Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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साथ ये नाम मिलते हैं । धवला और भाष्यानुसारिणी में उक्त नामसूचि आचार्य अकलंक की सूचि के आधार पर संकलित की गई है-ऐसा प्रतीत होता है । श्वेताम्बर साहित्य में भाष्यानुसारिणी टीका के अतिरिक्त कहीं भी यह नामसूचि प्राप्त नहीं है। दिगम्बर साहित्य में भी आचार्य अकलंक से पूर्व वह प्राप्त नहीं है। उन्हें वह कहां से प्राप्त हुई, इसका भी प्रमाणपुरस्सर उत्तर दे पाना कठिन है।
उक्त सूची में अधिकांश नाम वैदिक परम्परा के आचार्यों के प्रतीत होते हैं। श्रमण-परम्परा के आचार्यों के नाम नगण्य हैं या नहीं हैं, यह अनुसन्धेय है।
प्रस्तुत सूत्र (सूत्रकृतांग) के अनुसार क्रियावाद आदि चारों वाद श्रमण और वैदिक दोनों में थे। 'समणा माहणा एगे' इस वाक्य के द्वारा स्थान-स्थान पर यह सूचना दी गई है । श्रमण परम्परा के अद्य प्राप्त दोनों मुख्य सम्प्रदाय- जैन और बौद्ध - जगत् के अकृत या अनादि होने के पक्ष में हैं । किन्तु उस समय श्रमण सम्प्रदाय भी जगत् को अंडकृत मानते थे।'
प्रस्तुत सूत्र की रचनाशैली के अनुसार 'एगे' शब्द के द्वारा विभिन्न मतवाद निरूपित किए गए हैं। किन्तु कहीं-कहीं दर्शन के नाम का प्रत्यक्ष उल्लेख भी मिलता है । क्षणिकवादी बौद्धों के लिए 'क्षणयोगी' शब्द का प्रयोग मिलता है।'
द्वितीय श्रुतस्कन्ध में बौद्ध शब्द भी मिलता है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में बुद्ध और बौद्ध दोनों का प्रयोग हुआ है।'
सूत्रकार के सामने बौद्ध साहित्य रहा है, ऐसा प्रस्तुत आगम में प्रयुक्त शब्दों से प्रतीत होता है। उदाहरण रूप में यहां तीन शब्द प्रस्तुत हैं
(१) खंध (स्कन्ध)-पंच खंधे वयंतेगे ।' (२) धाउ (धातु)-पुढवी आऊ तेऊ य, तहा वाऊ य एगओ।
चत्तारि धाउणो रूवं, एवमाहंसु जाणगा।' (३) आरोप्प (आरोग्य)-भवंति आरोप्प महंत सत्ता।' बौद्धपिटकों के अनुसार स्कन्ध पांच होते है -
१. रूप-स्कन्ध, २. वेदना-स्कन्ध, ३. संज्ञा-स्कन्ध, ४. संस्कार-स्कन्ध, ५. विज्ञान-स्कन्ध । बौद्धपिटकों में पृथ्वी आदि चार महाभूतों को धातु कहा गया है।' दीघनिकाय में भव के तीन प्रकार बतलाए गए हैं - काम-भव-पार्थिव लोक । रूप-भव--अपार्थिव साकारलोक । अरूप-भव-निराकार लोक ।
सूत्रकार द्वारा प्रस्तुत पूर्वपक्षों के अध्ययन से पता चलता है कि उपनिषद् तथा सांख्य दर्शन के ग्रन्थ भी उनकी दृष्टि के सामने रहे हैं । सांख्य के पचीस तत्त्वों में प्रकृति और पुरुष-ये दो मुख्य हैं । प्रकृति के अर्थ में प्रधान शब्द का प्रयोग सांख्य दर्शन
१. सूयगडो, १११६७ : माहणा समणा एगे, आह अंडकडे जगे । २. वही, १११।१७ : पंच खंधे वयंतेगे, बाला उ खणजोइणो। ३. वही २।६२८ : बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए। ४ वही, १।११।२५ : तमेव अविजाणता अबुढा बुद्धवादिणो ।
बुद्धा मो ति य मण्णंता अंतए ते समाहिए। ५. वही, १।१।१७। ६. वही, १०१।१८। ७. वही, २०६।२६। ८. दीघनिकाय पृ० २६०। ६ वही, पृ० ७६। १०. वही, पृ० १११॥
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