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मतिज्ञान]
[९१ गया। भाँड अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि के प्रयोग से सानन्द वहीं रहने लगा।
(११) गोलक (लाख की गोली) 'किसी बालक ने खेलते हुए कौतूहलवश लाख की एक गोली नाक में डाल ली। गोली अन्दर जाकर श्वास की नली में अटक गई और बच्चे को सांस लेने में रुकावट होने के कारण तकलीफ होने लगी। उसके माता-पिता बहुत घबराये। इतने में एक सुनार वहाँ से निकला और उसने समग्र वृत्तान्त सुनकर उपाय ढूँढ निकाला। एक बारीक लोह-शलाका मंगवाई गई और सुनार ने उसके अग्रभाग को गरम. करके बड़ी सावधानी से बालक की नाक में डाला। गर्म होने के कारण लाख की गोली शलाका के अग्रभाग में चिपक गई और सुनार ने उसे सावधानी से बाहर निकाल लिया। यह उदाहरण स्वर्णकार की औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचायक है।
(१२) खंभ एक राजा को अत्यन्त बुद्धिमान् मंत्री की आवश्यकता थी। बुद्धिमत्ता की परीक्षा करने के लिए उसने एक विस्तीर्ण और गहरे तालाब में एक ऊँचा खंभा गड़वा दिया। तत्पश्चात् घोषणा करवा दी कि जो व्यक्ति पानी में उतरे बिना किनारे पर रहकर ही इस खंभे को रस्सी से बाँध देगा उसे एक लाख रुपया इनाम में दिया जायेगा।'
यह घोषणा सुनकर लोग टुकर-टुकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। किसी से यह कार्य नहीं हो सका। किन्तु आखिर एक व्यक्ति वहाँ आया जिसने इस कार्य को सम्पन्न करने का बीड़ा उठाया। उस व्यक्ति ने तालाब के किनारे पर एक जगह मजबूत खूटी गाड़ी और उससे रस्सी का एक सिरा बाँध दिया। उसके बाद वह रस्सी के दूसरे सिरे को पकड़कर तालाब के चारों ओर घूम गया। ऐसा करने पर खंभा बीच में बंध गया। राजकर्मचारियों ने यह समाचार राजा को दिया। राजा उस व्यक्ति की औत्पत्तिकी बुद्धि से बहुत प्रसन्न हुआ और एक लाख रुपया देने के साथ ही उसे अपना मंत्री भी बना लिया।
(१३) क्षुल्लक बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक संन्यासिनी रहती थी। उसे अपने आचार-विचार पर बड़ा गर्व था। एक बार वह राजसभा में जा पहुँची और बोली 'महाराज, इस नगर में कोई ऐसा नहीं है जो मुझे परास्त कर सके।' संन्यासिनी की दर्प भरी बात सुनकर राजा ने उसी समय नगर में घोषणा करवा दी कि जो कोई इस संन्यासिनी परास्त करेगा उसे राज्य की ओर से सम्मानित किया जायेगा। घोषणा सुनकर तो कोई नगरवासी नहीं आया, किन्तु एक क्षुल्लक सभा में आया और बोला—'मैं इसे परास्त कर सकता हूँ।'
राजा ने आज्ञा दे दी। संन्यासिनी हँस पड़ी और बोली—'इस मुंडित से मेरा क्या मुकाबला? क्षुल्लक गंभीर था वह संन्यासिनी की धूर्तता को समझ गया और उसके साथ उसी तरह पेश आने का निश्चय करके बोला—'जैसा मैं करूं अगर वैसा ही तुम नहीं करोगी तो परास्त मानी जाओगी।' यह कहकर उसने समीप ही बैठे मंत्री का हाथ पकड़कर उसे सिंहासन से उतार कर नीचे खड़ा कर दिया और अपना परिधान उतार कर उसे ओढ़ा दिया। तत्पश्चात् संन्यासिनी से भी ऐसा ही करने के लिए कहा। किन्तु संन्यासिनी आवरण रहित नहीं हो सकती थी, अत: लज्जित व पराजित होकर