Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
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VII
स्थानपर प्राचीन सुन्दर चित्र, विशेष नाम सूची, अनेक आवश्यक बातोंका स्पष्टीकरण (प्रति परिचय, कवि परिचय, चित्र परिचय आदि ) कर दिया गया है। अशुद्धियोंका आधिक्य ___ काव्योंको यथाशक्ति संशोधन पूर्वक प्रकाशित करनेपर भी इस ग्रन्थमें अशुद्धियोंका आधिक्य है। इसका प्रधान कारण अधिकांश काव्योंकी एक-एक प्रतिका ही उपलब्ध होना है। जिनकी एकसे अधिक प्रतियें प्राप्त हुई हैं वे पाठान्तर भेदोंके साथ-साथ प्रायः शुद्ध ही छपे हैं। खेद है कि कतिपय अशुद्धियां प्रेस दोष
और दृष्टि दोषसे भी रह गयी हैं। शुद्धिपत्र पीछे दे दिया गया है, पाठकोंसे अनुरोध है कि उससे सुधारकर पढ़ें। अधिकांश शुद्धिपत्र जालौरसे पुरातत्त्व-वेत्ता मुनिराज श्री कल्याणविजयजीने बनाकर भेजा था । अतएव हम पूज्यश्रीके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। रास-सार
काव्योंका ऐतिहासिक सार अति संक्षिप्त और सारगर्भित लिखा गया है। पहले हमारा यह विचार था कि काव्योंके अतिरिक्त इतर सामग्रीका सम्पूर्ण उपयोग कर सार-परिचय विस्तृत लिखा जाय, परन्तु ग्रन्थ बहुत बड़ा हो जानेके कारण ऐसा न करके संक्षेपसे ही लिखना पड़ा। अयोग्यता
यह ग्रन्थ किसी विद्वानके सम्पादकत्वमें प्रकट होता तो विशेष
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