Book Title: Agam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४८11-3 १०१ जीवानीवाभिगम - ३/दी०/२४३ (२४३)---सोमं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा, पुक्खरवरदीवस्सणंबहुपज्झदेसपाए एत्य णं माणुसुत्तरे नाम पव्वते पन्नते वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जो णं पुक्खरवरं दीवं दुहा विभयमाणे-विमयमाणे चिट्ठति तं जहा-अभितरपुरस्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च अमितरपुक्खरद्धे णं भंते केवतियं चकूकवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं पन्नते गोयपा अट्ट जोयणसयसहस्साइंचककवालविक्खंभेणं।१७७-४1-1764 (२४४) कोडी बायालीसा तीसं दोण्णि य सया अगुणवण्णा पुखरअद्धपरिरओएवं से मणुस्सखेत्तस्स ___|४५||-1 (२४५) से केणद्वेणं भंते एवं वुच्चति-अभितरपुक्खरद्धे अभितरपुक्खरद्धे गोवमा अभितरपुक्खरद्धेणं माणुसुत्तरेणं पब्बतेणं सव्यतो समंता संपरिक्खित्ते से एएणडेणं गोयमा एवं बुञ्चति-अभितरपुक्खरद्धे अदुत्तरं च णं जाब निचे अभितरपुक्खरद्धे णं भंते केवतिया चंदा पपासिंसुधापुच्छा सा चेवपुच्छा, जाव तारागणा कोडकोडीओगोयमा।१७७-५/-176-5 (२४६) बावत्तरिं च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता पुक्खरवरदीवड्ढे चरति एतेपभासेता। ॥४६||-1 (२४७) तिनि सया छत्तीसा छच्च सहस्सा महग्गहाण तु नक्खत्ताणं तु भवे सोलाइ दुवे सहस्साई ॥४७11-2 (२४८) अडयालसयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई दो य सय पुक्खरद्धे तारागण कोडिकोडिणं (२४९) ---सोभं सोभिंस वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।१७७1-176 (२५०) समयखेत्ते (मणुस्सखेले| णं भंते केवतिय आयाम-विक्खंभेणं केवतिय परिक्खेदेणं पन्नत्तं गोचमा पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं एगा जोयणकोडी [यायालीसंच सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोण्णि य एउणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते] से केगट्टेणं भंते एवं वुन्नति-मणुस्सखेत्ते मणुस्सखेते गोयमा मणुस्सखेतेणं तिविधा मणुस्सा परिवसंति तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा से तेणट्टेणं गोयमा एवं बुधति मणुस्स खेते मगुस्स खेते, अदुत्तरं च णं गोयमा मगुस्सखेत्तस्स सासए नामधेने जाव निच्चे, मणुस्सखेत्तेणं भंते कति चंदा पभासिंसुवा पुच्छा कई सूरा तवइंसुवापुच्छा [गोयमा ।१७८-94177-1 (२५१) बत्तीसं चंदसबं बत्तीसं चेव सूरियाणं सयं सयलं मणस्सलोयं चरेति एतेपभासेंता ॥४९॥-1 (२५२) एक्कारस य सहस्सा छप्पिय सोला महग्गहाणंतु छच्च सया छपणउया नक्खता तिष्णिय सहस्सा ||५०11-2 (२५३) अडसीइ सयसहस्सा चत्तालीस सहस्स मणुयलोगमि सत्त व सता अणूणा तारागणकोडकोडीणं (२५४) ----सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।१७८-177 (२५५) एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मणुयलोगंमि बहिया पुण ताराओ जिणेहिं पणिया असंखेजा |५२||-1 (२५६) एवइयं तारगंजं भणियं माणुसंमि लोगंमि चारं कलंबुयापुष्फसंठियं जोइस चरइ ॥५३||-2 ||५१||-3 For Private And Personal Use Only


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