Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
काव्योंका ऐतिहासिक सार
सुधर्मा
प्रस्तुत ग्रन्थमें प्रकाशित (पृ० १२८ से २२६ में ) खरतर गच्छ गुर्वाधलियोंमें भगवान महावीरसे पट्ट-परम्परा इस प्रकार दी गयी है :गुर्वावलि नं० २ गुर्वावलि नं०५ गुर्वावलि नं०२ गुर्वावलि नं० ५
१ वर्द्धमान १ आर्यशान्ति ११ सुस्थित गौतम २ गौतम हरिभद्र १२ इंद्र दिन्न
३ सुधा श्यामाचार्य १३ दिन्न सूरि जम्बू
४ जम्बू आर्य संडिल्ल १४ सिंहगिरि प्रभव
५ प्रभव | रेवती मित्र १५ वयर स्वामी शय्यम्भव ६ शय्यम्भव आर्य धर्म १६ वज्रसेन यशोभद्र
७ यशोभद्र आर्य गुप्त १७ चंद्र सूरि संभूति विजय ८ संभूतिविजय आर्य समुद्र १८ समंतभद्रसूरि भद्रबाहु
। आर्यमंगु १६ वृद्धदेव सूरि स्थूलिभद्र स्थूलिभद्र | आर्य सोहम २० प्रद्योतन सुरि आर्यमहागिरी
हरिबल २१ मानदेवसृरि आर्यसुहस्ति* १० आर्यसुहस्ति भद्रगुप्त २२ देवेन्द्र सूरि
* यहांतक दोनों गुर्वावलियों के नामोंमें साम्य है। नं०२में भद्रबाहु और आर्यमहागिरिके नाम अधिक है , इसका कारण नं० २ युगप्रधान परम्परा और नं० ५ गुरु शिष्य परम्पराको दृष्टिसे रचित है। इससे आगेका क्रम दोनोंमें मिन्न २ है, इसका कारण सम्भवतः नं० २ के प्राचीन अव्यवस्थित पट्टावलियोंका अनकरण. और नं. ५ के संशोधित होनेका है।
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