Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रत्नप्रभाकरज्ञानपुष्पमाला. पुष्प नं. ८१ अथश्री. जैन जाति निर्णय प्रथमाक अथवा महाजनवंस मुक्तावलीकी, समालोचना। लेखक, श्रीमदुपकेशगच्छीयमुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज. द्रव्य सहायक, पँवारवंशीय श्रेष्टिगौत्रीवेदमुत्ताशाखायां श्रेष्टिवर्यताराचंदजी खीवराजजी. मु० बीलाडा (मद्रास) प्रकाशक, श्रीरत्नप्रभाकरज्ञानपुष्पमाला. फलोदी-(मारवाड) andi प्रथमावृत्ति १००० वीर सं० २४५२ विक्रम सं० १९८३ कि० चार आना. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SecDERDESTINDECHESDeeDERIOSITY ' सुधारा. GeneracocCEODOD पृष्ट १४ लीटी ५ में-पं. साधुरत्न लिखा है वह " खरतराचार्य जिनपतिसूरि का शिष्य सुमतिगणी चाहिये पृष्ट १८ लीटी १४ में-९९४३ के बदले ११४३ पढो। @SADRISODeceOHIDESHINDEEDERATI -.. - -.. .. भावनगर-धी आनंद प्रीन्टींग प्रेसमें शा. गुलाबचंद लल्लुभाइने छापी. ©easeemaEEDERED - पुस्तकों कि आशातना व अनादर न हों इस हेतु से इस किताब की नाममात्र किंमत चार आना रखी है जो रकम निच्छरावल कि आवेगी वह पुनः पुस्तकोंकी छपाइ में लगाई जावेगी। ROCEDESIDEREDEEPeceDGADCHIDel Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुपकेशगच्छीय. मुनिराजश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज । SC aa जैन दीक्षा १९७२ Neeg स्थान० दीक्षा १९६३ aaaaaaaa_5 NA जन्म सं. १९३७ विजयादशमो. आनंद प्रेस-भावनगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्यवाद के साथ स्वीकार HO पँवार वंश मुगुटमणि महाराजाधिराज उत्पलदेवका वंश परम्पर में श्रेष्ट गौत्र वैद्यमुत्ता शाखायां श्रेष्टिवर्य्य श्रीमान् ताराचंदजी खीवराजजी बीलाडा ( मद्रास ) वालोंने अपनी सुपुत्र रत्नकुँवरी के लग्न की खुशाली में मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज का सदुपदेश से आपने बीलाडा का बडामन्दिर में अठाई महोत्सव आठ दिन बड़े धामधूमसे संगीतके साथ चोसठ प्रकार की पूजा पढाई मयबेंडवाजोंके प्रभु सवारी चढाई गई तथा रु. २५) श्री ज्ञानप्रकाश मित्रमण्डलमें भेट कया श्री जैन पाठशालामें मावारी दो रूपैया देने का बचन दीया और रू. २५१) ज्ञानवृद्धि के लिये श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला मुः फलोदी को अर्पण कर मंगल मनाया उसे हम सहर्ष उपकार के साथ स्वीकार कर आप श्रीमान को धन्यबाद देते है और अन्य दानवीर धनाढ्योंसे निवेदन करते है कि एसे मंगलिक कार्यो में जहां हजारो रूपैये खरच किये जाते हैं वहां थोडा बहुत रूपैये से पवित्र कार्यों के लिये निकाल अपनी चल लक्ष्मीको अचल अवश्य बनावे किमधिकम् । आपका जोरावरमल वैद मेनेजर श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला ( फलोदी ) 0000000000 20000 0000 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 品 www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GEECTEDGC508018DGEDOX श्रीमान्मान्यवर - यादव ( भाटी ) वंशी मुत्ताजी हरषराजजी साहब-बीलाडा. आप श्रीमान्, आपके घरका जरूरी कार्य व वकालत के कार्यों.... ........ इतनी मुदतके लिये बंध रख मेरी बाई ( पुत्रि ) रत्नकुँवरीकी सादिमें आपने हरेक कार्योंमें तनतोड मदद करी है इतना ही नहीं बल्के मुझे जो प्रारंभसे अन्त तकके कार्यों में जो सफलता मीली वह सब आप ही की सहायताका फल है। आपका इस महान् उपकारको में किस शब्दों में लिखुं ! कारण एसा कोई शब्द ही मेरे पास नहीं है कि जिससे में आपकी तारीफ लिख सकुं आपसे यह याचना है कि महेरबानी कर मुझे कृतार्थ बननेका समय शीघ्र बक्सीस करावे । आपका कृपापात्र, खीवराज मुत्ता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat बीलाडा - (मद्रास) www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका. ४१ २२ विषय मुक्तावलिः का परिचय प्रस्तावना महाजन वंस १८ गौत्र संचेति गोत्र और समालोचना वरडिया ,, चोपडा , , धाडिवाल ,, , झामड-झाबक बांठिया गोत्र चोरडिया भन्सालि लुकड गोत्र माय-लुणावत बाफणा कटारिया डागामालु रांकावांका राखेचा लुणिया डोसीगोत्र सुरांणागोत्र प्रागेरिया सुघड दुगड गंगदुधेरिया पृष्ट | बोत्थरागोत्र | गेहलडा ६ | लोंढा बुरड नाहार ,, ११ । छाजेडगोत्र , १५ संघि भंडारी डागा ,, १७ ढहागोत्र १९ पीपाडा छलाणिगोडावत कटोतीया भुतेडिया २३ जडिया कांकरीया २५ । श्रीश्रीमाल ३२ पोकरणा कोचर और मुनोत श्रीमाल पोवाड | वैदमुत्ता द्वितीयांक. पार्श्व परम्परा सातगच्छों के नाम तातेडादि २२ जातियों बाफणादि ५२,, करणांवटादि १४, बलाहा रांकादि २६, मोरख पोकरणादि १७, कुलहट सुरवादि १%, ४६ | विरहट भुरंटादि १७ ,, ७२ ७२ ७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · २२ श्री श्रीमालादि श्रेष्टिवेद मुत्तादि ३० संचेति आदि ४४ अदित्यनाग चोरडियादि ८५ जातियों ७४ ७४ "" भूरि भटेवरादि २० जातियों ७५ ७५ भद्र समदडियादि २६ चिट देसरडादि १६, ७५ ७५ ७६ | प्रचलगच्छीय कुमट काजलीयादि १९ डिडु कोचरादि २१ कनोजिया दि लघुष्टि आदि चरड - काकरीया सुघडगोत्र लुंग चंडालीया आर्यलुणावत १७ १६ 32 "" در "" " " ७३ | डिया, हथुडीया, मडोवरा, मल, गुदे ७३ चा, छाजेड, राखेचा, अढारा गोत्रका यंत्र 22 ७६ ७६ ७७ ७७ ७७ ७७ टिया, काग, गुरुड, सालेचा, वागरेचा, कुकम चोपडा, सफला, नक्षत्र, आभड, छावत, तुंड वाघमार, पछो चार गोत्रका यंत्र अठारागोत्रका यंत्र कमलागच्छकी पोसालों कोरंटगच्छीय गोल तपागच्छीय 22 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat "" मलधारण च्छीय पुनमियागच्छीय नाणावालगच्छीय,, सुरांणाच्य पल्लिवाल गच्छीय कंदरसागच्छीय सांडेरागच्छीय कर्मचंद वच्छावत श्रीपूजकी पोलिसी " " 2.2 " "3 " ? ^ ^ ^ ^ ^ ^ ^ ^ ♪ ♫♫ G ७८ ७ 98 Τ ८२ ८३ ८३ ८४ ૮૪ ८४ ८४ ८५ ८५ ८५ ८५ ८६ ८७ www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वनाथाय नमः महाजन वंस मुक्तावलिका किंचित् 'परिचय' ' महाजन वंस मुक्तावलि' नामकी किताब वीकानेर निवासी उपाध्याय यतिवर्या रामलालजीने विक्रम सं. १६६७ निर्णयसागर प्रेस बंबईमें छपवाई थी पुस्तकका रंग ढंग अच्छा है और प्रस्तावना पेज पर लिखा है कि___इस किताबमें खरतरगच्छीय श्री पूज्यों और केइ विद्वानों के पुराणे दफतरोंसे मा हान भण्डारोंसे तथा वडा उपाश्रयसे प्राचीन इतिहास मीला सो मैंने इस किताबमें छपाया है + + + पुराणा इतिहास जैन धर्मियोंका जाननेकों यह ग्रन्थ अव्वल दर्जे की क्रांति दीखाता है एसा ग्रंथ भारतभूमिमें कहां भी छपके प्रकाशमें नहीं आया तब मैंने परिश्रम कीया है इत्यादि " यतिजी स्वयं वयोवृद्ध और अनुभवी है फिर खरतर गच्छीय श्री पूज्यों व विद्वानोंसे प्राचीन इतिहास मील जाने पर आपका ग्रन्थ क्रांतिकारी बन जाये इसमें शंका ही क्या है ? अगर यतिजी जैन जातिके बारामें इतना परिश्रम न करते तो जैन जातिका एसा इतिहास स्यात् ही प्रकाशमें आ सकता व जैन जातिका गौरव आपका ग्रन्थसे प्रगट हुवा हैं वह सदाके लिये अस्त ही हो जाता, कारण जैन जातिका एसा प्राचीन इतिहास सिवाय खरतर यतियोंके : मीलना ही असंभव था. इतना ही नहीं पर ऐसे इतिहासलेखक भी दूसरे गच्छोमें स्यात् ही मील सक्ते श्रापका बनाया हुश्रा ऐतिहासिक प्रन्थ एसे प्रमायोंसे प्रमाणिक है कि जिसको पढके प्राजके इतिहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) पुस्तक परिचय. सवेत्ता विद्वानोंको क्षणभर मुग्ध होना पड़ता है. पर कमनसिब है जैन समाजका कि आज १५ वर्षमें कीसी साक्षर जैनोंने आपका सत्कार तक भी नहीं कीया क्या यह कम दुःखकी बात है ? आपका नामके साथ ' युक्तिवारिधि ' की उपाधि भी लगी हुइ है वह भी केवल नाम मात्र की ही नहीं किन्तु आपने अनेक युक्तियों रचके वारिधि (समुद्र) भर दीया जिस्में कतीपय युक्तियोंका परिचय इस ग्रन्थमें दे अपनी उपाधिको ठीक चरतार्थ कर बतलाई है आपने इस ग्रन्थमें जीतनी जातियोंका इतिहास लिखा है जिस्में स्यात् ही कोइ जाति कमनसिब रही हो कि जिस्में आपकी युक्ति न हों ! उन युक्तियोंमें जो जो चमत्कार है उन सबके अधिष्ठायक भी खरतराचार्यों को ही बतलाया है कारण एसे चमत्कारी प्राचार्य अन्य गच्छमें होना यतिजीकी बुद्धिके बाहार है यतिजीकी युक्तियों और चमत्कारका थोडासा नमूना तो देख लिजिये । (१) संचेति कटारीया रांका लुणिया संधि कटोतीयादि इन सब जातियोंके श्रादि पुरुषोंको सांप काटा था जिसका विष खरतरा चार्योंने उतारके जैन बनाये यहां पर इतना विचार अवश्य होता है कि अगर उन जातियोंवालोंको कदाच दूसरी दफे सांप काटा हो उसे कीसी गुस्साई जीने विष उतारा हो तो उनको गुस्साईजीके उपासक बनना पडा होगा एवं कीतनी वार सांप काटे और कीतनी वार धर्म बदलावे उनकी संख्या तो हमारे यतिजी ही कर सक्ते है अगर वह प्राचार्य नेपाल देशमें चले जाते तो लाखों करोडो श्रावक सहजमें कर सक्ते कारण वहां सांप बहुत है और बहुतोंको काटा करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक परिचय. ( २ ) वरडिया डोसी सोनीगरा गेहलडादि को धन वतलाके जैन बनाये जिस्में गेहलडोकों तो दादाजीने ऐसा वास चूर्ण दीया कि एक कुंभारका कजावामें ५००० ईटां पर वास चूर्ण डालनेसे सब सोनाकी इंटा हो गई गेहलडोंने बडी भारी भुल करी अगर एकाद पर्वत पर वह चूर्ण डाल देता तो सब दुनियों जैन बन जाती स्यात इतनी उदारता न होगी ! ( ३ ) कुकड चोपडा लोढा जडिया श्राबेट खटोल रूणिवालादिको पुत्र दे जैन बनाया उस जमानामें स्यात् कोई भाग्यहीन ही बांझी रही होगी। (४) झाबक झांमड बाफणा मोहीवालादिको विजययंत्र दे संग्राममें विजय करवाके जैन बनाये. कमनसिब दिल्लिपति पृथ्वीराज चौहानका कि जिनकों एसा विजययंत्र न मीला जिससे आर्यभूमि म्लेच्छोंके हाथोंमे गई। (५) चोपडा राखेचा पुंगलीयाका कुष्ट रोग मीटाया । बांठीया शाह हरखावतोंका जलंधर रोग मीटाया । बाबेलादिका रक्तपीती रोग मीटाया। रूणीवालका क्षयरोग मीटाया। डागामालुका आधाशिसी का रोग मीटाया । बागाणी नेत्रोंका रोग मीटाके जैनी बनाया उस जमानामें बिचारा वैद्य हकीम तो घर बैठे हवा खाया करते होंगे। (६ ) चोग्डीयोंका मुछित रोग मीटाया. भंसालियोंके मृतक पुत्रोंको संजीवन, दूसग भंसालियोंके भूतको निकालके, आर्य गौत्रीको गोलीका फूल तथा जलोपद्रव मीटाके, आधेरियोंको कैद छुडाके, डागा-सुता हुवा बादशाहका पलंग मंगवाके तथा सुवर्णसिद्धि रसायण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) पुस्तक परिचय. बताके रांकोंसे वल्लभीका भंग, बुरडोंको सानात् शिवजीका दर्शन करवाके श्रीश्रीमालोंमें एक बादशाहसे हिन्दु धर्मकी निंदा करवाके इत्यादि । (७) छाजेडोंको ऐसा चूर्ण दीया कि मन्दिरोंके छाजा मोनाका हो गया अगर सब मन्दिर पर ही चूर्ण