Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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मालदेवे विजयिनि । श्री वृहत् खरतरगच्छे। श्रीजिनमाक्यिसूरि पुरंदराणां विनेय सुमतिधीरेण* लेखि स्ववाचनाय ॥श्रावण सुदि
त्रयोदश्यां । शनिवारे ॥श्रीस्तात्।। ।।कल्याणंबोभोतु ॥ छ० ॥ 8-जिनराज सूरि-जिनरंग सूरिः-यतिवर्य श्री सूर्यमलजीके
संग्रह (कलकत्ते)में शालिभद्र चौपई पत्र २४ की सचित्र प्रतिके अन्तिम पत्र में यह चित्र है । लिपिलेखककी प्रशस्ति इस प्रकार है
सं० १८५२ मि० फाल्गुण कृष्ण १२ रविवारे श्री वृहत्खरतर गच्छे उपाध्यायजी श्री विद्याधीरजी गणि शिष्य मुख्य वा० मति कुमार ग० । शिष्य लि । पं० किस्तूरचन्द मु ।
प्रति यद्यपि समकालीन नहीं है तोभो इसकी मूल आधार भूत प्रतिका समकालीन होना विशेष संभव है। १०--जिनहर्ष हस्तलिपिः-पाटण भंडारमें कविवरके रचित एवं
स्वयं लि० स्तबनादिकी पत्र ८० की प्रतिके फोटु मुनिवयं पुण्य विजयजीने भेजे थे उसीसे ब्लाक बनवाकर मुद्रित की गई है।
मुनिश्रीने हमें उक्त प्रतिकी नकल करा भेजनेकीभी कृपा की है। ११--ज्ञानसार हस्तलिपिः-हमारे संग्रहके एक पत्रका ब्लोक बनवाकर दिया गया है।
खरतर गच्छके आचार्यों एवं विद्वानोंके और भी बहुत चित्र उपलब्ध हैं, जिन्हें हो सका तो खरतरगच्छ इतिहासमें प्रकट करनेकी इच्छा है। * आचार्य पद प्राप्तिके पूर्व मुनि अवस्थाका नाम । देखे यु० जिनचंद्रसूरि पृ० २३ ।
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