केवलज्ञान
४३ – से किं तं परम्परसिद्ध-केवलनाणं ?
परम्परसिद्ध- केवलनाणं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा— अपढमसमय-सिद्धा, दुसमयसिद्धा, तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा, जाव दससमयसिद्धा, संखिज्जसमयसिद्धा, असंखिज्जसमयसिद्धा, अणंतसमयसिद्धा ।
से त्तं परम्परसिद्ध-केवलनाणं, से त्तं सिद्ध केवलनाणं ।
तं समासओ चडव्विहं पण्णत्तं तं जहा— दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ 1
तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ, पासइ । खित्तओ णं केवलनाणी सव्वं खित्तं जाणइ, पासइ । कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ, पासइ । भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ, पासइ ।
प्रश्न – वह परम्परसिद्ध-केवलज्ञान कितने प्रकार का है?