डाल देता तो कलिकालमें एक भरत महाराज ही बन जाता। (८) कांकरीयोको दो कांकरा दीया जिनसे चितोडका राणाकों पराजय हो भागना पडा अगर यह कांकरा पृथ्वीराज चौहान या राणा प्रतापके हाथ लग जाता तो लाखो मन्दिर और सानोंका विध्वंस क्यों होता ? (६) बोथरा कोचर और वेद मुत्तोंकी ख्यातोंमें तो आप युक्ति मन्दिर पर सुवर्णका कलस चढा दीया और ध्वजादंडके लिये पोरवाड श्रीमाल और श्रावगीयोंकी युक्तियों तय्यार कर युक्ति मन्दिरको सर्वांग सुन्दर बना दीया है। बलिहारी है यतियोंके इतिहासकी। यतिजी जैसे जैन जातिके इतिहास ज्ञाता है वैसेही गजपुत्तोंके इतिहासके भी जानकार है । तुबार पँवार पडिहार राठोड चौहान भाटी सोनीगरादिके इतिहासका परिचय भी आप अपने ग्रन्थमे ठीक दीया हैं नमूनाके तौर पर देखिये । (१) भाटीयोंकी वंसावलि-युगल मनुष्योंसे प्रारंभ करी है राजा यादवसे यादव नाम हुवा राजा यादवके १३ वी पीढीमें राजा भाटी हुवा जबसे यादवोंका दूसरा नाम भाटी हुवा राजा भाटीकी १७ वी पीढीमें राव जैसल हुवा जिसने वि. सं. १२१२ में जेसलमेर वसाया. अर्थात् यादवराजाकी ३० वी पीढीमें राव जेसल हुवा. हिन्दु शास्त्रोंसे यादवराजासे जेसलराव तक ५००० वर्ष हुवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक परिचय. (५) और जैन शास्त्रोसे ८६००० वर्ष हुवा जिसमें यतिजी ३० पीढी खतम करी है बलीहारी है यतिजीके इतिहासकी । (२) पँवारोंकी वंसावलिमे राजधूमसे ११ वी पीढीमें सोमदेव हुवा जिससे पॅवार जाति हुई सोमदेवके पुत्र सोढलसे सोढा जाती हुई धूमराजाकी तीसरी पीढीमें राजा धीरके पुत्र पुंडरिककी सातवी पीढीमें राजा गन्धर्वसेन हुवा उसके बाद क्रमशः पंच विक्रम और पांच भोज राजा हुवा अर्थात् धूमराजाके २१ वे पाट अन्तिम भोज हुवा धूमकी तीसरी साखामें २७ वी पीढीमें भीन्नमालका भीमसेन राजा २८ वी पीढीमे उपलदेव राजा हुवा जिसने ओशीयों बसाई । प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरिके उपदेशसे उपलदेवराजा जैन धर्म स्वीकार कीया इत्यादि। अब देखिये धूमराजा पँवारोके आदि पुरुष है यतिजी धमकी ११ वी पीढीमें पँवार हुवा लिखते है साढा जाती विक्रमकी बारवी सादीमें हुई जिसको विक्रम पूर्वे ८०० वर्षमे हुई लिखी है करीबन २००० वर्षका अन्तर है उपलदेवराजा विक्रम पूर्व ४०० वर्ष में हुवा जिसकोतो २८ वी पीढीमें लिखा है और उपलदेवराजाके बाद १५०० वर्ष पीछे हुवा भोजको २१ वी पीढीमें लिखा है इसमें करीबन् १७०० वर्षोंका फरक है इसी माफीक चौहान राठोड पडिहार शिशोदीयोंकी वंसावलियों लिखी है इतना ही अन्तर जैन जातियोंके बारामें लिखा है वह सब इस समालोचनाके पढनेसे ज्ञात होगा यहां पर तो हम नाम मात्र परिचय कराया है अस्तु । “लेखक.”. __- POSci१ राजा भोजके देहान्त होने पर धारा कुँवरोंने छीन लीया बाद भोजके परिवार वालोर्स जैन वरदीया जाति हुई ईस्का समय यतिजीने वी. सं. ९५४ का लिखा है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. प्यारे सजनगण ! कहनेकी आवश्यक्ता नहीं है कि इतिहास का अन्धेरामें इस पवित्र भारत भूमिपर एसा भी जमाना गुजर चुका था कि अज्ञ चारण भाट भोजकोंकी मनःकल्पित कथा कहानियों गसा और ख्यात्तों को इतिहास का रूपमें उच्चस्थान मील चूका था. व बडे बडे राजा महाराजाओंकी तवारिखोमें भी उन कल्पित ख्यातों को सुवर्ण अक्षरों से अंकितकर उनपर ईश्वरीय वाक्योंकी माफीक पूर्ण विश्वास कीया जाता था. इतनाही नहीं बल्के महाशय टोंड साव जैसे खोजी इनिहासकारोंने भी कीतनीक बातों मे धोखा खा अपनी कीताबों में भी उनकल्पित वातों को स्थान दे दीया था. __यह ही हाल हमारी ओसवाल जाति के बागमें हुवा | भाट भोजकोंने अनेक कल्पित ख्यातो वंसावलियों बनाके अज्ञ ओसवालों को धोखा दीया है जिस जातियोंके साथ भाईपा का सबन्ध नहीं था वहां तो भाईपा बना दीया जैसे सुराणा सांखलों के साथ सांढसीया लोका कुच्छभी संबन्ध न होने पर भी भाईपा लिख दीया और बाफणा जाघडों के भाईपा होने पर भी आपसमे सगपण करवा दीया इतनी ही गडबड कुलदेवियों और प्रतिबोधित श्राचार्यों के बारेमें कर ही है इस पर भी हमारे ओसवाल भाईयों को परवाही क्यों है ? वह तो उन भाटों की ख्यातोकों एक ईश्वरीय वचन ही मान बेठे है कीतनेक लोक तो अपने महान् उपकारी मांस-मदिरादि दुर्व्यसन छोडाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. (७) वाले प्रतिबोधित्त आचार्यों का नामतक भूल कृतघ्नी बन सब तरहसे दुःखी बनते जा रहे है । इन भाट भोजकोंकी कथा कहानियां या इधर उधरकी सुनी हुई वातोके श्राधारपर यति रामलालजीने भी एक " महाजन वंस मुक्तावलि " नामकी कीताब बनाइ हैं जिस्में कीतनी सत्यता है वह इस समालोचना द्वारा ज्ञात हो जायगा। ___कुदरतका अटल सिद्धान्त है कि अन्धेरा के पीछे उद्योत भी हुवा करता है ईस नियमानुसार आज पूर्वीय और पश्चिमीय विद्वानोंने शोधखोलकर प्राचीन शीलालेखों ताम्नपत्रों सिक्कानो और प्राचीन ग्रंथो मादि इतिहास सामग्रीद्वारा अनेक पुस्तकों छपाके जनता के आगे रखदी है जिससे भाट भोजकोंकी कल्पित कथाओं तो क्या पर चंदवरदाई के नामसे लिखा हुवा पृथ्वीराजरासा जैसा सर्वमान्य प्रन्थको भी एक कौनेमे विश्राम लेना पड़ा तो हमारे यतिमीकी लिखी महाजनवंसमुक्तावलि के लीये तो खारा समुद्र के सिवाय अन्य स्थानही कोनसा है की जहांपर विश्राम ले ! यतिजीको ध्यान रखना चाहिये कि "बाबावाक्यं प्रमाणम्" का जमाना अस्ताचल पर चला गया और सत्यका सूर्य उदयाचल पर प्रकाश कर रहा है एसा प्रकाशका जमाने में आपकी कल्पित कहानियोपर साक्षरलोग स्यात् ही विश्वास करेंगे यतिजीने खरतर श्रीपूज्यों मा वडा उपाश्रय का नाम लिख जनता को धोखा दीया है दरियाफत करने पर ज्ञातहुवा की नतों एसा गप्पोंका खजाना श्रीपूज्यों के पास है ! म वडा उपाश्रयमें है सिर्फ उक्तस्थानोंको कलंकित करनेको ही नाम लिख मारा है यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि यतिजीने जैमोका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) इतिहास नहीं लिखा पर इतिहासका खुन कीया है और अन्य लेख - कों कि हांसी करवाई है । प्रस्तावना " महाजनवंस मुक्तावलि ' का इस बखत हम दो विभाग करना चाहते है (१) चमत्कारी विभाग ( २ ) ऐतिहासिक. जिसमे चमत्कारी विभागको तो हम यहां पर ही छोड़ देते है कारण कीसी भी गच्छ में प्राभाविक प्राचार्य हुवा हो वह सब जैन समाजको भक्तिपूर्वक माननीय है दूसरा ऐतिहासिक विभाग पर हम इतिहास दृष्टि से यहां पर समालोचना करेंगे | कलिकाल का एक यह भी नियम है कि सत्यवादियों को खीर क्लेश का ही शरणा लेना पडता हैं स्यात् हमारे यति जी कि चिरकाल चली पोलका पडदा खुल जाने से या अपनीवृति का भंग होता देख अपने अन्ध भक्तों को बेहकावेगा कि देखो ! अपने दादाजी के बारे में कैसे कैसे लेख लिखदीया है ? इस के उत्तरमें मुझे पहले से ही कह देना चाहिये कि यतियोंकी उटपटांग वातों लिख मारनेसे तो मेरी श्रद्धा दादाजी से हटती है न मेरी यह श्रद्धा है कि दादाजी जैसे महान् श्राचार्य यतिजीके लिखा माफीक अयोग्य कार्य करते थे और न मैने दादाजी के बारामे ऐसा कोई शब्द ही लिखा हैं बल्के यतियोंने दादाजीपर केइ प्रकारके प्रयोग्य प्रक्षेप कीया है जैसे झाडा झपटा यंत्र मंत्रादि जिनसे स्वपर मतवाले दादाजी की हांसी करते है "कि जैनोंके पूर्वाचार्य यंत्रमंत्र झाडाझुपटा श्रौषध दवाइयो करतेथे " स्यात् यतिजी समझते होंगे की जैसे हम लोक दवाईदारू झाडा झपटा यंत्र मंत्र करते है वैसे ही पूर्वाचार्य करते थे पर यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. (९) यतियोंकी समज गलत है दरअसल दादाजी एसे गृहस्थ कार्य करनेवाले नहीं थे उन महात्माओंने जो कुच्छ कीया वह अपनी प्रात्मशक्ति और सदुपदेशद्वारा ही कीया था यतियोंने एक पापी पेटके लीय पूर्वाचार्यों पर अपनी प्रवृत्तिका आक्षेप कीया हैं उसीका प्रतिषेध इस समालोचनामें कीया गया है वह भी सप्रमाण न कि यतियों के माफीक कपोलकल्पित । . अन्तमें यह निवेदन है कि मेने यह समालोचना कीसीके खंडनमंडनकी नियतसे नही लिखी है मेरा हेतु सत्यासत्यका निर्णयकाही है दूसरा मेरा हेतु यह है कि इन जातियोंका निर्णय होजानापर जो में " जैनजाति महोदय" कीताब लिख रहा हूं उसका भी मार्ग निष्कण्टक हो जायगा वास्ते हरेक निर्णयार्थी भाई इसे अपनदृष्टि से पढे अगर इसमें कीसी प्रकारकी त्रुटी रही हो तो सज्जनताके साथ हमे सूचीतकरे ताकि द्वितीयावृत्तिमें सुधाग करवा दीया जाय इत्यलम. इससमालोचना के अन्दर प्रमाणमें दीये हुवे ग्रन्थोंकी सूची(१) गजपुताना का इतिहास | कर्ता-रायबाहादुर पण्डित गौरीशंकरजी (२) सीरोहीराज का इतिहास ) मोका. (३) सिंधका इतिहास ) (४) यवनराजों का " कर्ता-मुन्शी देविप्रसादजी. (५) राजपुतानाकी सोधखोल) (६) भारत के प्राचीन राजवंस भाग १-२-३ कर्ता--साहित्याचार्य विश्वेश्वर नाथ रेउ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. (१०) (७) प्राचीमराजवंसावलिः कर्ता पं. पुरुषोतमदास गौड. (८) टॉडराजस्थान हिन्दी अनुवाद कर्ता पं. बलदेवप्रसाद. (९) पडिहारोंका इतिहास कर्ता-मुन्शी देवीप्रसादजी. (१०) जैनगोत्रसंग्रह कर्ता-पं. हिरालाल हंसराज. (११) जैनमत प्रबंध कर्ता-प्राचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरिः (१२) उपकेशगच्छ बृहत्पटावलि (१३) खरतरगच्छ वंसावलि पक्षक. अन्यभी केई प्रमाणिक ग्रन्थोका प्रमाण दीया गया हैं । वि० इतना नम्र निवेदन होनेपर भी कीसी भाइयोंको इस समालोचनासे राजी-नाराजी हो तो उसका कारण यतिजी रामलालजी ही है नकि में मेने तो फक्त यतिजीकि लिखी मुक्तावलिपर सप्रमाण पालोचना ही करी है इसपर भी अनुचित हो तो जमाकी याचना करता हुवा में इस प्रस्तावनाकों समाप्त करता हुं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिनमा अथ श्री जैन जाति निर्णय प्रथमाक अथवा महाजन वंस मुक्तावलि की समालोचना. -*" महाजन वंस १८ गौत्र और रत्नप्रभसूरि महाजन वंस मुक्तावलि का कर्त्ता यतिवर्य उपाध्याय रामलालजाने अपनी किताब में जो-जो अनुचित बातें लिखी है उसे पूर्वपक्ष में रख उसका योग्य समाधान उत्तरपक्ष में किया जावेगा। पूर्वपक्ष-रत्नप्रभसूरि एक साधु के साथ ओशीयो आये, भिक्षा न मीलने पर उस शिष्यने गृहस्थों की औषधि कर भोजन लाता था. उत्तरपक्ष-यह बात बिलकुल गल्त है कारण रत्नप्रभसूरि ५०० मुनियों के साथ श्रोशीयों पधारे थे और भिक्षा न मीलनेपर तपश्चर्या करते थे देखिये प्राचीन पट्टावलि " श्रीमद्रत्नप्रभसूरी पंचसय शिष्य समेत लुणाद्रही समायाति " मासकल्प अरण्ये स्थिताः गोचर्या मुनीश्वरा बजंति परं भिक्षान लभते लोकाः मिथ्यात्व वासिता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२) अठारा गोत्र. यादृशा गता तादृशा आगताः मुनीश्वरा पात्राणि प्रतिलेप्य मासं यावत् संतोषेण स्थिताः बाद सूरिजी विहार करने लगे तब देवीने विनती करी इसपर ३५ साधु विशेष तपश्चर्या के करनेवाले तो सूरीजीके पास चतुर्मास कीया शेष ४६५ मुनि विहार कर अन्य स्थान चातुर्मास कीया. “ गुरुः पंचत्रिंशत् मुनिभिः सहस्थिताः" . यतिजी स्वयं गृहस्थों की औषधि कर गोचरी लाते है वह आक्षेप चौदह पूर्वधारी आचार्यपर लगाके अपनी एबको छीपानी चाहते है। पूर्व-रत्नप्रभसूरीने रूइ का सांप बनाके राजा के पुत्र को कटाया जिनसे सब नगरी में महान दुःख हुवा फीर विषोत्तार जैन बनाये. उत्त० यह भी गलत है चौदहा पूर्वधर एसे कार्य क्यों करे? नगरलोको को दुःखी क्या बनावे ? दर असल यतिजीने जैसा भाटों से सुना वैसाही लिखमारा है। न तो रूइ का सांप सूरिजीने बनाया न राजाके पुत्र को सांप काटा था। देखिये " मंत्रीश्वर उहडसुतं भुजंगेन दृष्टाः" यतिजी लिखते है कि सांप से विष खेंचाया था यह भी गल्त है " गुरुणा प्रासु जलमानीय चरणौ प्रक्षाल्य तस्य छंटितं सहसात्कारणे सजोविभुव" ___ पूर्व-उपलदे राजा जैनी भया सुनके भिन्नमाल का राजा भी जैनी भया और ओशीयो तथा भिन्नमाल में एक साथ मन्दिर की प्रतिष्ठा रत्नप्रभसूरिने कराई. