Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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VIII
सुन्दर होता, क्योंकि हमारेमें एतद् विषयक ज्ञान और अनुभवका अभाव है, परन्तु अनुभवी विद्वानका सहयोग प्राप्त न होनेपर हमने अपनी अत्यधिक साहित्यरुचि और अदम्य उत्साहसे प्रेरित हो यथासाध्य सम्पादन किया है। इस कार्यमें हमें कहां तक सफलता मिली है, यह निर्णय विद्वान पाठकों पर ही निर्भर है । हम विद्वान नहीं हैं, अभ्यासी हैं, अतः भूलोंका होना अनिवार्य है। अतएव अनुभवी विद्वानोंसे योग्य सूचना चाहते हुए क्षमा प्रार्थना करते हैं। प्रकाशनमें विलम्ब
प्रस्तुत ग्रंथका "युगप्रधान जिनचंद्रसूरि" ग्रंथके साथ ही मुद्रण प्रारम्भ हुआ था परन्तु हमारे व्यापारिक कार्यो में व्यस्त रहने व अन्यान्य असुविधाओंके कारण प्रकाशनमें विलम्ब हुआ है। अपने व्यवसायिक कार्यों से समय कम मिलनेसे हम इसका सम्पादन मनोज्ञ और सुचारु नहीं कर सके। यदि इसकी द्वितीयावृत्तिका अबसर मिला तो ग्रंथकी सुसम्पादित व्यवस्थित आवृत्ति की जायगी। आभार प्रदर्शन
इसकी प्रस्तावना श्रीयुक्त हीरालालजी जैन M.A. L. L.B. (प्रोफेसर एडवर्ड कालेज, अमरावती) महोदयने लिख भेजनेकी कृपा की है, अतएव हम आपके विशेष आभारी हैं।
इस ग्रन्थके “कठिन शब्द कोष" का निर्माण करनेमें माननीय ठाकुर साहेब रामसिंहजो M. A. विशारद और स्वामी नरोत्तम दासजीM.A.विशारदसे पूर्ण सहायता मिली है। सोलहवीं शताब्दीके पहलेके काव्योंका अन्तिम प्रूफ संशोधन श्रीमान् पं० हरगोविन्द
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