Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 10
________________ अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी कि इस में नाना प्रकार के जीवाजीवादि का स्वरूप और अतिशय कर प्रचुर पशार्थों का विषय २ तीर्थकरों ने गणधरों को कहीं, गणधरोंने आचार्यादिक को कही, आचार्यादिक ने शिष्यों को कही, यों पूर्व परंपरा से विविध महा पुरुषों से कहाती आइ सो विवाह प्रज्ञप्ति. ३ विविध प्रकार के विशिष्ट अर्थ का प्रवाह और नयों का प्रभाव जिस में कहा वह विवाह प्रज्ञप्ति, ४ विविध प्रकार के समासों का एक स्थान में समावेश होने से विवाह प्रज्ञप्ति. ५ जिस प्रकार गृहस्थ विवाह प्रसंग में विविध प्रकार की सामग्री मीलाता है उस प्रकार इस में भी विविध ज्ञानादि सामग्री का संयोग मीलाया गया है. इसलिये इसे विवाह मज्ञप्ति सूत्र कहा तथा इसे भगवती सूत्र भी कहते हैं, सो सर्व माननीय, सर्व पूज्यनीय सर्व विघ्न व दुःख की हर्ता, मंगल कार्का है. इस विवाह मइति ( भगवती ) सूत्र को हस्तिरत्न की उपमा दी है १ जिस प्रकार हस्ती ललित लीला करके लोगों के मन को प्रमुदित करता है वैसे ही इस सूत्र के पदादि का अभ्यास करने से और इस का सम्यक् प्रकार से प्रतिबोध होने से लोगों का मन प्रमुदित होता है, २ जिस प्रकार हस्ती गुल गुलाट शब्द करता है, जैसे ही इस सूत्र में उपसर्ग निपातादि अवयव के रूप सहित सघन, गहन, गंभीर, स्वाध्यायादि का शब्द होता है, जैसे हस्ती उत्तमोत्तम लक्षण मे युक्त होता है वैसे ( ही यह सूत्र भी लिंग, वचन विभक्ति आदे वचन शुद्धि की युक्ति कर शुभ लक्षणोपेत है, ४ जिल प्रकार चक्रवर्तीका हस्ती देवाधिष्ठित होता है वैसे ही यह सूत्र भी शासन देव अधिष्ठित है ५ जैसे हाथी सोने * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी - ज्वालाप्रसादजी *

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