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अठारा गोत्र. ( १३ ) उत्त० यह भी निर्मूल है न तो भिन्नमाल का राजा जैन 'हुवा न वहां मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई ओशीयों के साथ कोरंटनगर में प्रतिष्ठा हुई थी वह मन्दिर भी अभी तक मौजुद है देखिये. उपकेशे च कोरंटे तुल्यं श्रीवीर बिंबयों । प्रतिष्ठा निर्मिताशक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ १॥ पूर्व-ओसवाल होनेका समय २२२ वर्षों की गनती में मोशीयों का मन्दिर बनने में १० वर्ष लागा लिखा है. ____ उत्त० २२२ वर्ष की गीनती भी मिथ्या है और ओशीयो का मन्दिर बनने में १० वर्ष लागा लिखा सो भी निर्मूल है कारण मन्दिर पहले से तैय्यार था पर नारायण के नाम से सम्पुरण नहीं होता था तब सूरिजीने महावीर का नाम से बनाने की सूचना करी बाद मन्दिर तय्यार हो गया वीरात् ७० वर्षे मगशर शुक्ल ५ मि गुरुवार ब्रह्मण मुहूर्त में आचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रतिष्ठा करी. पूर्व-वि. सं. १०८० पाटण का दुर्लभराजा की सभा में जिनेश्वरसूरि और चैत्यवासियों में चर्चा हुइ जिस्में राजा दुर्लभने जिनेश्वरसूरिजीको खरतर बिरुद दीया और चैत्यवासियोंकों कउलया ( कवला ) शब्द से तिरस्कार कीया इत्यादि. उत्त० अव्वलतो १०८० में पाटण में दुर्लभराजा का 'राज ही नहीं था दूसरा १०८० जिनेश्वरसूरि जाबलीपुर (जालौर ) में हरिभद्रसूरि कृत अष्टकपर टीका लिख रहे थे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) अठारा गोत्र. तीसरा आत्मप्रबोध की भाषा कर्ता गणी क्षमाकल्याणजी लिखते है कि १०८० में जिनेश्वरसूरि जाबलीपुर में कर्चुरपुरीया गच्छ- - वालों के साथ शास्त्रार्थ कीया चोथा जिनेश्वरसूरि अभयदेवसूरिने अनेक ग्रन्थ लिखा है उन्होंने कहांपर भी अपने नाम के साथ खरतर शब्द नहीं लिखा है पांचवा खरतरगच्छीय पं. साधुरत्न गणीने सार्ध शतक की बृहत्वृत्ति में लिखा है कि प्राचार्य जिनदत्तसूरि को कोइ भी प्रश्नादिक पूछते थे तब सूरिजी बडी मगरूरी और खराई के साथ उत्तर दीया करते थे जबसे लोक खरतरा २ कहने लगा. इत्यादि प्रमाणोंसे यतियों का लिखना बिलकुल मिथ्या है दर असल चौरासी चैत्यों का मालिक वर्धमानसूरि का शिष्य जिनेश्वर सूरि उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्तसूरि के पास ज्ञानाभ्यास कर आप का उपदेश से चैत्यवास का त्याग कर क्रिया उद्धार कीया था जिस उपकार का बदलामें यतियोंने यह अपकार लिखमारा है विशेष खुलासा " जैन जाति महोदय" नाम की किताब में लिखा गया है. पूर्व-एक पंचप्रतिक्रमण की किताब में यतिजीने लिखा है कि रत्नप्रभसूरि स्थापित १८ गोत्रों से एक हटीले वैद वर्ज के शेष १७ गोत्र अपना गच्छ को चैत्यवासी समज खरतर गच्छ में आ गया बाद वेदों से भी प्राधा गौत्र खरतर को मानने लग गया । - उत्त० यतिजी ! वि. सं. १०८० में करीबन १२ क्रोड जैन . संख्या थी जिस्में विशेष ओसवाल उपकेशगच्छीय ही श्रावक थे कारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचती गोत्र. (१५) खरतराचार्य तो बाद में हुवा था १७॥ गौत्र खरतर हो गया था तो क्या एक ग्राम में हुवा था या सर्व भारत में खरतर दुवाई फीर गई थी ? अगर स्वगच्छ को चैत्यवासी समझ के ही अपना गच्छ छोडा था तो एसा कोनसा गच्छ है की जिस्में चैस्यवासी न हुवा हो । उस समय तो उपकेशगच्छ के हजारों मुनि स्थागी वैरागी भूमंडलपर विहार करते थे खेर फीर खरतरगच्छ में कोनसी त्रुटी हुई जिनसे वह १७॥ गौत्र वापीस उपकेशगच्छ को गुरु मानने लग लये आज भी मान रहे है और आप देख रहे है यतिजी ! आज की दुनीयों एसे द्वेष कदाग्रह को हजार हाथ से नमस्कार करती है गच्छ कदाग्रह को छोड दुनियों एक रूप में हो जैन कहलाने में ही अपनी उन्नति समजती है एसी और भी बहुतसी अनुचित वातें लिख मारी है पर इस समय हमे इतना अवकाश नहीं है और आज का समय भी एसी द्वेषकी वातो कों नहीं चाहाता है । वास्ते हम खास मुद्दे की बातों पर ही समालोचना लिखेंगे। (१) संचेतीगौत्र । वारघिजी लिखते है कि दिल्लि नगरमें सोनीगरा चौहान राजाका पुत्र बोहिक्षको सांप काटा वहांपर वि. सं. १०२६ मे वर्धमानसूरि आये विषोत्तर जैन बना संचेतीगोत्र थापन कीया और श्रीपालजी जैन सम्प्रदायशिक्षामें सांपकाटनेका नहीं लिखा हैं । समालोचना-अव्वलतो दानो यतिजी लिखते है कि हमारे प्राचीन दफतरोंसे यह ख्यातो लिखी है जिस्मे कीतना अन्तर है दर असल जिनके दलिमें आया वैसे लिख मारा, दूसरा १०२६ में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) संचेती गोत्र. दिल्लिपर चौहानोंका राज ही नहीं था पुत्रका नाम तो यतिजीने लिखदीया पर राजाका नाम यतियोंके दफतरवालोंको यादतक भी नहीं था. दर असल वि. स. ८४८ से १२२० तक दिल्लिपर तुवरोंका राज था १२२० मे अजमेरके विशलदेव चौहानने दिल्लिका राज छीन लीया १२४६ तक अन्तिम सम्राट् पृथ्वीराज चौहानका राज था तब यतिजी १०२६ में दिल्लिपर चौहानोंका राज लिखते है वह भी विलकुल गल्त है आगे चौहानों के साथ सोनीगरोंकी उपाधि भी १०२६ मे नहीं थी कारण नाडोलका चौहान राव पाल्हणदेव के तीन पुत्रोंसे कीर्तिपाळको १२ ग्राम जागीरीमें दीया था बाद कीर्तीपालने अपने भुजबलोंसे जालौर के कुंतुपाल पँवरका राज छीन के वि. स. १२३६ में जालोर अपने आधिन कर सोनगीरी पाहाड पर कील्ला बन्धाना शरू कीया। कीर्तिपालके बाद उनका पुत्र राव समरसिंह राजगादी बेठा उसने सोनगीरीका अधुरा कीला को सम्पुर्ण कराया तबसे चौहानों के साथ सोनगरोंकी उपाधि लगी। पाठक वर्ग विचारे कि चौहानों के साथ सोनागरोकी उपाधि वि. स. १२३६ के बाद लगी हुई तब यतिजी १०२६ मे दिल्लिमें सोनीगरोंका राज वतलाते है क्या यह मिथ्या नहीं है ? अब आचार्य वर्धमानसूरिका समयको देखिये वि. १०८८ में वर्धमानसूरि आबुपर विमलशाहाका मन्दिरकी प्रतिष्टा करी थी और १११० आसपासमें आपका स्वर्गवास हुवा वास्ते १०२६ मे वर्धमानसूरिका होना भी असंभव है यह सब ख्यातही विगर पैर की है नतो दिल्लिमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरडिया गौत्र. ( १७ ) उस समय चौहानोंका राज था न उस समय चौहानोंके साथ सोनीगरोंकी उपाधि थी न उस समय वर्धमानसूरीका होना साबित होता है दरअसल वीरात् ७० वर्ष श्रशीया नगरीमे आचार्य रत्नप्रभसूरिने १८ गोत्र में १० वा गोत्र संचेती स्थापन कीया था. संचेती सुचेति साहाचेती आदि ४४ शाखाएं एक संचेती गोत्रसे हुई है संचेतीगोत्र की वंसावली आजतक उपकेश (कमला) गच्छीय महात्मा लिखते आये हैं जहांपर कमलागच्छाचायों का विहार न हुवा वहां कीतनेक संचेती क्रिया तपा खरतर ढुंढीया तेरापंथीयोकी करने लग गये है इनसे उन जातिका मूल गच्छ बदल नहीं सक्ता है संचेतीयोंका मूल गच्छ तो कमलागच्छ ही है यतियोंकी गप्पों पर कोइ संचेती विश्वास न करेंगा. ( २ ) वरदीया - बरडिया | वारिधिजी लिखते है कि धारानगरीका राजा भोज परलोक होने पर धारा कुंवारो ने छीन ली तब भोजकी ओलादवाला लक्ष्मणादि केकइमें वास कीया वहां पर वि. सं. ९५४ में नेमिचन्द्रसूरि आये लक्ष्मणने धन संतानकी याचना करी सूरीजीने कहा कि तुम जैन धर्म पालो तो में धन बतला देता हूं । लक्ष्मणने स्वीकार कर लीया सूरीजीने लक्ष्मणके मकानके पीछे धन गड़ा हुवा था वह बतला दीया और तीन पुत्र भी दे दीया जिसमें नारायणकी ओरतने अपने पीहर में एक युगलको जन्म दीया उनमें एक पुत्री थी दूसरा पुत्र सांपकी सीकलसा था बाद पुत्री एकदा चुल्हामें आग लगाती थी आगे चुल्हा में पुत्र सुता था वह भस्म हो व्यंतरदेव हुवा उसने शाप दीया कि वरडियों के घरमें पुत्री जन्मेगी वह सुखी न रहेगी कीसीने कहा कि हमारी कम्मर में दर्द हैं व्यंतरने कहा कि लक्ष्मणके मकानकीभीत से स्पर्श करनेसे हरक रोग चला जावेगा इत्यादि और श्रीपालजी लिखते है कि वि. सं. १०३७ में वर्धमानसूरिने वरडिया बनाया हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) वरडिया गौत्र. समालोचना-अव्वलतो दोनों यतियोंमे आचार्यका तथा समयका कीतना अन्तर है ? आगे एक यति कहता है कि धन तो था परं संतान नहीं था दूसरा लिखता धाराका राजवंस. है कि धनसंतान दोनों नहीं था फिर भी दोनों कहते है कि उपेन्द्र (कृष्णाराज) (६२०) हमने प्राचीन इतिहाससे वैरासिंह ( प्रथम ) लिखा है तो हम कीसको सत्य सीयल ( प्रथम ) समजे ? इतिहासकी तरफ देखते है तो दोनोंका लेख वाक्यपति ( प्रथम ) निर्मूळ-मिथ्या है। कारण वैरीसिंह ( दूसरा ) वि. स. ६५४ मे न तो धारा सीयक (दूसरा ) (१०२९) पर राजा भोजका राज था न धारा तुंवारोने छीनली थी वाक्यपति (दूसरा) (१०६१) न उस समय वरदिया जाति सिन्धुराजा हुई थी देखिये शिला भोजराजा (१०९९) लेखोंद्वारा धाराके पँवारांकी वंसावलिः जयासिंह ( १११२) वि. सं. ९५४ में धारापर उदयदित्य (९९४३) भोजका राज तो क्या परं लक्षमण (११६१) भोजका जन्म ही नहीं था और भोजके पीछे तँवरोंका नरवर्मा ( ११६४) राज भी धारापर नहीं हुवा | यशोवर्मा (११६२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोपड गौत्र. (१९) था देखो उपरकी वंसावलीः न जाने यतियोंने नशाके तोरमें एसा असत्य लेख क्यो लिखा होगा ? स्यात् वरडियोंपर हुकुमत चलानी होगा कि तुमारे पूर्वजों को हमारे प्राचार्योने धन संतान दीया था पर दुर्दशातों वरडियोके घरमें जन्म लेनेवाली पुत्रीयों की है वहां सांपके कारण विचारी जन्मभर दुःखी रहेगा? परं नगरके लोगोंका अहोभाग्य है कि लक्षमणकी भिंतही उनके लिये हकीम बनगई थी न जाने विचारे वैद्य हकीमोका क्या हाल हुवा होगा ? दर असल वरडिया जाति नागपुरिया तपागच्छके श्रावक है नागोरका पुनडोष्टिने विक्रमकी बारवी सदीमें सिद्धाचलजी का वडा भारी संघ निकाला था जिसके अन्दर १८०० गाड़ीयों १००० सेजपाल १२०० बेल ५०० वाजंत्र बहुतसे साधु साध्वियां और देरासरों था वस्तुपाल तेजपाल जिनोंका अच्छा सत्कार कीया था. वहांपर चक्रेश्वरीदेवीने वरदान देनसे वरडिया जाति हुई है चामड रूणिवालभी इस जातिकी शाखावों है विशेष खुलासा वरदियोंकी वंसावलियों और महात्माओंकी पोसालोंसे मील सक्ता है। (३) कुकर चोपडा गणधर चोपड ___ वा. लि. मंडौरमें पडिहार (इंदा साखा ) राजा नांनुदे राज करता था वहां पर जिनवल्लभसूरि आये राजाने अर्ज करी कि मेरे पुत्र नहीं. सूरिजीने कहा एक पुत्र हमको दे देना में तुमको पुत्र दे देता हूं । राजाने स्वीकार कीया पुत्र हो गया परं सूरिजीका स्वर्गवास हो जानेके बाद जिनदत्तसरि आये पुत्र मंगा,राजारासिने पुत्र नहीं दीया. सूरिजी विहार कीया पर भापके प्रभावसे पुत्रको कुष्ट रोग हो गया बाद गणधर कायस्थकी भर्जसे सूरिजी वापिस पधारे कुंकडी गायका मक्खनकी मालस करनेसे पुत्र भारोग्य हो गया राजा जैन धर्म स्वीकार कीया जाति कुकड चोपडा तथा गणधर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) चोपड गौत्र. कायस्थ जैनी होनेपर गणधर चोपडा जाती हुइ ईत्यादि-और यति श्रीपालजी लिखते है कि वि. स. ११५२ मे जिनवल्लभसूरीने पडिहार नानुदे राजाका पुत्र धवलचंद्रका कुष्टरोग मीटाके जैन बनाया. ___ समालोचना-श्रीपालजी वि.