________________
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
%
$ $$$明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听步乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐
गमन जितना-क्लिष्ट और दुर्गम रहा है, उतना ही सरस और अंतः तोष प्रदाता भी रहा है। आगम के एक-एक अक्षर, एक-एक पद और एक-एक सूत्र का अर्थ-विश्लेषण गुरुदेव ने किया, जिसे मैंने कलमबद्ध किया। आराध्य गुरुदेव द्वारा व्याख्यायित समग्र सामग्री को यदि यथावत् प्रस्तुत किया जाता, तो ग्रन्थ का
आकार बहुत विशाल हो जाता। श्रद्धेय गुरुदेव स्वयं चाहते थे कि ग्रन्थ का आकार संक्षिप्त रहे। अनुवाद में | केवल मूल विषय को ही स्पष्ट किया जाए। गुरुदेव श्री की भावना के अनुरूप ही प्रस्तुत आगम की अनुवाद शैली को संक्षिप्त रखा गया है।
अनुवादन-संपादन में समवायांग सूत्र के कई संस्करणों का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। परंतु श्रद्धेय युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म. सा. द्वारा संपादित आगम को ही हमने इस संस्करण का प्रमुख आधार बनाया है। तदर्थ ग्रंथ के संपादक एवं प्रकाशक का हम हृदय से आभार प्रकट करते हैं।
हिन्दी अनुवाद में साहित्य मनीषी डॉ. राजीव प्रचण्डिया अलीगढ़ एवं अंग्रेजी अनुवाद में श्रावकरत्न श्री मुन्नालाल जैन, दिल्ली व पद्मरत्न सुश्रावक श्री राजकुमार जैन, मधुबन दिल्ली का विशेष सहयोग रहा।
के इस समर्पित सहयोग को "धन्यवाद" नामक शब्द की सीमा में आबद्ध कर मैं सीमित नहीं करना चाहूंगा। - चित्रांकन में साहित्त्य मनीषी श्री संजय सुराणा एवं श्री अनुज भटनागर का कलात्मक सहयोग हृदय को गद्गद करने वाला है। टंकण, प्रूफ संशोधन एवं प्रिंटिंग के शेष दायित्वों को श्री विनोद शर्मा (कोमल प्रकाशन) दिल्ली ने अपनी चिरपरिचित शैली में संपन्न किया है। सामग्री संयोजन में युवारत्न श्री सचिन जैन (विश्वा अपार्टमेन्ट) दिल्ली ने पूर्ण तत्परता का निर्वहन कर अपनी गुरुभक्ति का सुंदर परिचय दिया है।
___ उपरोक्त सभी महानुभावों को आराध्य गुरुराज की ओर से शत-शत अदृष्ट आशीष एवं मेरी ओर से सादर स्नेह।
- वरुण मुनि 'अमर शिष्य'
//
xiii
//