Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह अभय देवसूरि
(पृष्ट ४५) आप श्री जिनेश्वर सूरिजीके शिष्य थे। आपने ६ अंग-सूत्रों पर वृत्ति बनाई और जयतिहूअण स्त्रोत्रकी रचना कर स्तंभनपार्श्वनाथजीकी प्रतिमा प्रकट की। श्रीमंधर स्वामीने आपके गुणोंकी प्रशंसा की और धरणेन्द, पद्मावती आपकी सेवा करते थे। विशेष देखें: यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १२
___ जिनवल्लभसूरि
पृ० १,४६ ___ आप अभयदेवसूरजीके पट्टधर थे। पिन्डविशुद्धि प्रकरणकी आपने रचना की थी एवं बागड़ देशमें धर्म प्रचार कर १० हजार (नये ) जैनश्रावक बनाये थे। चितौड़में चमुंडा देवीको आपने प्रतिबोध दिया था। सं० ११६७ के आषाढ़ शुक्ला षष्टीको चित्तौड़के महावीर चैत्यमें आपको देवभद्र सूरिजीने आचार्य पद प्रदान कर श्रीजिन अभयदेव सूरिके पदपर स्थापित किया ।
विशेष चरित्रके लिये गण० शा० वृत्ति और कृतियोंके लिये युगप्रधान जिनचन्द सूरि पृष्ट १२ देखना चाहिये।
जिनदत्त सूरि
(पृ० १४, ४६, ३७३) वाछिग मन्त्री (धुन्धुका वास्तव्य ) की धर्मपत्नी बाहड़ देवीकी कुक्षीसे सं० ११३२ में आपका जन्म हुआ। सं० ११४१ में दीक्षा ग्रहण की। सं ११६६ वै० कृ० ६ चित्तौड़के वीर जिनालयमें
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