स. ११५२ जिनवल्लभसूरि और रामलालजी जिनदत्तसूरि ११७६ के आसपास में चोपडा बनाया लिखता है इसमे सत्य कोन ? इतिहास दृष्टिसे दोनों असत्य है कारण इन दोनोंके समय न तो मंडोरमे कोइ नानुदे राजा था और न पडिहारोंमे इंदाशाखाका जन्मभी हुवाथा इतिहास कहता है किरावरघुराज ११०३ | इन सो वर्षों में नानुदे राजाका नाम निशा न तक नहीं है प्रसिद्ध पडिहार नाहाडरावने ,, सज्हाराज वि. स. १२१२ मे पुष्करका तलाव खोदा,, संबरराज याथा नाहाडरावकी पांचवी पीढीमे अमाभुपंतिराज यक राजाके १२ पुत्रों से साधकरावका पुत्र इंदासे पडिहारोंमे इंदा साखा चली इनका समय १३३४ के आसपास है य,, नाहाडराव (१२१२) तिजी! आखों बन्धकर जरा सोचना तो था कि १३३४ में इंदा साखा हुइ तब ११५२ मे इन्दा साखाका राजा नानुदेको कैसे प्रतिबोध दीया होगा यतिजीने यहभी निर्णय नहीं कीयाकि वल्लभसूरिकी पुत्र उधाई दादाजीने वसुल करी या राजाको वैसा ही करजदार रख दीया दर असल कुंकड नहीं परं कुंकम चोपडा धूपियादि उपकेश-कमलागच्छीय श्रावक हैं कुंकड चोपडा ,, अनेराज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाडिवाल गौत्र. (२१) गणधर चोपडादि जातियों इनोंकी अन्तर शाखाओं है देखो “जैन जाति महोदय" . (४) धाडीवाल गौत्र। वा. लि. गुजरातमें डिडुजी नामका खीची, राजपुतोंको साथ ले धाडा पाडता था पाटणका सिद्धराज जयसिंह पकडनेका बहुतोपाय कीया पर हाथ नहीं आया एकदा पट्टणका राजखजाना लुट लिया सिद्धराजने २०००० सवारोंको भेजा उस समय डिडुजी उंझाग्राममें चोरीका माल वेचता था जब २०००० सबारोने उंझा ग्रामके चौतर्फ घेरा लगा दीया उस समय जिनवल्लभरिने वासक्षेप दे दीया की वह धाडायती २०००० सवारोकों पराजय कर अपने पावों लगाया इस वातको सुन पाटणपति डिडुजीको ४८ माम इनामर्मे दे अपना सामन्त बनाया डिडुजी जैनी हुवे जीनकी धाडीवाल जाति थापन करी इत्यादि समालोचना-अव्वल तो यह वात असंभव है कि जैनाचार्य एसे धाडायतियोंकी सहायता करे व अधर्मयुक्त कार्यमें मददगार बन उसे वासक्षेप देवे वहभी एसा कि सत्यका पराजय करनेवाला. दूसरा सिद्धराज जयसिंह एसा निर्बल नहीं था कि एक धाडायति अपर्ने २०००० सवारोकों पराजय करनेवालेको ४८ ग्राम इनाम में दे जिसकी गन्धभी तवारिखोंमें न मीले । यतिजी इस ख्यातके लिखने पहले जरा पट्टणका इतिहास पढ लेते तो ज्ञात हो जाता कि सिद्धराज जयासिंह एक सामान्य राजा था ? या उनके नाम मात्रसे घडे वडे राजा गभराते थे वह राजा एक धाडायतीसे घवराके ४८ माम दे दे यह सर्वथा असंभव है दरअसल विक्रमकी इग्यारवी शतान्दमें पाटणका राजा भीमके समय पाबुपर एक डिडु नामका पँवार गुजरातमें धाडा कीया करता था उसपर राजा भीमका कोप होनेसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) झामऊ झाबक गौत्र. पह धारानगरीका राजा भोजके सरणे चला गया था स्यात् यतिजीने उसकी कथा सुन धाडायति के नाम पर धाड़ीवालोंकी ख्यात लिख मारी है पर कहां तो डिडु धाडायतीका समय और कहां जिनवल्लभसूरिका समय डिडुके समय जिनवल्लभसूरिका जन्मभी नहीं था. अर्थात् १०० वर्ष का अन्तर है धाडिवाल जाति कोरॅटगच्छाचार्य प्रतिबोधित है देखो " जैन जाति महोदय" (५) झाबक झामर झंषक जाति श्रीपालजीने अपनी कीताबमें इन जातियोंको खरतर होना नहीं लिखा जब रामलालजी लिखते है कि भबमा नगरमें राठोड झाबदे राजा चार पुत्रोंके साथ राज करता था वहांपर वि. स. १५७५ में जिनभद्रसूरि आये राजाने भक्ति करी कारण राव सीहाजी आसस्थानजीनेभी जिनदत्तसूरिकी भक्ति करीथी दादाजीने उनका भविष्यभी बतलायाथा. प्रस्तु। यहां झाबदे राजापर दिल्लिके बादशाहाका हुकम पाया कि टाटिया भील मेरा हुकम नहीं मानता है वास्ते तुम उसे पकड लावेंगे तो तुमे ईनाम दीया जावेगा, राजा सूरिजीके पास आया सूरिजीने राजाकी अर्ज सुन एक यंत्र कर दीया राजाने यंत्रको झंघा चीर अन्दर घुसा दीया यंत्रके प्रभावसे भीलको पकड बादशाहके पास भेज दीया बादशाहसे ईनाम पाया. राजा एक पुत्रको तो राजके लिये छोड दीया बाकी तीन पुत्रोंके साथ जैनी बन गया तीन पुत्रोंके नामसे झामड झाबक मंबक एवं तीन जातियों स्थापन करी. समालोचना-अव्वलतो वि. सं. १५७५ में मबा नगरही नहीं था इतिहास कहता है कि इ. स. १६ वीं शताब्दीमें लाभाना जातिके झबु नायकने झबश्रा बसाया था बाद वि. स. १६६४ मे बादशाहा जहाँगीरने राठोड केशवदासको झवा इनाममे दीया था जब १६६४ में राठोडौँका राज झबश्रामें हुवा तब १५७५ में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बांठिया गौत्र. (२३) राठोडोंको प्रतिबोध देना कैसे सिद्ध हो सकता है--अब राठोड केशवदास कोन था इसके बारामें जोधपुर तवारिखमें लिखा है कि राव जोधाजीके पुत्र वरसिंहजी के पांचवी पीढीमें केशवदासजी हुवा रावजोधाजी | है यतिजीको जरातो विचार करना था कि बिल. वरसिंहजी कुल झूटी बातोंसे झाबक झामड कैसे मान लेगा कि हमारे गुरु खरतर है। आगे देखिये दादासहिाजी जीका स्वर्गवास वि. सं. १२११ में हुवा था उस जयासिंहजी समय रावसीहाजी तथा पासस्थानजीका जन्म रामसिंहजी ही नहीं था. तो दादाजीकी भक्ति कीसने करी और दादाजी कीसको भविष्य वतलाया वि. स. भीमसिंहजी १२८२ में राव सिंहाजी मारवाडमें आये थे केशवदासजी | बासस्थानजीका समय १३३० का है तब दादाजीका स्वर्गवास समय १२११ का है पाठक सोच सकेगा कि यतियोंने कीधरकी ईट कीधरका पत्थर जोड ढांचा खडा कीया है दरअसल शांमड झाबक तपागच्छाचार्योंके प्रतिबोधित श्रावक है खराडी बलुंदाके कुलगुरु झांमडोंकी वंसावलि लिखतेहै विक्रमकीअग्यारहवीसे चौदहवी शताब्दीमें कीये हुवे झांमडोंके सेंकडो धर्मकार्यों तथा पन्दरवी शताब्दीमें भंवल ग्राममें बाहारसे आके मामड़वास कीया इत्यादि प्रमाणसे यतियों का लिखना निर्मूल और आकाश कुशमवत् है। मॉमड झाबक तपागच्छके है (६) बांठीया बोचा शाहा हरखावतादि वा. लि. रणतभौवरके पँवारराजा लालसिंहके पुत्र ब्रह्मदेवको जलंधरका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) बांठिया गौत्र. रोग हुवा था वि० सं० ११६७ मे जिनवल्लभसूरिने चिकत्सा कर जैन बनाया. लालसिंहका वडा पुत्र बांठा था जिसका बांटीया ब्रह्मदेवके ब्रह्मचा लालाके लालाणी हरखाके हरखावत उदयसिंहको भरूचके नबाबने शाह पति दी ++ चीमनवांठीया वि० सं० १५०० हमायू बादशाहाकी फोजमें लेनदेन करता था मुशलमानोके सोनाका वरतन पीतलके भाव ले लेनेसे बहुत धनाढ्य हुवा संघ निकलके अकबरी मोहरकी लेण दी इत्यादि समालोचना-अव्वलतो विक्रम कि बारहवीशताब्दीमें रणथंभोर पर पँवारोका राज होना कीसी इतिहाससे सिद्ध नहीं होता है किन्तु रणथंभौर चौहानोंका राज सिलालेखोंसे सिद्ध है दूसरा वि० सं० १५०० में हमायूका राज तो क्या पर जन्म भी नहीं था वि. सं. १५८७ में हमायू दिल्लिका बादशाह था आगे चीमनबांठीयाके बारामें जैन एसे धोखाबाज न थे की सोनाका वरतन पीतलके भाव में ले ले ! क्या मुसलमान एसे मूर्ख थे की चीमनवाडीयाको सो. नाका वरतन पतिलके भावमें दे देते थे? क्या यतिजी ! वह वरतन रात्रिमें देते थे या दिनमें? यतिजीने राजा लालसिंहके पुत्रोसे वांठीया ब्रह्मेचा लालाणी शाहा हरखावत जातियो होनी लिखी है जब तपागच्छीय कुलगुरुओंकी वंसावलिमें लिखाहै कि श्राबुके पास प्रामा ग्रामके पँवार राजा मधुदेवको वि. सं. नागपुरिया तपागच्छाचार्य भावदेवसूरिने प्रतिबोध दे जैन बनाया बाद वि. सं. १३४० में कवाड जाति १४९९ में बांठीया १६३१ शाहा हरखावत जातिनिकली पाठकवर्ग यतिजीका समय ओर इन जातियोंका समयका मालान करे कि कतिना अन्तर है अजमेर वाले धनरूपमलजी शाहाके पास खुर्शी नाम तैय्यार है बाठीयादि का गच्छ तपा है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोरडिया गुलेच्छादि. ( २५) (८) चोरडीया गुलेच्छा पारख बुचा सावमुखादि बा० लि. पूर्व देश चंदेरी नगरी में राठोड राजा खरहत्य राज करता था उस समय राठ लोकोकी फोज संग ले यवन लोक काबलि मुल्क लुट रहे थे. यह वात खरहत्थराजाको खबर होते ही अपने चार पुत्रको संग ले काबुलमे जा यवनोंसे संग्राम कर घनछानके भगा दीया पर अपने चारो पुत्र मुर्छित हो गये उनको चंदेरीमे लाये जीने की आशा छुटी xx जिनदत्तसूरि पधारे धर्म पालनेकी शरिर चारो पुत्रोंको हुसीयार कीये राजापुत्रों सहित जैनधर्म स्वीकार कीया उन चारों पुत्रों के अलग अलग गौत्र स्थापन कीया. प्रामदेवका चोरडीया, निंबदेवका भटनेरा, चोधरी भैसाके पांच ओरतोके प्रत्येकपुत्रास क्रमशः पारख बुचा सावसुखा गदईया (०) चोथा आसलका आसांणी x आगे भैसा शाहाके संघका बारामें कागद काला कीया हैं । समालोचना--अव्वल तो चंदेरी पूर्व में नहीं किन्तु मालवा में है दूसरा चंदेरीमें राठोडोंकाराज नहीं किन्तु चेदीवंसीयोंका राज था. राठोडोंका इतिहास विक्रमकी पांचवी शताब्दी से आजतक का तय्यार हो चुका परं चंदेरीमें कीसी राठोडोंका राज होना पाया नहीं जाता है अगर सामान्य व्यक्ति हो तो इधर उधर गुप्त रह सक्ती है परं एक शूरवीर-साहासिक जो काबुलका रक्षण करनेवाला चार पुत्रोंके साथ हजारों यवनोसे धन छीन कर मार भगानेवाला राजा खरहत्थ कोनसी गुफामें गुप्त रह गया की कीसी इतिहासकारोंने या वरिरस पोषक भाटोंने जिसकी जिक्र तकभी नहीं करी ! वारीधिजीने यह खुलासा नहीं कीया कि खरहत्थराजा पुत्रों सहित जैन बन जाने के बाद चंदेरीका राज कीसको अर्पण कीया ? यतिजी, उस जमानामें विदेशीयोंके हुमलोंसे हिन्दुस्तानका रक्षण करना तो एक बडा भारी प्रश्न हो गया जिस्में खरहत्थ काबलि मुल्कका रक्षण करनेको गया क्या कोई विद्वान इस वातको मानेगा? आज साक्षर चोरडीया गुलेच्छा पारखादि आपकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) चोरडिया गौत्र. कल्पित कथाओं पर स्याही विश्वास करें । अस्तु | दरअसल उस समय चंदेरी नगर में चेदीवंशी राजा करणका राज था इतिहास कहता है कि वि. सं. ११६४ में पाट्टणका सिद्धराज जयसिंहने चंदेरीपर चढाई करी थी चंदेरी का राजा करणको पराजय कर एक सोनाकी पालखी दंडमें ली वह पालखी पाटणपतिने सोमनाथ महादेवको अर्पण करी थी वाद वि. सं. १२०६ में सोरठ पति चंदेरीपर चढाई करी उस समयतक चंदेरेमेिं राजा करणका ही राज था अर्थात् वि. सं. ११६४ से १२०६ तक चंदेर में चेदविसियोंका राज था जब यतिजी वि. सं. ११७६ में दादाजीने चंदेरीके राठोड राजाको प्रतिबोध दीया लिखा यह बिलकुल मिथ्या निर्मूल नहीं तो और क्या है ? दरअसल दादाजी जिनदत्तसूरीके करीवन् १६०० पहिले आचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रशीयोंमें महाजनवंसके १८ गोत्र स्थापन कीया था जिसमें ११ वा गोत्र ' आदित्यनाग' स्थापन कीया था जिसकी साखा चोरडीया गूलेच्छा पारखादि है यतिजीने भी अपनी कीताब में १८ गोत्रोंके अन्दर "चणागा" अर्थात् " अदित्यनाग " गौत्र रत्नप्रभसूरि स्थापन कीया लिखा है और सिलालेखों में भी चोरडीयोंका मूल गौत्र आदित्यनाग ही लिखा जाता था एक सिलालेख नमूनाका तौर पर ग्रहांदरज कर दीया जाता है वह जैनमूर्त्तिपर खुदा हुवा है । वै ० " सं १५६२ ० शु० १० रवि० श्री केशज्ञातिय श्री आदित्यनाग गोत्रे चोरडिया साखायां व ० डालणपुत्र रत्नपान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोरडिया गौत्र. ( २७ ) सवतव धधुमलपुत्रेन मातृपितृ श्रे० श्री संभवनाथ बिंब प्र. श्रीउकेशगच्छे कुंदकुंदाचार्य श्रीदेवगुप्तसूरिभिः '' (श्रीमान् पुरणचंदजी नाहारका छपाया हुवा सिलालेख संग्रहसे ) यतिजीने चोरडियादिको स्वतंत्र जाति लिखी है पर इस सिलालेखसे यह सिद्ध होता है कि चोडिया जाति स्वतंत्र नहीं किन्तु आदित्यनाग गोत्रकी एक साखा है इसी माफीक चोरडियोंसे गुलेच्छा पारखादि ८५ साखायें निकली है वह सब कमलागच्छवालोंको ही गुरू मानते है हां कहांपर कमला गच्छवालोंका विहार नहीं हुवा वहांपर अज्ञ लोक अन्य गच्छकि क्रिया करने लग गये पर उनकी वंसावलियों तो आज पर्यन्त कमलागच्छके महात्मा कुलगुरु ही लिखा करते है । अस्तु । ___एक खरतरगच्छकी पट्टावलि इस समय मेरे पास है वह ३५ फीट लम्बी १ फीटकी चौडी है जिस्में गुलेच्छोंकी उत्पत्ति इस माफीक लिखी है करथोजी (चोरडीया) गालुप्राममे वसयिा क्रमशः उनकी २७ पीढी करथो. आमदेव-लालो-कालु-जाणग-करमण सेरूण-जालो-लाखण पाल्हण-आलपाल-भोमाल-वीदेव-जेदेव पददेव-बोहित्थ-जैसो-दुरगो-सीरदेव-अभेदव--महेस-कालु-सोमदेव-सोनपाल-मुशल-साहादेव-गुलराज. एवं २८ गुलराज गोलुप्रामसे वि. स. ११८४ में निकलके (नागोर) वास कीया " जवसु गोलेच्छा कहांणा" अगर २७ पीढीका ७०० वर्ष बाद करदे तों खरतरपट्टावलिसे भी विक्रम सं. ४०० तकतो चोरडिया मोजुद थे तो ११७९ में दादाजीने चोरडीया बनाया कैसे सिद्ध हो सके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) चोरडिया गौत्र. अर्थात् यतिजीका लिखा मिथ्या है उसी पट्टावलिमें एक बात और भी महत्वकी लिखी है वह यह है कि उपकेशाचार्य देवगुप्तसूरिकी बहेन सुगनीबाई खरतराचार्य जिनचन्द्रसूरिके पास दीक्षा ली थी बाद श्रावणपूर्णिमाके रोज जिनचन्द्रसूरि उस सुगनी साध्वी को राक्खीदे देवगुप्तसूर के पास भेजी साध्वी अपने भाई आचार्य को बन्दनकर राक्खी को आगे रखी, सूरिजीने कहा साध्वी यह राखी कीस बास्ते ? साध्वीने कहा आप हमारे संसार पक्ष के भाई वास्ते मे राखी बन्धनेको आई हुं सूरिजीने राखी ले के कहा कि में तुझको क्या देउं ? इसपर साध्वीने कहा कि आपके महाजनों का बहुत गोत्र है उनसे गुलेच्छा पारख बुचा सावसुखा एवं चार गोल हमको दे दिरावे ? इसपर उदारवृत्तिवाला श्राचार्यने उक्त चार गौत्र सुगनी साध्वीको राखीका दानमें देदीया यह जिक्र बीकानेर में विक्रमके सतरवी शताब्दीकी है अगर इस घटनाको सत्य मानली जावे तो एक वीकानेर के लिये ४ गोत्रदे भी दीया हो तो भी उनके मूलगच्छ तो उपकेशगच्छ (कमला) ही है । आगे भैसाशाहाका संघके बारामें यतिजीने कागद काला कीया है वि.स. १९७९ के आसपास में कोई भी भैसाशाह हुवा भी नही है इतिहासक सोधखोल से पत्ता भी लगा है कि चोरडियों में चार भैसाशाह हुवा ( १ ) वि. स. २०६ आभानगरी में भैसाशाह हुवा जिसकी एक दुकान मांडवगढमें भी थी भैसाशाहकी माताने शत्रुंजयका बड़ा भारी संघ निकाला इसके पास चित्रावेली थी ओशीयों मे स्नानमहोत्सव कर एक लक्ष अश्व एक लक्ष गौएं दानमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोरडिया गौत्र. (२९) दी ७४॥ शाहामें इस भैसाशाहाका दूसरा नम्बर है इसका विस्तार पूर्वक लेख श्रीमान् चन्दनमलजी नागोरी छोटी सादडीवालाने वारशासनांक ७ ता. २०-११-२५ में दीया था (२) दूसरा भैसाशाह वि. स. ५०८ के आसपास हुवा जिसका सिलालेख वर्तमान कोटा राजका अटारू ग्राम के जैनमन्दिरकी मूर्तिपर खुदा हुवा है यह लेख जोधपुरवासी इतिहास खोजी मुन्शी देवीप्रसादजीकी सोधखोल से मीला है इसी भैसाशाहका व्यापार रोडा विणजाराके साथ था केवल व्यापार ही नहीं किन्तु उन दोनों के आपसमें इतना प्रेम था कि भैसा और रोडा दोनोंका नामसे मेवाडमे भैसरोडा नाम का ग्राम वसाया था वह वर्तमानमें भी मोजुद है (३) तीसरा भैसाशाह वि. सं. ११०० के आसपास डिडवाना नगरमें हुवा जिसने डिंडवानाका कीला तथा एक कुँवा बनाया था आज भी औरतें पाणि लाती है वह कहती है कि में भैसाशाहके कुवाँसे पाणी लाई वहां के राजाके साथ अणबनावसे भैसाशाहने डिडवाना छोड भिन्नमालमें वास कीया वहांपर वि. सं. ११०८ में आचार्य देवगुप्तसूरिका पाट महोत्सव कीया भैसाशाहाकी माता शत्रुजयका संघ निकाला गूजरातमें भैसापर पाणीलाना छुडाया इसके समयमे गदइया जाति हुई विशेष खुलासा जैनजाति महोदय चोरडियोंकी ख्यातमे लिखा गया है (४) चोथा भैसाशाह नागोरमें हुवा टीकुशा बालाशा गीसुशा एवं तीन, भैसाके भाई थे चारोंभाईयोंने जगद्विख्यात नाम्वरी करीथी इन लेखोंसे यतिजीका लेख निर्मूल होजाता है। आगे चोरडियों के बारामें ज्यादा लिखनेकी आवश्यकता नहीं है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2.) चोरडिया गौव. कारण सब जगह चोरड़िया कमलागच्छको ही अपना गुरु मानते है इस बार आगे अदालतोंसे इन्साफ भी होचुका है जिसकी एकाद नकल वहां पर देदेना अनुचित न होगा ! मोहर छाप | श्रीजलंधरनाथजी श्रीनाथजी संघवीजी श्री फतेराजजी लिखावतो गढ जोधपुर जालौर मेडता नागोर सोजत जैतारण बीलाडा पाली गोडवाड सीवाना फलोंदी डिड़वानो परबतसर विगैरह परगना में ओसवाल अठारा स्वांपरी दीसा तथा थांरे ठेठु गरु कमलागच्छारा भट्टारक सिद्धसूरिजी है जिणोंकने इणारा चेला हुवे तीणाने गुरु करने मानजो ने जको नहीं मानसी ती दरबारमे रु १०१) कपुरका देशी ने परगना में सिकादार हुसी तीको उपर करसी तीखोरा आगला परवाणा खास इणो कने हाजर है ( १ ) महाराजश्री अजितसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो स. १७५७ रा आशोज शुद्ध १५ को (२) महाराजश्री अभयसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो सं. १७८१ रा जेठशुद्ध ६ को (३) महाराजावडमहाराजश्री विजयसिंहजीरी सलामतीरो खास परवाणो सं १८३५ आसाढ वद ३ को इण मुजब अगला परवाण श्रीहजुरमें मालुम हुवा तरेफिर श्रीहजुररा खास दसखतों को (४) परवाणो सं १८७७का 'वैशाख चद ७ रो हुवो तीस मुजब रहसी वीगत खाप अठारेरी तातेड, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोरडिया गौत्र. (३१) बाफमा, वेदमुत्ता, चोरडिया, करणावट, संचेती, समदडिया, गदइया लुणावत कुमट भटेवरा छाजेड़ वरहट श्रीश्रीमाल लघुश्रेष्टि मोरखपोकरण रांका डिंडु इतरी खापांवाला सारा भट्टारक सिद्धसूरि और इणोरा चेला हुवे जिणोने गुरु कर मानजो अने गच्छरी लाग हुवे तीका इणोने दीजो. अबार इणोरेने लुकोंरा जतियोरे चोरडियोरी खापरो असरचो पडियो जद अदालतमें न्याय हुवो ने जोधपुर नागोर मेडता पीपाडरा चोरडियोरी खबर मंगाई तरे उणोने लिखीयो के मोरे ठेटु गुरू कमलागच्छरा है तीण माफीक दरबारसु निरधार कर परवाणे कर दीयो है सो इण मुजब रहसी श्री हजुररो हुकम छै सं. १८७८ पोस वद १४ (नकल हजुररा दफतरमें लीधी छै) इस परवाणासे भी यह ही सिद्ध होता है कि चोरडिया जाति कमलागच्छकी है जब चोरडिया कमलागच्छके है तब चोरडियोंसे निकले हुवे गुलेच्छा पारख सावसुखा बुचा भटनेरा आसाणी आदि ८५ जातियोंके गुरु भी कमलागच्छवाले ही है यतिजीने कीतनेक स्थानपर पारख गुलेच्छादि खरतरगच्छकी क्रिया करते देख उनको विश्वास दीलानेके लिये यह ढंचा खडा कीया ज्ञात होता है तात्पर्य फक्त रोटी पीछोवडीके लीये कीतना असत्य लेख लिख जगत्में अपनि कैसी हाँसी करवाइ है क्या जगद्विख्यात चोरडिया जाति कमलागच्छोपासक है इसे कोइ अन्यथा कर सकेगा? अपितु कभी नहीं इस जातिका वडवृक्ष देखो " जैन जाति महोदय" कीताबमें इत्यलम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भन्साली गोत्र. ... (८) भन्साली चडालीया भूरी भादाणी। .वा. लि. लोद्रवा पट्टनमे यादववंसी धोराजी राजा था उसके पुत्र सागर युग राजा था सागरकी माताको ब्रह्म राक्षस लागा. वि. सं. ११९६ में दादा जिनदत्तसूरि भाये राक्षसको निकाल राजाको जैन बना भन्साली जाति थापी पर राक्षसने दादाजीको मरणान्त कष्ट भी दीया था. - समालोचना–लोद्रवा पाट्टणमें पहला पँवारोका राज था जिसको देवराज भाटीने छीन लीया वि. स. ६०६ में देवराजने एक कीला बनाया अर्थात् देवराज भाटीसे लोद्रवामें भाटीयोंका राज कायम हुवा देवराज भाटीसे दादाज के समय तक लोद्रवामें धीराजी नामका राजा हुवा या नहीं इस बारामें इतिहास क्या कहता हैभाटी देवराज (९४९) | इस वंसावलिसे यह सिद्ध होता भाटी मुदाजी है कि यतिजीके लिखा समय लोद्रवा की गादी पर न तो धीराजी राजा भाटी वछुराव (१०३५) हुवा न सागर युगराजा हुवा न भाटी दूसाजी (११००) भन्सालीयोंसे चंडालीया साखा भाटी विजयराव निकली यतिजी स्वयं अपनि कीता बमे लिखा है कि रत्नप्रभसूरि १८ भाटी भोजदेव गौत्रोंके सिवाय सुघड चंडालीया भाटी जैसलराव (१२१२)| गोत्र बनाया था, केई केई ग्रामोंमे भन्साली तपागच्छके भी है हमारे पास इतनी सामग्री इस बख्त नहीं है कि हम निर्णय कर सके पर एसे प्रमाणशून्य लेख पर भन्साली कैसे विश्वास कर सकेगा. . . . . . . . