Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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को मिले, जिनका सविस्तर वर्णन अवतरणों सहित मैंने उस सूची में दिया जो Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS. in C. P. & Berar के नाम से सन् १६२६ में मध्य प्रान्तीय सरकार द्वारा प्रकाशित हुई । उस परिचय से विद्वत् संसार की दृष्टि इस साहित्य की ओर विशेष रूपसे आकर्षित हुई। इससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस साहित्यको प्रकाशित करने तथा और साहित्यकी खोज लगानेका खूब प्रयत्न किया । हर्षका विषय है कि उस प्रयत्न के फलस्वरूप कारंजा जैन सीरीज द्वारा इस साहित्यके अब तक पांच ग्रंथ दशवीं ग्यारहवीं शताब्दिके बने हुए उत्तम रीति से प्रकाशित हो चुके हैं। तथा जयपुर, दिल्ली, आगरा, जसवंतनगर आदि स्थानोंके शास्त्रभण्डारोंसे इसी अपभ्रंश भाषाके कोई ४०-५० अन्य ग्रंथोंका पता चल गया है । यह साहित्य उसकी धार्मिक व ऐतिहासिक सामग्रीके अतिरिक्त भाषाकी दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । यह भाषा प्रचीन मागधी, अर्द्धमागधी, शौरसेनी आदि प्राकृतों तथा आधुनिक हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगाली आदि प्रांतीय भाषाओं के बीच की कड़ी है। यह साहित्य जैनियोंके शास्त्रभण्डारोंमें बहुत संगृहीत है । यथार्थ में यह जैनियोंकी एक अनुपम निधि है, क्योंकि जैन साहित्यके अतिरिक्त अन्यत्र इस भाषाके ग्रंथ बहुत ही कम पाये जाते हैं । भाषा विज्ञानके अध्येताओंको इन ग्रन्थोंका अवलोकन अनिवार्य है । पर जैनियोंका इस ओर अभी तक भी दुर्लक्ष्य है । यह साहित्य गुजरात, राज
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