________________
ज्ञान के पांच प्रकार]
[३९ पाँच स्थावरों में सबसे कम तेजस्काय के जीव हैं, क्योंकि अग्नि के जीव सीमित क्षेत्र में ही पाये जाते हैं। सूक्ष्म सम्पूर्ण लोक में तथा बादर अढाई द्वीप में होते हैं।
तेजस्काय के जीव चार प्रकार के होते हैं। (१) पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूक्ष्म तथा (२) पर्याप्त एवं अपर्याप्त बादर। इन चारों में से प्रत्येक में असंख्यातासंख्यात जीव होते हैं। इन जीवों की उत्कृष्ट संख्या तीर्थङ्कर भगवान् अजितनाथ के समय में हुई थी। यदि उन जीवों में से प्रत्येक जीव को उसकी अवगाहना के अनुसार आकाशप्रदेशों पर लगातार रखा जाये और उनकी श्रेणी बनाई जाए तो वह श्रेणी इतनी लम्बी होगी कि लोकाकाश से भी आगे अलोकाकाश में पहुँच जायेगी। उस श्रेणी को सब ओर घुमाया जाये तो उसकी परिधि में लोकाकाश जितने अलोकाकाश के असंख्यात खण्डों का समावेश हो जायेगा। इस प्रकार उन जीवों के द्वारा जितना. क्षेत्र भरे उतना क्षेत्र परम अवधिज्ञान का विषय है।
___ यद्यपि समस्त अग्निकाय के जीवों की श्रेणी-सूची कभी किसी ने बनाई नहीं है और न उसका बनना सम्भव ही है। अलोकाकाश में कोई मूर्त पदार्थ भी नहीं है जिसे अवधिज्ञानी जाने। किन्तु परमावधिज्ञान का सामर्थ्य प्रदर्शित करने के लिए यह मात्र कल्पना की गई है।
अवधिज्ञान का मध्यम क्षेत्र १६. अंगुलमावलियाणं भागमसंखेज दोसु संखेज्जा ।
____ अंगुलमावलियंतो आवलिया अंगुलपुहुत्तं ॥ १६-क्षेत्र और काल के आश्रित-अवधिज्ञानी यदि क्षेत्र से अंगुल (उत्सेध या प्रामाणांगुल) के असंख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका के असंख्यातवें भाग को जानता है। इसी प्रकार यदि क्षेत्र से अंगुल के संख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका का संख्यातवाँ भाग जान सकता है। यदि अंगुलप्रमाण क्षेत्र देखे तो काल से आवलिका से कुछ कम देखे और यदि सम्पूर्ण आवलिका प्रमाण काल देखे तो क्षेत्र से अंगुलपृथक्त्व प्रमाण अर्थात् २ से ९ अंगुल पर्यन्त देखे।
१७. हत्थम्मि मुहुत्तंतो दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्वो।
जोयण दिवसपुहत्तं पक्खंतो पण्णवीसाओ॥ १७–यदि क्षेत्र से एकहस्तपर्यंत देखे तो काल से एक मुहूर्त से कुछ न्यून देखे और काल से दिन से कुछ कम देखे तो क्षेत्र से एक गव्यूति अर्थात् कोस परिमाण देखता है, ऐसा जानना. चाहिए। यदि क्षेत्र से योजन परिमाण अर्थात् चार कोस परिमित देखता है तो काल से दिवस पृथक्त्व—दो से नौ दिन तक देखता है। यदि काल से किञ्चित् न्यून पक्ष देखे तो क्षेत्र से पच्चीस योजन पर्यन्त देखता है अर्थात् जानता है।