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुंकड गोत्र. (३३) मुताजी लीच्छमिप्रतापजीके पास भन्सालीयोंकी उत्पत्ति और अपना खुर्शी नामा है जिसमें लिखा है कि भण्डशोल ग्राममें वि. सं. १०११ में दादाजी जिनदत्तसारजीने रावल भादोजीको प्रतिबोध दे जैन बनाया ६ पढिीबाद धर्मसीजी भंडशोल छोडी इत्यादि अब यतिजीका लेख के साथ इसकों मीलान कीया जाय तो नतो नाम मीलता है न ग्राम मीलता है न समय मीलता है परं यह ख्यात भी भाटोंसे उतारी मालुम होती है कारण १०११ में दादासाहब का जन्म तक भी नहीं था. वास्ते विचारणीय है तथा जोधपुरराज तवारिखमे भंसाली होना १११२ में लिखा है मेरे ख्यालसे तो तीनो ख्यातों भाटों की बिलकुल गलत है भंसालीयोंको ठीक निर्णयं करना जरूरी है। (९) लुंकड नाति वा० लि. मेसरी खेता बहातीके लालो-भीमो दो पुत्र था वि. सं. १५८८ में अहमदावादका बादशाह रुषतमखां के खजाना का काम करता हुवा क्रोडो रूपयोंका माल ब्राह्मणोंको दे दीया फिर बादशाहाको खबर पड़ने पर लाला भीमा भागके गोडवाड एक तपागच्छके यतिके उपाससमें लुक गया पीछेसे फोज आई न मीलनेसे वापिस गई यतिने उनको जैन बनाके लुक.ड जाति थापी इत्यादि । समालोचना- इतिहास इस वातको मंजुर नहीं करता है कि वि. सं. १५८८ में अहमदाबादमें रुषतमखां नामका कोइ बादशाह हुवा हो देखिये अहमदाबाद के बादशाहा बि. सं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) आर्य लुणावत. सिकंदर वि.सं. १५८२ | १५८८ में रुषतमखां बादशाह हुवाही नहीं है क्या मेहसरीयों मे इतनी उदामहमुदशाहा १५६२ । रता थी कि वह क्रोडो रुपैयोंका माल बहादुरशाहा १५६३ । ब्राह्मणों को देदीया और बादशाहा कों सुल्तानमहम्मुद १५६४ | खबर ही नहीं यतिजी ! गप्पोंकी भी कुच्छ हद हुवा करती है दर असल तपागच्छके महात्माओंका कहना है कि विक्रमकी बारह वी शताब्दी में चौहानराजपुतों को तपागच्छाचार्योंने प्रतिबोध दे लुंकड बनाया वास्ते लुंकडोंका गच्छ तपा है। (१०) आर्यगौत्र लुणावतसाखा । वा० लि. सिंधुदेशमें एक हजार ग्रामका राजा अभयसिंह भाटी को बि. सं. ११६८ में जिनदत्तसूरीने गोलीका फूल बनाया जलोपद्रव मिटाके जैन बनाया, राजाकी १७ वी पीढीमें लुणानामी हुवा जिससे लुणावत साखा हुई इत्यादि और यति श्रीपालजी वि० स० ११७५ में दादाजीसे आर्यगौत्र हुआ लिखा है.. समालोचना--अव्वलतो दोनों यतियोंका एक इतिहास होने पर भी २३ वर्षका अन्तर है दूसरा हजार ग्रामका मालक होनेपर भी राजाकी राजधानी या ग्रामका पत्ता नहीं है इतिहाससे वह सिद्ध नहीं होता है कि विक्रमकी बारहवी शताब्दीमें हजार ग्राम का मालक हिन्दुराजा सिंधमें स्वतंत्र राज करता था! न जाने यतियोंने कोनसा गप्पपुरांणसे यह लेख लिखा होगा । इतिहास कहता है कि वि. सं. ७६८ में खीलाफा वलंद के समय महम्मुद कासमने सिंधपर चढाइ करी थी उस समय सिन्धमें पालौर राजधानी का दाहीर नामका राजा को मुशलमानोंने मार डाला और आलौर का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्य लुणावत ( ३५ ) कीला छीन लीया । बाद क्रमशः मुलतान देपाल सिखर कश्मीर सेम शिवस्थानादि सिन्धके वडे वडे नगरो पर मुसलमानाका राज होगया था. दाहीर राजाका मुख्य प्रधान आर्य गौत्री लाखण और वीरधवल था. जिसमे लाखणतो संग्राममे मारागया और वीरधवल अपना कुटम्ब सहीत कन्नोज आगया था इससे यह सिद्ध होता है कि वि. सं. ७६८ के बाद सिंघमें १००० ग्राम का मालक हिन्दुराजा था ही नहीं और ७६८ में तो आर्यगौत्री मोजुद था तो फीर यतियों का लिखना १९९८ मे आर्य हुआ कोन विद्वान स्वीकार करेगा ? आगे दादाजी के समय सिंधके सार्वभौम्य राजाकी सावलि देखिये मुस्तजहरवल्लहाका राज वि.स. १९५१ मुस्तरसीद बल्लहाका ११७५ रसीद वल्लहाका ११६१ मुतकी वल्लहाका ११६२ उसका नामनिशान तक १२१७ मुस्ता जिन्दका भी नहीं मीलता है दर असल वि. सं. ६८४ में पंजाब में विदेशीयों का भय से भागता हुवा भाटी गोसल रावको आचार्य देवगुप्तसूरीने प्रतिबोध दे आर्य ita स्थापन कीया था " दादाजी के जन्म पहिले तो आर्य गौत्र में अनेक नामीपुरुष हो चुके थे जैसे आर्य लखमसी राजसी धनदत्त पासदत्त टोटासादि जिनोंके पुराणें कवित भी मील सक्ते है देखो " ܕܕ " ܕܪ " "" " "" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat दादाजी ने ११६८ में हजार ग्रामके राजा को प्रतिबोध दीया लिखा है पर सिंध के राजाओं में www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) बाफणा नाहाटा " जैन जाति महोदय " आगे अभयसिंहकी सत्तरवी पीढी में लुणाक्षा हुआ लिखा वह भी मिथ्या है कारण १९९८ में अभयसिंह और १७ वी पीढ़ी तक के ४२५ वर्ष गीनने से लुगा का समय १६२३ का होता है तब १४०४ में सारंग शा देसडला का संघ लुगाशा के वहां स्वामिवात्सल्य जीमते समय लुणाशाने ५००० सोनाके थाल जीमने को दीया एक वडी भारी नामी वावडी बन्धाई सारं - गशा अपनी भतीजी लुगाशाहा को परणाई इत्यादि लुणावतों की सावलिमें विस्तारसे लिखा हुवा है लुकामत और कमलागच्छ के इस जाति के बारा में तकरार हुई जब जोधपुर अदालत से इन्साफ हो लुणावत कमलागच्छ के श्रावक है एसा परवारणा अदालत से मीला था जीसकी साबुति के लिये देखो चोरडियों की खांप में एक अन्य परवारणा की नकल इत्यादि प्रमाणों से यतियों का लखना सत्य है और लुणावत कमलागच्छ के श्रावक है । (११) बाफणा नाहाटा जांगडा बेतालादि । वा०लि० धारानगरी के पृथ्वीधर पँवार की १६ वी पीढ़ी में जवन और सच्चु दो नररत्न हुवे वह कीसी कारण से धारा छोड जालौर फते कर वहां सुखसे राज करने लगे आगे जो जालौर का राजा था वह कन्नोज के राठोडों की मदद ले जालौर पर धावाकीया खुब संग्राम हुवा पर कीसीका भी जय पराजय न हुवा + + निवल्लभसूरिने जवन सच्चुके खानगी आदमियोंकों एक विजय यंत्र दीया जिसके जरिये जवनसच्चु शत्रुओं को मर्दनकर भगा दीया तब जालौर और कन्नोजवाला माफी मांगी इतनाही नहीं बल्के जयचंद राठोड कन्नोज का राजा, जवन सच्चुको केइ ग्राम इनामका दे अपना सामन्त बना लिया + + वल्लभ सूरिका स्वर्गवास हो गया तब जिन दत्तसूरिने :उन दोनोंको प्रतिबोध दे जैन बना बाफाणा गौत्र स्थापन कीया पहेले जो रत्नप्रभसूरिने बाफणा बनाया था वह भी इनों के साथ मीलके खरतरा होगया + + सच्चुके २७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाफणा नाहाटा. ( ३७ ) पुत्रोंसे सामन्तजीने वनराजके पुत्र अजयपालके पौत्र पृथ्वीराज चौहान के सेनापति 'बन काबुल के बादशाहाके साथ युद्ध कर ६ दफे बादशाहाको घाघरा ओरणी और चुडीयो पहनाके बजारमें घुमाया तबसे बाफणोंसे नाहटा जाति प्रगट हुई इत्यादि । समालोचना-इस घटना का समय वि. स. ११६८-६६ का स्थिर हो सक्ता है । अव्वल जवन सच्चू की १६ पीढी पूर्व पँवारों की राजधानी धारामें नहीं किन्तु उजनमें थी । दूसरा पँवारों की वंसावलीमें पृथ्वीधर राजा हुआ भी नहीं है। तीसरा उस समय जयचंद राठोड का जन्म तक भी नहीं था xx वरडियों की ख्यातमे यतिजी लिखते है कि धारा तुवरोने छीन ली थी अगर यतिजीको यह पुच्छा जाय कि जवन सच्चु वाफणा होने पर जालौर का राज तथा जयचंद राठोड के दीया हुवा ग्राम कीस कों दीया ? कारण आपका यह सिद्धान्त है कि जैन होने के बाद राज करना महा पाप है जैसे झाबको या बोथरो की ख्यात मे आपने लिखा भी हैxx क्यों यतिजी उस समय जालोर क्या सूना पडा था या कोई गाडरियों राज करती थी कि दो राजपुतोंने जालौर का राज ले सुखसे राज करने लग गयाxx जयचंद राठोड एसा डरपोक था कि अपनी फोज को पराजय करनेवाले को ग्राम इनाम का देदे । पाठकों ! असत्य की भी हद हुवा करती है यतिजीकी इतनी वातों में एक भी सत्य नहीं है देखिये इतिहास क्या कहता है ? जालौर के तोपखानामें एक सिलालेख खुदा हुवा है जिस्मे जालौर राजाओंकी वंसावली है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) जालौर के पँवारराजा पँवार राजा चंदन. 11 19 " ," 99 " देवराज. अप्राजित. विजल. धारावर्ष. ,, विशलदेव ( ११७४ ) कुंतपाल ( १२३६ ) 35 " बाफणा नाहाटा. 17 धाराके पँवार राजा वर्मा ( ११६४ ) यशोवर्मा (१९६२) जयवर्मा लक्षमणवर्मा ( १२०० हरिचन्द्र ( १२३६ ) इनके बाद जालौरपर चौहानों का राज रहा था. > धारा और जालौर दोनों राजाओं की वंसावलियों में जवन सच्चुका नाम तक भी नहीं है आगे रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित बा - फणा खरतर हो गया लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat अव्वलतो पहिले बाफणा जाति थी तो दादाजी को बाफणा बनाने की जरूरत ही क्या थी ? दूसरा एसा कोई कारण भी नहीं था की जवन सच्चुकी जाति बाफणा रखे । खेर ! हम पुच्छते है कि रत्नप्रभसूरि स्थापित बाफरणा खरतर हो गया था तो क्या जालौर में हुवा या सर्व मुल्कमें ? अगर हो भी गये हो तो उपकेश गच्छ में क्या न्यूनता और खरतरो में क्या अधिकता थी ? यतिजीने यह भी नहीं लिखा की रत्नप्रभसूरि स्थापित बाफणों कों जवन सच्चूकी माफीक कोई यंत्र मंत्र धनपुत्र विगैरह दिया ? अगर यंत्र मंत्र धनपुत्र भी दीया तो एकाद बाफरणा को दीया या सब मुलक के बाफरणा को ? मान लिया जाय कि सब बाफणा खरतर हो गया तो www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाफणा नाहाटा. ( ३९ ) फिर खरतरो में क्या न्युनता हुई की वह बाफणा फिरसे कमलागच्छ को मानने लग गया और आज भी मान रहे है ? श्रागे पृथ्वीराज चौहान का पिता का नाम वनराज और पितामह का नाम अजयपाल लिखा है यह भी मिथ्या है । पृथ्वीराज के बाप के नाम सोमेश्वर ओर दादाका नाम अरोराज था. आगे सावंत बाफणाने काबुलका बादशाह को छे वार घाघरा ओरणी चुडीयो पहनाई यह भी बिलकुल गलत है । नाहाटा जाति उस समय से होना भी गलत है कारण दादाजी का जन्म पहिले हजारो नाहाटा मोजुद थे. पृथ्वीराज के समय कीसी काबुलका बादशाहने दिल्लिपर हुमला नहीं कया था पर गीजनीका शाहबुद्दिनगोरीने हुमला कीया था अगर सामंत बाफणाने बादशाह को घाघरा चुडीयों पहना के बजारमें घुमाया होता तो पृथ्वीराज रासामें उसका नाम अवश्य लिखा जाता पर कीसी इतिहासकारोंने या वीररसपोषक भाटोंने सामंत का नाम तक नहीं लिखा है दर असल यतियों का लिखना हि मिथ्या है. बाफरा के बारे में जेसलमेर अदालतका इन्साफ वि. स. १८९१ में जेसलमेर के पटवो ( बाफणों) ने संघ निकाला उस समय वीकानेरसे कमलागच्छीय श्रीपूज्य कक्कसूरिजीने अपने ११ यतियोंको बाफणोंकी वंसावलियों दे जेसलमेर भेजे। वहांपर वासक्षेपके समय खरतर श्रीपूज्यके और कमलागच्छयतियों मे तकरार हुई खतरा कहते है कि बाफणा हमारागच्छ में है वास्ते बासक्षेप हम देवेंगें तब कमलागच्छके यतियोंने कहा कि बाफणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) कटारिया. हमारे गच्छके है वासक्षेप हम देवेंगें. तकरार यहांतक बड गई की जेसलमेरका राजा गजसिंहजी तक पहुंच गई राजाने दोनों से साबुति पुच्छी इसपर खरतरोंने तो जबानी जमाखरच जो यति ने मुक्तावलिमें लिखा वह कह सुनाया तब कमलागच्छयतियोंने ariat सरू अर्थात् रत्नप्रभसूरिने अठारा गोत्रोंमे दूसरा गोत्र स्थापन कीया वहांसे सप्रमाण वंसावलियों राजा के आगे धरदी. इसपर न्याययुक्त इन्साफ दीया कि बाफरणा कमलागच्छके श्रावक है वासक्षेप देना कमलागच्छवालोंका हक्क है जब कमलागच्छीय यतिजी बासक्षेप दीया संघमे साथे गये पटवोंने भी उन यतियोंका अच्छा सत्कार कीया इत्यादि रामलालजीने दो प्रकारके बाफणा लिख विचारे अज्ञ बाफणोंकों धोखा दिया है बाफणा रत्नप्रभसूरिके प्रतिबोधित कमलागच्छके श्रावक है विशेष देखो " जैन जाति महोदय 93 ( १२ ) कटारिया कोटेचा रत्नपुरा । वा० लि० वि० स० १०२१ में सोनीगरा चौहान राजा रत्नसिंहने रत्नपुरा बसाया उसकी पांचवी पीढमे वि० स० ११८१ का प्राखातीजने धनपाल राजा पाट बेठा. वह सिकार खेलनेको गया एक झाड निचे सुत्ता हुवाको सांप काटा. दादाजी झाडा दे विषोत्तार जैन बनाया उनके कुलमें झाझणसी हुवा वह दिल्लि बादशाहका मंत्री था एकदा शत्रुंजय गया वह आरति की बोलीमें मालवाकी आमंद ६२ लक्षकी दे दी वह बात बादशाहको खबर हुई तब झांझणसी अपने हाथसे कटारा खाया वास्ते कटारीया कहलाया इत्यादि. समालोचना - अव्वलतो १०२१ में चौहानोके साथ सोनीगकी उपाधि ही नहींथी संचेतीयोंकी समालोचना में हम सप्रमाण लिख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाडिवाल गौत्र. (४१) आये की चौहान कीर्तिपाल समरसिंहने जालौर की सोनीगरी पाहाडी पर कील्ला बन्धानासे सोनीगरा कहलाया जिस्का समय वि. स. १२३६ के बादका है तो यतिजी १.