Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadrankarvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 571
________________ अध्यात्मसार ॥५३५॥ -सदालम्बनस्य परमप्रभाव:'श्रालम्बनेः प्रशस्तैः, प्रायो भावः प्रशस्त एवं यतः । इति मालम्बन-योगी, मनः शुभालम्बने दध्यात् ॥१५॥ टी० प्रशस्तैरालम्बनः प्रायो-भृम्ना भावोऽध्यवसायः प्रशस्तः--पुण्यानुबन्धिपुण्यजनकशुभो जायते अतः कारणात् , सालम्बनयोगी, शुभेऽभिरूपजिनप्रतिमादिरूपे प्रशस्ते आलम्बन एत्र मनश्चित्तं, दद्ध्यान--मुञ्चेदिति ॥१५॥ -मनसो निरालम्पनत्वकरणे प्रक्रियामार्गो दर्यते'सालम्बनं क्षणमपि, क्षणमपि कुर्यान्मनो निरालम्बम्। इत्यनुभवपरिपाकादाकालं स्यान्निरालम्बम् ॥१६|| टी. क्षणं यावत्सालम्बनं कुर्यान्मनः, तदनन्तरं क्षणं यावनिरालम्ब--स्वात्मनिलीनत्वेन निरालम्बस्वात्मभिन्नवाह्यप्रशस्तालम्बननिरपेक्षं मनः कुर्यात् , इत्येवं पुनः पुनरभ्यासकरणद्वारा यदा स्वात्माऽलम्बनाभ्यासजन्यानुभवः परिपक्वदशाऽऽपनो भविष्यति तदा मनः आकालं-सदाकालं मनो निरालम्ब स्यादेवेति ॥१६॥ ॥५३५॥ Jan Education Internati For Private & Personal use only P w w.jainelibrary.org

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