Book Title: Agam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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जीवाजीवाभिगम - ३/ति-२/१३४
य से तं सुहुमपुढविक्काइया से किं तं बादरपुढविक्काइया दुविहा पचत्तगा य अपजत्तगा य एवं जहा पत्रवणाए, सहा सत्तविहा पत्रत्ता, खरा अनेगविहा पत्रत्ता जाव असंखिया से तं बारपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइवा एवं चैव जइ पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणष्फइकाइया एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिजा सिय असंखिज्जा सित अनंता से तं बादरवणस्स इकाइया से तं वणफइकाइया, से किं तं तसकाइया चउविहा पत्रत्ता तं येइंदिया जाव पंचिंदिया से किं तं इंदिया अणेगविहा पत्रत्ता एवं जहेब पत्रवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं ति जाव सव्वट्टसिद्धगा देवा से तं अनुत्तरोबवाइया से तं देवा से तं पंचिंदिया से त्तं तसकाइया । १०१/-100
(१३५) कतिविधा णं भंते पुढवी पत्रत्ता गोयमा छव्विहा पुढवी पत्रत्ता तं जहा सण्हपुढवी सुद्धपुढवी बालुयापुढची मणोसितापुढवी सक्करापुढवी खरुवुढवी, सण्हपुढवीणं भंते केवतियं कालं किती पत्रत्ता गोयमा जहण्णेण अंतीमुहुत्तं उक्को सेणं एवं वाससहस्सं सुद्धपुढवीपुच्छा गोयमा जहणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वारस वाससहस्साई, वालुयापुढवीपुच्छा गोयमा जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं चोद्दसवाससहस्साइं मणोसिला पुढवीपुच्छा गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सोलस वाससहस्साई सक्करापुढवीपुच्छा गोयमा जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अट्ठारस वाससहस्साई खरपुढचीपुच्छा गोवमा जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई नेरइयाणं भंते केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता गोवमा जहण्णेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दितीपदं सव्वं भाणियव्वं जाव सव्वसिद्धदेवत्ति जीवे णं मंते जीवेत्ति कालत्तो केवधिरं होइ गोयमा सव्वद्धं पुढविकाइए णं भंते पुढविकाइएत्ति कालतो केवचिरं होति गोयमा सव्वद्धं एवं जाव तसकाइए ११०२/- 101
(१३६) पडुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते कंवतिकालस्स निल्लेवा सिता गोयमा जहणपदे असंखेजाहिं उस्सप्पिणिओसम्प्पिणीहिं उक्कोसपदेवि असंखेजाहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहिंजहष्णपदातो उक्कोसपए असंखेनगुणा एवं जाव पडुप्पत्रवाउक्काइया, पडुप्पन्नवणण्फकाइया णं मते केवतिकालस्स निल्लेवा सिता गोयमा पडुप्पन्नवणम्फकाइयाणं नत्थि निल्लेवणा, पडुष्पन्नतसकाइया णं भंते केवतिकालस्स निल्लेवा सिया, पडुप्पन्नतसकाइया जहण्णपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपुहत्तस्स-जहण्णपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया । १०३/- 109
(१३७) अविसुद्धलेस्से णं भंते अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ पास गोयमा नो इणट्टे समट्ठे, अविसुद्धलेस्से णं भंते अणगारे असमोहत्तेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पास गोयमा नो इणट्टे समट्ठे, अविसुद्धलेस्से गं भंते अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति पासति गोयमा नो इण समट्ठे, अविद्धलेसे णं भंते अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाति-पाति गोयमा नो तिणट्टे समट्टे, अविसुद्धलेस्से णं भंते अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्तं देवं देवि अणगारं जाणति- पासति गोवमा नो तिणद्वे समट्ठे, अविसुद्ध - लेसेणं मंते अणगारे समोहता समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्ध लेसं देवं देविं अणगारं जाणति परसति गोयमा नो तिणडे सट्टे विसुद्धलेस्से णं भंते अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति हंता जाणति पासति जहा अविसुद्धलेस्सेणं छआलावगा एवं विसुद्ध लेस्सेणं वि छआलावगा भाणितव्या जाव विशुद्धलेस्से णं भंते अणगारे समोहतासमोहतेणं
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