२१ में सोनीगरा चौहान लिखते है यह महामिथ्या है आगे झांझणसी कौनसे बादशाहाके मंत्री थे वह भी नहीं लिखा मुसलमानोंकी तबारिखोंमे छोटी छोटी बातें भी लिखी हुई मीलती है तो ६२ लक्ष रूपयें एक भारती की बोलीमें लगा दीया जिसकी गन्ध भी नहीं ? आगे जैन एसे मूर्ख नहीं थे कि बादशाहाके देशकी आमंद तीर्थपर भारती की बोलीमें देदे और पुच्छने पर कटारी खा आपघात कर अनंत संसारी बनने को तय्यार हो जावे. यतिजी ! अगर ६२ लक्ष रूपैये झांझणसीने वीरतासे दे भी दीये हो तो वह डरपोक हो कटारी कबी नहीं खाता स्यात् एसा डरपोक हो तो यह होना असंभव है कि वह बादशाह कि आमन्दके ६२ लक्ष रूपैये भारतीकी बोलीमें चडा दे. माझणसीने रूपैये रोकड तो नहीं दीया था तो फीर कटारी खानेकी क्या दहेसत थी अस्तु ! ९२ लक्ष रूपैये दीये या कटारीया देवद्रव्यके करजदार रहे यह भी तो निर्णय यतिजीने नहीं कीया। दर असल आंचलगच्छाचार्य जयसिंहमूरिने वि. स. १२४४ में कटारमल चौहानको प्रतिबोध दे जैन बनाया उसने महावीरका मन्दिर भी कराया बाद रत्नपुरामें बोहरगत करनेसे रत्नपुरा बोहरा कहलाया कोटेचा वगैरह इनोंसे निकली हुई जातियों है देखो "जैनगोत्रसंग्रह" कटारीयोंके भाट वसावलिमें लिखा है कि दलपतसिंहजी में राजका कसूर होनेसे कटारी खाई दलपतजीरे चार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) डागामालु. पुत्र था कुंवरपालजी जिनकी पोलाद कटारीया, कचरपालजी जिसके कोटेचा रत्नपालजी जिस्के रत्नपुरा सोभणजी जिस्के सोभद्रा इसका समय १०१२ का लिखा है इस कथापर यतिजीने युक्ति रची मालुम होती है पर यह विश्वास करने योग्य नहीं है । (१३) रागा मालु छोरीया पारख. वा० लि० सोनीगरा चौहान राजा रत्नसिंहका सापविष दादाजी उत्तारीयाकी खबर दीवान मालदे राठी को हुई तब अपने पुत्रके अर्धागकी बिमारी मीटानेका दादाजी को कहा दादाजीनें दीवानके लाडकेको अारोग्य बना कर जैन बनाया जिसकी डागा मालु जाति हुई। समालोचना-रत्नसिंहका समय तो यतिजी वि. स. १०२१ का लिखा है और दादाजीका समय ११८१ का लिखा है नजाने यतियोंने दादाजीकी आयुष्य कीतना वर्षकी मानी होगी दादाजीके समय सोनीगरा चौहान ही नहीं था न जाने यतिजी नशाका तारमें यह गप्पों क्यों लिखमारी होगी. डागा मालुओंके साथ छोरियोंका कुच्छ संबन्ध भी नही है। छोरीया नागपुरीया तपागच्छके पारख उपकेशगच्छके ।समजमे नहीं आताकी ५२ जातीके राठीयोंको जैन बनाके डागामालु जाति कीस हेतुसे स्थापि होगा यतिजी लिखती बखत इतना भी ख्याल नहीं कीया कि मालदेदी वानका समय १०२१ का और दादाजीका समय ११८१ का तो क्या डागामालु एसे अज्ञ ही है कि ऐसी कपोल कल्पित वातोंको मान लेगा डागामालु कीस गच्छके है यह निर्णय करना शेष रह जाता है. (१४ ) रांका वांका काला गौरादि वा० लि. सोरठ वल्लभी के बाहार काकु पात्तक दो निधन तेल लुणकी दुकान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काका. ( ४३ ) मांडता था वहां नेमिचन्द्रसूरि आये दोनोने अपना दुःख निवेदन कीया सूरिजीने धर्मकी शर्तपर भविष्य वतलाया कि राजाके जरिये तुम धनवान होंगे तुमारी वृद्धावस्थामें राजा तुमारा धन छीनलेगा तुम म्लेच्छोको लाके वलभीका भंग करावोगें. इत्यादि 'निदान' एसा ही हुवा काकु पातककी पांचवी पीढीमें रांका वांका हुवा वह पाली में खेती करता था जिनवल्लभसूरिने भी भविष्य वतला खेती छोडा वैपार कराया ++ हींगलाज जानेवाला योगि शंकाके वहां रसायणकी तुंबी रख गया जिससे शंका धनाढ्य हुवा पल्लिवाल ब्राह्मयोंको नोकर रख व्यापार करनेसे पल्लिवाल धनाढ्य हो गया xx एकदा सिद्धराज जयसिंहके ५६ लक्ष सोनैयाकी जरूरत पडी कीसीने नहीं दीया तब शंकावांकाने द्रव्य दीया जिनसे राजाने सेठपद्वी दीनी तबसे रांका शेट कहलाते है इत्यादि । समालोचना -- अव्वल तोइस जाति के बारामें यतिजी रामलालजी नेमिचन्द्रसूरिका समय बतलाते है तब श्रीपालजी जिनदत्तसूरिका नाम लिखते है । एक खानका इतिहासमें २०० वर्षका अन्तर है तो कवांका कीसके वचनों पर विश्वास रखे ? नेमिचन्द्रसूरिका समय ६५४ का और काकु पातककी पंचवी पीढी जिनवल्लभसूरिका समय ११६६ होनेसे विचमे चार पीढीमे २१५ वर्ष लिख मारना भी मिथ्या है नेमिचन्द्रसूरि और काकु पातकका समय ६५४ का माना जावे तों उस समय वल्लभीका भंग लिख मारना महा मिथ्या है यतिजीने काकु पातकका नाम सुनके ही यह ढंचा खडा कीया है अगर वल्लभीके भंगका समय और खरतराचार्यों का समय पर ध्यान देते तो यह धोखा कभी नहीं खाते. दर असल वीरात् ७० वर्षे श्रोशीयोंमे आचार्य रत्नप्रभसूरिने महाजनवंसके १८ गोत्रकी स्थापना करी जिसमें चोथा गौत्र " बलाहा ' था उसकी वंसपरंपरा विक्रमकी आठवी शताब्दी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) शंकावाका. पाली में काकु पातक सामान्यस्थितिवाले दो भाई वसते थे पालीका जेसल श्रेष्टने शत्रुंजयका संघ निकाला काकु पातकभी उस संघके साथ यात्रा कर वापीस वल्लभीमें आये उस समय वल्लभी में अन्तिम शीलादित्य राजाका राज था और नगरी वैपारसे उन्नत थी वास्ते केई स्वधर्मिभाइयों की सहायता पाके काकुपातक वहां वैपार करने लग गये सामान्य स्थिति होने से लोक काकुको रांक - रांक करने लग ये पर दे लेखका व्यवहार पातकका अच्छा होनेसे पातकको बांका - वांका कहने लग गये. वैपारसे रांका वांका वडे ही धनाय हो गये काकुने अपनी पुत्री के लिये एक बहुमूल्य कांगसी बनाई थी राजपुत्री उसे देख कांगसी मांगी काकु पुत्रीने कांगसी नहीं दी तब राजाने बलात्कारपूर्वक छीन ली । इसपर काकु पातक अर्थात in air सिन्धकी तरफ से अरबी लोगोंको एक क्रोड सोनमोहोरो दे वल्लभीका भंग करवाया यह ही वात काठीयावाड और गुजरातका इतिहास में लिखी है वल्लभीका भंग इ. स. ७६६ वि. स. ८२२ में हुवा था इसके आसपास ही ' बलाहा गौत्र वालोंका नाम रांका वांका हुवा जब जिनवल्लभसूरिका समय ११६९ का जिनदत्तसूरिका समय १९६६ से १२११ का है यतिजीकी गप्पों और इतिहास के विच ४०० वर्षका अन्तर है रांकों की " सालमें लिखा है कि वि० सं. ७९८ में रांकाने एक वल्लभी में पार्श्वनाथका मन्दिर बनाया जिसपर सवा मण सोनाका ईंडा चडाया था बाद ८०० में शत्रुंजयका बडा भारी संघ निकाला इत्यादि देखो विस्तार " जैन जाति महोदय " आगे रांकोंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राखेचा. (४५) सिद्धराज जयसिंह ५६ लक्ष सोनइया करज ले सेठकी पद्वि दी यह भी गलत है कारण रांका वांकाके समय उक्त राजाका जन्म तो क्या पर पाटणका भी जन्म नहीं हुवा था. सुरांणा संखलों की ख्यातमें तो यतिजी लिखते है कि सिद्धराज जयसिंह एक जगदेव पँवारको साल भरका क्रोड सोनइया देता था उसे ५६ लाख सोनाइया गुजरातमें कोइ देनेवाला नहीं मीला की पालीमें सेठ पद्वि दे करजा लेना पडा. देखो रांकोकी वंसावली वल्लभीका भंग हुवा तब रांका वांका पाटणका राजा वनराज चावड़ाका बहुत आग्रहसे तथा जैनाचार्योंके उपदेशसे पाटणमें आया और वनराज चावडा उसे सेठ पद्वि दीनी. खरतर यतियोंकी जबरदस्ती देखिये जोधपुरके दफतरीयों ( बाफणों) ने संघ निकाला तब कमलागच्छीय आचार्यको आमन्त्रण कीया उनोंके न आने पर खरतर श्रीपूजको साथ लिये रहस्तामें उनकी क्रिया करने लगे। बस खरतरोंने अपनि छाप मार दी की दफतरी खरतर गच्छके है एसे ही वनाव कोरंटगच्छीय संखलेचोंने मन्दिरकी प्रतिष्ठा समय बनाथा. रांका वांका रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित कमलागच्छोपासक श्रावक है इनोंकी वंसावलियों सरसे आजतक कमलगच्छीय महात्माही लिखते है (१५) राखेचा पुंगलीया जाति । ___ वा० लि. जैसलमेरका भाटी राजा जैतसीका पुत्र कल्हणको कुष्ट रोग हुवा वि० स० ११८७ मे जिनदत्तसूरिने रोग मीटाके जैन बना राखेचा जाति स्थापन करी । श्रीपालजी कुच्छ और ही लिखते है. समालोचना-खुद जैसलमेरही वि. स. १२१२ में बसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) लुणीया. है तो ११८७ मे जैसलमेरका राजा जैतसी कैसे सिद्ध होता है ? भन्सालीयोंकी समालोचनामे हम भाटीराजाओं कि वंसावलि दी है जिस्में कोइ जैतसी नामका राजा भी नहीं हुवा यतिजी गप्पोंकी भी कुच्छ हद हवा करती है यतिजी खुद अपनी कीताबमें लिखा है कि वि० स० १२१२ में जैसलमेर वसा है इस ख्यातमें लिखते है कि ११८७ मे जैसलमेरका जैतसी राजा था दरअसल राजा तनुभाटी जिसने तनोट वसाया जिसके ५ पुत्रोंसे राखेचा नामका पुत्रको वि० स० ८७८ में उपकेशाचार्य देवगुप्तसूरिने प्रतिबोध दे जैन बनाया इसकी ख्यात और वंसावलि विस्तारसे देखो " जैन जातिमहोदय" कीताबसे (१६) लुणियाजाति । वा० लि. मुलतान नगरके राजाका दीवान हाथीशाके पुत्रको साप काटा बाद जिनदत्तसूरि आये. उस दम्पतिको एक शय्यामें सुलाके उसी पडदामें दादाजी बेठे सांपको बुलाया सांपके मुंहसे वेदधर्मकी निंदा करवा कर विषोत्तार जैन बना लुणीया जाति थापी. समालोचना-अबलतो यतिजीने मुलतानके राजाका नामही लिखा दूसरा दम्पति एक शय्यामे सुता हो उस पडदामे दादाजीका बैठना भी असंभव है सांप मनुष्यकी भाषासे वेदधर्म कि निंदा करे यह भी एक आश्चर्यकी ही बात है कहां कहां पर लुणिया लुकागच्छके भी है दर असल लुणीयोंका कोनसा गच्छ है इसका निर्णय इस समय मैं नहीं कर सक्ता कारण मेरे पास इतनी सामग्री नहीं है लुणीयोंको चाहिये कि वह अपनी जातिका निर्णय