Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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[ २३ ] बौद्धों ने भी आधारभूत दस वादों की नामोल्लेखपूर्वक चर्चा की है, जैसे१. शाश्वतवाद
६. मरणान्तर होशवाला आत्मा २. नित्यता-अनित्यता-वाद
७. मरणान्तर बेहोश आत्मा ३. सान्त-अनन्त-वाद
८. मरणान्तर न-होशवाला न-बेहोश आत्मा ४. अमराविक्षेप-वाद
६. आत्मा का उच्छेद ५. अकारणवाद
१०. इसी जन्म में निर्वाण । दीघनिकाय में इन दस वादों के विभिन्न कारणों का उल्लेख कर ६२ भेद किए गए हैं।'
जन परम्परा के आदि-साहित्य में ये भेद तत्कालीन मतवादों के रूप में संकलित कर दिए गए थे। किन्तु उत्तरवर्ती साहित्य में उनकी परम्परागत संख्या प्राप्त रही, उनका प्रत्यक्ष परिचय नहीं रहा, इसीलिए उस संख्या की संगति गणित की प्रक्रिया से की गई।
क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी दार्शनिकों के ये चार वर्गीकरण थे। इनमें अनेक मुख्य और गौण सम्प्रदाय थे । कुछ-कुछ विचारभेद को लेकर उनका निर्माण हुआ था। स्थानांगसूत्र में आठ अक्रियावादी सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है१. एकवादी
५. सातवादी २. अनेकवादी
६. समुच्छेदवादी ३. मितवादी
७. नित्यवादी ४. निर्मितवादी
८. असत्परलोकवादी ये अक्रियावादियों के मुख्य सम्प्रदाय ज्ञात होते हैं । व्याख्या ग्रन्थों में यत्र तत्र अन्य नाम भी मिलते हैं, किन्तु उनकी व्यवस्थित नामावलि या परिचय आज प्राप्त नहीं है।
आचार्य अकलंकदेव ने इन चारों वर्गों के आचार्यों के कुछ नामों का उल्लेख किया है।' क्रियावादी दर्शनों के आचार्य
१. कोत्कल, २. काणेविद्धि [कांडेविद्धि, कंठेविद्धि], ३. कौशिक, ४. हरिश्मश्रु , ५. मांछयिक [मांधयिक, मांधनिक], ६. रोमस, ७. हारीत, ८. मुंड, ६. अश्वलायन । अक्रियावादी दर्शनों के आचार्य
१. मरीचिकुमार, २. कपिल, ३. उलूक, ४. गार्य, ५. व्याघ्रभूति, ६. वाद्धलि, ७. माठर, ८. मौद्गलायन । अज्ञानवादी दर्शनों के आचार्य
१. शाकल्य, २. वाल्कल, ३. कुथुमि, ४. सात्यमुद्रि, ५. नारायण [राणायन], ६. कंठ, [कण्व], ७. मध्यंदिन, ८. मौद, ६. पप्पलाद, १०. वादरायण, ११. अंबष्ठीकृद् [स्वेष्टकृत्, स्विष्टिकृत्], १२. औरिकायन [ऐतिकायन, अनिकात्यायन], १३. वसु, १४. जैमिनि। विनयवादी दर्शनों के आचार्य
१. वशिष्ठ, २. पाराशर, ३. जतुकणि, ४. वाल्मीकि, ५. रोमर्षि, ६. सत्यदत्त, ७. व्यास, ८. ऐलापुत्र, ६. औपमन्यव, १०. ऐन्द्रदत्त, ११. अयस्थूण ।
आचार्य वीरसेन की धवला टीका और सिद्धसेनगणी की तत्त्वार्थभाष्यानुसारिणी टीका' में भी क्वचित् किञ्चित् परिवर्तन के १. बीघनिकाय-ब्रह्मजालसुत्त पृ० ५-१५ । २. स्थानांग दा२२। ३. तत्त्वार्थराजवात्तिक १२२० । ४. षट्खंडागम भाग १, पृ० १०७-१०८ । ५. तत्त्वार्थमाण्यानुसारिणी टीका, अध्याय)
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