Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
View full book text
________________
XV
कितने अन्धकारपूर्ण ऐतिहासिक कालोंपर जैन-कथा साहित्य, पट्टावलियों आदि द्वारा प्रकाश पड़ता है। लोक-प्रचारकी दृष्टिसे जैन-साहित्य कभी किसी एक ही भाषामें सीमित नहीं रहा । भिन्न-भिन्न समयकी, भिन्न-भिन्न प्रान्तकी भिन्न-भिन्न भाषाओंमें यह साहित्य खूब प्रचुर प्रमाणमें मिलता है। अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि प्राकृत भाषाओंका जैसा सजीव और विशाल रूप जैन-साहित्यमें मिलता है वैसा अन्यत्र नहीं। किन्तु आज स्वयं जैनी भी इस बातको अच्छी तरह नहीं जानते कि उनका साहित्य कितना महत्वपूर्ण है । उसका पठन-पाठन व परिशीलन उतना नहीं हो रहा है , जितना होना चाहिये। इस अज्ञान और उपेक्षाके फलस्वरूप उसका अधिकांश भाग अभीतक प्रकाशमें ही नहीं आया। ___ वर्तमान संग्रह जैन-गीति काव्यका है। इसमें सैकड़ों गीतस्ग्रह हैं, जो किसी समय कहीं-कहीं अवश्य लोकप्रिय रहे हैं और शायद घर-घरमें या तीर्थ-यात्राओंके समय गाये जाते रहे हैं। विशेषता यह है कि इन गीतोंका विषय-शृङ्गार नहीं, भक्ति है; प्रियप्रेयसी-चिन्तन नहीं, महापुरुष-कीर्ति-स्मरण है और इसलिये पापबन्धका कारण नहीं, पुण्य-निबन्ध हेतु है। ये गीत भिन्न-भिन्न सरस मनोहर राग-रागणियोंके रसास्वादके साथ-साथ परमार्थ और सदाचारमें मनकी गतिको ले जानेवाले हैं। इस संग्रहको सम्पादकोंने 'ऐतिहासिक जैन-काव्य संग्रह' नाम दिया है, जो सर्वथा सार्थक है, क्योंकि इन गीतोंमें जिन सत्पुरुषोंका स्मरण किया गया
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org