Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadrankarvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 515
________________ अध्यात्म सार: ॥४७९॥ 幸幸幸幸未来来来来来来来来来来来来来来来来来来 टी. नन्वष्टमहापातिहार्यादिरूपगौणधर्माणामुपचरितस्तुतिं निरुपचरितस्तुतित्वेन मताग्रहश्चेत्तदा 'प्रत्युतानर्थकारिणी' दुर्नयग्रहग्रस्तस्तुतीनामनर्थकारित्वं कथं न भवेत् ? यथा सुतीक्ष्णखड्गधारा, प्रमादेन करे घृता, प्रत्युतानर्थकारिणी तथाऽत्रापि ज्ञेयम् ॥१२८॥ ___ -मणिप्रभामणिज्ञानन्यायेन शुभकल्पना न्याय्या. 'मणिप्रभामणिज्ञान-न्यायेन शुभकल्पना । वस्तुस्पर्शितया न्याय्या, यावन्नाऽनञ्जनप्रथा ॥१२॥ टी० मणिप्रभामणिज्ञानन्यायेन, मणिज्ञानं प्रति मणिप्रभाज्ञानं कारणमस्नि, मणिप्रभाज्ञानम्य मणिज्ञाने कारणत्वेन शुभकल्पना, मणिरूपवस्तुस्पर्शितया न्याय्या, प्राथमिकाऽवस्थायां व्यवहारस्तुतनिरुपचरितस्तुति प्रति कारणत्वेन निरुपचरितस्तुतित्वेन रूपेण बुद्धी शुभकल्पना, तीर्थकररूपवस्तुस्पर्शितया न्याय्या-न्यायादनपेता, 'यावन्नाऽनञ्जनप्रथा' निर्विकल्पदशा वा वीतरागनिरावरणशद्धावस्था यावन्न भवति तावद् वस्तुस्पर्शितया स्तुत्यादि गता शभकल्पना न्याय्या, तत्फलरूपनिरञ्जनावस्थाप्राप्त्यनन्तरं कथं न्याय्या? यथा मणिप्राप्यनन्तरं मणिज्ञानादिरूपकारणताऽनावश्यकी अथवा निरञ्जन विषयकस्तुत्यादिरूपज्ञानादिगुणस्तुतिरूपप्रथा यावन्न भवति तावद्वस्तुम्पर्शित या व्यवहारस्तुतिगत- IA||४७९॥ निश्चयकल्पनारूपशुभकल्पना न्याय्या कारणे कार्योपचारापेक्षयेति ॥१२६॥ in Edale For Private & Personal use only Alww.jainelibrary.org

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