Book Title: Acharang Sutram Part 03 Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi PrakashanPage 18
________________ __ प्रासंगिकम् पं. श्री लीलाधरात्मजः रमेशचन्द्रः हरिया सटीक आचारांग सूत्र के भावानुवाद स्वरूप राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिन्दी टीका के शिल्पी है अभिधान राजेन्द्र कोश महाग्रंथ के निर्माता भट्टारक परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न विद्वद्वरेण्य व्याख्यानवाचस्पति पू. आ. देव श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न आगममर्मज्ञ मालवरत्न ज्योतिषाचार्य श्रीमद् जयप्रभविजयजी म. सा. "श्रमण" / __ इस महान ग्रंथ के निर्माण एवं संपादन कार्य में सहयोग प्राप्त हुआ है वयः संयमस्थविर श्री सौभाग्यविजयजी म. सा. प्रवचनकार श्री हितेशचंद्र विजयजी म. सा. श्री दिव्यचंद्र विजयजी म. सा. तथा प्रवर्तिनी पू. गुरुणीजी श्री मुक्तिश्रीजी म. सा. पू.साध्वीजी जयंतश्रीजी म. पू. साध्वीश्री संघवणश्रीजी म. पू. साध्वीश्री मणिप्रभाश्रीजी म. पू. साध्वीश्री तत्त्वलोचनाश्रीजी म. तथा हमारे बेन मा'राज साध्वीश्री सूर्योदयाश्रीजी म. सा. के शिष्या पू. साध्वीश्री रत्नज्योतिश्रीजी म. श्री मोक्षज्योतिश्रीजी म. श्री अक्षयज्योतिश्री म., माँ माराज श्री धर्मज्योतिश्रीजी म. आगमज्योतिश्रीजी म. आदि... ___ इस ग्रंथ में (1) अर्ध मागधी-प्राकृत भाषामें मूलसूत्र... (2) मूलसूत्र की संस्कृत छाया... (3) मूलसूत्र के भावार्थ... (4) श्री शीलांकाचार्यजीकी टीका का भावानुवाद... तथा (5) सूत्रसार का संकलन कीया गया है... इस ग्रंथ के प्रत्येक पेइज के उपर की और 1-1-1-1 ऐसा जो क्रमांक लिखा गया है, उसका तात्पर्य - 1 याने प्रथम श्रुतस्कंध... 6 याने प्रथम अध्ययन... 1 याने प्रथम उद्देशक... 1 याने पहला सूत्र... ___ इस ग्रंथ के भावानुवाद के लिये मुख्य आधार ग्रंथ मुनिराज श्री दीपरत्नसागरजी म. सा. के द्वारा प्रकाशित सटीक 45 आगम ग्रंथ का प्रथम भाग श्री आचारांग सूत्र... सटीक... इस प्रकाशनमें दीये गये सूत्र क्रमांक 1 से 552 पर्यंत संपूर्ण... यह हि क्रमांक इस प्रस्तुत प्रकाशन में लिये गये है... अतः प्रथम श्रुतस्कंध के षष्ठ अध्ययनके प्रथम उद्देशक प्रथम सूत्र क्रमांक में हमने उद्देशकके सूत्र क्रमांक के साथ साथ सलंग सूत्र क्रमांक भी दीये है... जैसे कि- जहां 1-6-1-1 (186) लिखा गया हैPage Navigation
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