Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 12
________________ में संग्रहीत पदों का वर्गीकरण और उनकी विशेषताओं पर प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रस्तावना में विस्तृत प्रकाश डाला गया हैं अतः यहाँ उनकी चर्चा अनावश्यक है। ___संकलित पद १६वीं सदी से २०वीं सदी तक के प्रमुख हिन्दी कवियों द्वारा रचित हैं, जिनका परिचय प्रस्तावना में अंकित है। संग्रहीत पदों में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं(१) आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहासकार, हिन्दी के काल-विभाजन में जिसे रीतिकाल कहकर उस काल में महाकवि बिहारी, देव, एवं घनानन्द द्वारा विरचित साहित्य के सम्भोग-शृङ्गार के लेखन का साहित्यकाल मानते हैं, उसी भौतिकवादी शृङ्गार-रस में सिक्त वातावरण में जैन हिन्दी कवियों ने दरबारी भोग-ऐश्वर्य की संस्कृति से परे रहकर विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा जर्जरित राष्ट्र एवं भयाक्रान्त समाज के उत्थान हेतु राष्ट्रिय एवं सामाजिक चरित्र-निर्माण की कल्याणकामना से अध्यात्म रस की निर्भीक एवं निर्बाध अमृत-स्रोतस्विनी को प्रवाहित किया है। इन पदों में सुख-भोग की भौतिक सामग्रियों की उपलब्धि की चाहना व्यक्त नहीं की गई है। बल्कि उनके माध्यम से कवियों ने केवल आत्मगुणों के विकास, समस्त प्राणियों के कल्याण तथा बिना किसी भेदभाव के सभी के प्रति समताभाव की प्राप्ति की कामना की है। (३) इन भक्ति पदों में व्यक्ति को यही प्रेरणा दी गई है कि वह दूसरों के केवल सदगणों को ग्रहण करे तथा अपने दोषों को सिंहावलोकन कर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करे। (४) सम्प्रदाय-भेद, जाति-भेद, ऊँच-नीच, गरीब-अमीर तथा देशी-विदेशी के भेदभाव से ऊपर उठकर समता एवं सर्व-धर्म-समन्वय की भावना पर इन पदों में विशेष जोर दिया गया है। (५) इतर धर्मों एवं धर्मायतनों को आदरसम्मान देने के लिए प्रेरणा दी गई है। (६) विश्व के कल्याण की दृष्टि से अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, स्याद्वाद एवं अनेकान्त के सिद्धान्तों को जीवन में उतारने पर विशेष बल दिया गया है। (७) साहित्य विधा की दृष्टि से समस्त पदों की प्रकृति शान्तरसमय है। (८) भाषा की दृष्टि से इन पदों पर ब्रज, राजस्थानी, गुजराती, मराठी या बुन्देली का प्रभाव परिलक्षित भले ही हों, किन्तु बृहदर्थ में वे सभी हिन्दी पद हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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