Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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XVIII
इस प्रकारके अनेक उल्लेख इन गीतोंमें पाये जाते हैं, जी इतिहासके लिये बहुत ही उपयोगी हैं। ____ पर इससे भी अधिक महत्व इस संग्रहका भाषाकी दृष्टिसे है । इन कविताओंसे हिन्दीकी उत्पत्ति और क्रमविकासके इतिहासमें बहुत बड़ी सहायता मिल सकती है। इसमें बारहवीं-तेरहवीं शताब्दिसे लगाकर उन्नीसवीं सदीतक अर्थात् सात-आठ सौ वर्ष की रचनायें हैं, जो भिन्न-भिन्न समयके व्याकरणके रूपोंपर प्रकाश डालती हैं। प्राचीन हिन्दी साहित्य अभीतक बहुत कम प्रकाशित हुआ है । हिन्दीकी उत्पत्ति अपभ्रंश भाषासे मानी जाती है। इस अपभ्रंश भाषाका अबसे बीस वर्ष पूर्व कोई साहित्य ही उपलब्ध नहीं था । जब सन् १९१४ में जर्मनीके सुप्रसिद्ध विद्वान् डा० हर्मन याकोबी इस देशमें आये, तब उन्होंने इस भाषाके ग्रंथ प्राप्त करनेका बहुत प्रयत्न किया। सुदैवसे उन्हें एक पूर्ण स्वतन्त्र ग्रन्थ मिल गया। वह था 'भविसत्तकहा' (भविष्यदत्त कथा ), जिसको उन्होंने बड़े परिश्रमसे सम्पादित करके १९१६ में जर्मनीमें ही छपाया। उसके पठन-पाठनसे हिन्दी और गुजराती आदि प्रचलित भाषाओं के पूर्व इतिहासपर बहुत कुछ प्रकाश पड़ा । यही एक स्वतंत्र और पूर्ण ग्रन्थ इस भाषाके प्रचारमें आ सका था । सन् १९२४ में मुझे मध्यप्रान्तीय संस्कृत प्राकृत और हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची तैयार करनेके सम्बन्धमें बरार प्रांतान्तर्गत कारंजाके दिगम्बर जैनशास्त्र भण्डारोंको देखनेका अवसर मिला। यहां मुझे अपभ्रंश भाषा के लगभग एक दर्जन ग्रंथ बड़े और छोटे देखने
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