करे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरांणा-सांखला. (४७) अगर मेरी सोधखोलमे पत्ता मीलेगा तो दूसरा अंकमें प्रकाशित करवा दीया जायगा । परं यतियोंका लेख विश्वास करने योग्य नहीं है ( १७ ) डोसी सोनीगरा। विक्रमपुरका सोनीगरा हरिसेनके पुत्र नहीं. जब क्षेत्रपालको एक लक्ष सोनइयों की वोलवा करी x पुत्र हुवा परघरमें इतना धन नहीं. वास्ते बोलवा न चडानेसे क्षेत्रपाल अनेक कष्ट देने लगा. वि० स० ११२७ दादाजीने दुःख मीटाके जैन बनाया. समालोचना-अव्वलतो ११६७ में सोनीगरा था ही नहीं सोनीगरा १२३६ के बाद हुवा है दूसरा घरमें ही लाक्ष सोनइया नहीं था तब बोलवा करना कैसे सिद्ध होता है ? दादाजीको तकलीफ देनाकी निष्पत् लाख सोनईयोंकी बोलवासे प्राप्त हुवा पुत्र ही क्षेत्रपाल को सुप्रत कर देता तो क्षेत्रपालका अधिक जोर ही क्या था. दर असल डोसी गोत्र अंचलगच्छाचार्यके प्रतिबोधित है । देखो " जैनगोत्र संग्रह " डोसीयोका आंचलगच्छ है । (१८) सुरांणा सांखळा सांढ सियाल सालेचा। वि. स. ११७५ में पादृणका सिद्धराज जयसिंहका पलंग के पहारादार जगदेव पँवार था. जिसकी नोकरी एक वर्षका एक क्रोड सोनईया था. इस ख्यातमे यतिजीने जगदेव पँवारकी कथा कीसी भाटोंसे सुनी थी वह घसीट मारी है ++ जगदेवपँवारको दादाजी प्रतिबोध दे जैन सुरांणादि बनाया । ___ समालोचना-इतिहास इस वातको मंजुर नहीं करता है कि सिद्धराज जयसिंह एक वर्षका एक क्रोड सोनइया जगदेवको देता था. रांकोकी ख्यातमें तो यतिजी लिखा है की राजाको ५६ लक्ष सोनइया कीसीने करज नहीं दीया तब पालीका रांकोको सेठ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) आधेरीआ. पद्वि दे करज लीया यतिजीको इतना तो सोचना था की इस प्रकाशके जमानामें एसी अघटित गप्पोंको साक्षर कैसे मानेगें । दर असल पाटणका इतिहासमें लिखा है की जगदेव पँवार एक वीर था सिद्धराजके मृत्युके बाद पाटण छोड अपने मोशाल कल्याणकटकका राजा प्रमार्दिके वहां चला गया था. यह ही वात सरोिहीके इतिहासमें पं० गौरीशंकरजी ओमाने लिखी है वास्ते यतियोंका लिखना विलकुल निर्मूल है आगे सुरांणा सांखलोके साथ सांढ सीयाल सालेचोंका भाईया जोड दीया यह भी गलत है सुरांणा सांखला तो सुराणां गच्छका है सांढ सीयाल पूनमिया गच्छका और सालेचा उपकेश गच्छ प्रतिबोधित है आगे कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यको मलधारी खरतर लिख मारा है एक पापी पेटके लिये यतियोंको कीतना प्रपंच झाल रचना पड़ा है अगर भगवान् महावीरका ही यतिजी खरतर गव्छ लिख देते तो महावीरके माननेवाले सब जैन खरतर गच्छके ही हो जाते। तब तो जतिजीके पात्रोंमे रोटीयों, पेटीयोंमें पीछोवाडीयों मानी भी मुश्किल हो जाती. ( १९ ) आधेरिया जाति. इस ख्यांतमें जो आर्यगोत्रका प्रादि पुरुष राव गौसल भाटी था प्रायरिया के बदले आधेरिया जातिका आदि पुरूष भाटी गौसलको लिख यह ढंचाखडा कीया है. अगर विक्रम की तरहवी शताब्दीमे दादाजी लोकोको कैदसे छुडा देते थे तो उस समय हजारो मन्दिर और लाखो प्रन्थ म्लेच्छेने नष्ट कर दीया था तथा पवित्र आर्य भूमि म्ले. च्छोके हुमलोंसे महान दु:खी हो रही थी उस दुःखसे मुक्त कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु० गे० बोत्थरा. (४९) जैन क्यों नहीं बना लिया की आज जतियोंके पात्रोंमे रोटीया और पीच्छोवडियोंका ढींग हो जाता । दर असल आघेरिया जाति कीस गच्छोपासक है वह निर्णय होने पर दूसरा अंकमें लिखा जावेगा। (२०) सुघड दुघड. यतिजीने अपनी मुक्तावलिमें लिखा हैं कि रत्नप्रभसूरि ओशीयोमें १८ गौत्र स्थापन करनेके बाद चंडालीया सुघडादि गौत्र स्थापन कीया था. परं आपको परस्पर विरूद्धता की परवाही क्या है ? आपको तो कीसी भी युक्तियों द्वारा सब ओसवालोंको खरतर बनाके पीछोवडी रोटी लेणी हैं दर असल दुघड नागोरी तपागच्छ और सुघड उपकेश गच्छके श्रावक है उत्पति के लीये वंसावलि देखो " जैन जाति महोदय" कीताब. (२१) गंग दुधेडियों. __ इनके बारामें भी यतिजीने एक यंत्र रचा है परं बंब गंग गांग दुधेरीया जातियों कंदरस ( मलधार ) गच्छाचार्य प्रतिबोधित है उन जातियों की वंसावलीयों भाज पर्यन्त मलधार-कंदरस गच्छवाले ही लिखते आये हैं। ( २२) बोथरा बच्छावत मुकीम फोफलीया. 4. लि. जालौर का राजा सावंतसिंह देवडा के दो राणीयां थी एक का पुत्र सागर दूसरी का वीरमदे. जालौर का राज वीरमदे को आया तब सागर अपनि माता को साथ ले आबुपर अपना नाना पंवार राजा भीम के पास चला गया. राजा भीम के पुत्र न होनेसे आबु का राज सागरको देदीया तब सागर आबुके १४० ग्रामोंका राज करने लगा. उस समय चितोड का राणा रत्नसिंह पर मालवा का बादशाहा फोज ले आया. तब रांणा सागरको बुलाया. सागर चितोड जा बादशाहा के साथ संग्राम कर बादशाहा को भगा दीया और मालवा अपने आधिन करलीया । बाद गुजरातका बादशाहने सागर पर हुकम भेजा कि तुम हमारी आज्ञापालन करो नहीं तो तुमारा माला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) बोत्थरा. छीन लुगा ? इसको सागर स्वीकार न करने पर बादशाहा सागरपर चढ आया सागर ने संग्रामकर गुजरात भी छीन ली. अर्थात् प्राबु, मालवा, गुजरात, इन तीनों पर सागरका राज होगया-+ + बाद चितोड पर दिल्लिका बादशाहा गोरिशाहा चढ आया राणाने फिर सागरको बुलाया सागर आपसमें समझोता करवा कर बादशाहासे आप २२ लाख रूपये दंडका ले मालवा गुजरात पीच्छा दे दीया. + + चितोडका राणो रत्नसिंह सागरको अपना सुख्य मंत्रि बनाया बाद सागर अाबु प्राया सागर के तीनपुत्र (१) वोहित्य (२) गंगदास (३) जयसिंह जिस्में सागर के पीछे आबु का राज बोहित्य को दीया + x वि. स. ११९७ में जिनदत्तसूरि प्राबुपर पधारे राजा बोहित्थको उपदेश दीया. राजाने कहा कि में जैन बन जाउं तो राज व शस्त्रका त्यागकर व्यापार करना पडे इत्यादि फिर सूरिजीने समझाया कि हे राजन् ! विचार कर देखो चक्रवर्ति के पास कोई समय पंचाश्वभी नहीं मीलता है राजपाट सब कारमा हे वास्ते तुम हमारा श्रावक बनो भविष्यमें तुमारा कल्याण होगा इत्यादि उपदेश के प्रभावसे बोहित्य के आठ पुत्रोमेसे एक श्रीकर्ण को तो राजाके लिये छोड दीया बाकी सात पुत्रों के साथ राजा जैन बन गया. उसकी जाति बोत्थरा स्थापन करी +++ सूरिजीने आशीर्वाद दीया कि तुम खरतरगच्छको मानोगा तब तक तुमारा उदय होता रहेगा. समालोचना-बोत्थरों कि ख्यात लिखते समय न जाने यतिजी नशामे चक चुरथे या बाल बच्चोंको खेला रहे थे साधारण मनुष्यभी लेख लिखते समय लेखकी सत्यता के लिये प्रमाण की तरफ अवश्य ध्यान देता है पर हमारे यतिजी बडी बडी उपाधियों का वजन सिर पर उठाते हुवे बालक जीतनाभी ख्याल नहीं रखा कि मेरा लेख कोइ विद्वान् पढेगा तो मेरी उपाधियोंकी कितनी किंमत करेगा । अस्तु. अव्वल तो सावंतसिंह और सागरका समय यतिजीने नही लिखा परं राणा बोहित्थ को दादाजीने वि. स. ११६७ में जैन बोत्थरा बनाया इसपरसे सांवत देवडाका समय ११४७ और ' सागर का समय ११७२ के आसपास स्थिर होसक्ता है । सबसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोत्थरा.: ( ५१ ) पहला तो हमे यह देखना है कि वि सं. ११४७ के आसपास जालौर पर सावंत देवडाका राज था या नहीं ? ईसका प्रमाण के लिये जालौर का तोपखानामें एक सिलालेख खुदा हुवा है वह वि० ११७४ राजा विशलदेव पंवार का समय का है जिसमें जालौर के राजाओं की सावलि है तथा प्राबु चित्तोडकी भी वंसावली यहां देदी जाती है। जालौर के पंवार राजा चंद्रण देवराज अप्राजित विजल धारावर्ष विशलदेव (१९७४) कुंतपाल (१२३६) यशेोधवल gh पँवारोंका राज धुंधक (१०७८) पूर्णपाल (११०२) कान्हडदेव (११२३) ध्रुवभट रामदेव विक्रम (१२०१) इन सावलियों से यह सिद्ध होता हैं कि नतो उस समय जालौर कि गादीपर सावंत देवडा हुवा न बुकी गादीपर भीमपँवार तथा सागर या बोहिथ्थ हुवा न चितोडकी गाड़ीपर राणा रत्नसिंह हुवा । श्रागे मालवा, गुजरात, और दिल्लिपर १९७२ में बादशाहाका राज होना यतिजी लिखते हैं वह भी बिलकुल गलत है कारण दिल्लिपर १२४६ तक हिन्दु सम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज था गुजरातमे १३५६ तक वाघेला राजा करण का राज, मालवा में १३५६ तक पँवार जयसिंह का राज था बाद में बादशाही हुइ थी तब सागर का समय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat चितोड के राणा वैरिसिंह (११४३ विजयसिंह ११६४ अरिसिंह चौडसिंह विक्रमसिंह रसिंह खेतसिंह . www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोत्थरा. (५२) ११७२ का था कोनसा विद्वान इन यतियों की गप्पों पर विश्वास करेगा ? इन इतिहास प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि (१) न तो उससमय चौहानोंमे देवडाजाति का जन्म ही था (२) न उससमय जालौर पर सावंतसिंह देवडा हुवा था (३) न उससमय आबुपर भीम पँवार का राजही था (४) न उससमय चितोडपर राणा रत्नसिंह हुवा था (५) न उससमय मालवामें बादशाही थी (६) न उससमय गुजरातमें बादशाही थी (७) न उससमय दिल्लिपर बादशाह का राज था (८) न उससमय सागर राणा आबुका राजा ही था । (६) न उससमय सागरने मालवा गुजरात बादशाहासे छीना था (१०) न उससमय दिल्लिके बादशाहासे २२लक्षरुपैये दंडके लिये थे (११) न उससमय दादाजीने बोहित्थको प्रतिबोध दे जैन बनायाथा यतिजी महारज ! सौ वातों में ६६ गप्पों होने पर एक भी सत्य वात हो तो श्रादमीको बोलने को स्थान मील जाता है पर १०० की सौ गप्पों हो उसको मुह उंचा करने को भी जगह नहीं मीलती है यतिजी इस इतिहास युगमे सब बोत्थरा निरक्षर नहीं हैं कि आप कि गप्पों को सत्य मान ले; आगे दादाजीने बोहित्थको राज छोडाने का बडा भारी प्रयत्न कीया पर बोहित्थकी ममत्व राजसे नहीं उत्तरी तब जैनधर्मसे वंचित रख श्रीकर्णको राजा बनाया । क्या यतिजी ! जैन होने पर राज करनेमें इतना बड़ा पाप है या जैन राज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोत्थरा. (५३) करनेको अयोग्य है ? झावकों की ख्यांत में भी आपने झाबदेका एक पुत्रको राजके लिये धर्मसे वंचीत रख दीया । दर असल दादाजी का यह विचार न होगा परं डरपोक यतियोंका ढंचा है देखिये राजा उपलदे चंदगुप्त संप्रति श्रामराजा भाणराला विजयगजा गोशलभाटीराजा और कुमारपालादि संख्याबन्धराजा जैनधर्म पालता हुवा गज करते थे और राजके जरिये जैनधर्मकी कीतनी उनति करी ? वह जगद्विख्यात है. अब हमें यह पत्ता निकालना चाहिये कि यति जीने यह ढंचा कीस प्राधारपर खडा कीया है इतिहासद्वाग ज्ञात होता है की विक्रमकी १७ वी शताब्दीमें चितोडके राणा प्रतापके भाई जगमाल अोर सागर था वह दोनों कुलकलंक बादशाह अकबरसे जा मीले तब अकबग्ने हिन्दुओंको श्रापसमें लडानेको जगमालको तो सीरोहीका श्राधा गज और सागरको चित्तोडका राज अभिषेक कर दीया उसी समय सीरोहीमें सावंतसि देवडा हुवा था यतिजी को यह तो पूर्ण विश्वास है कि कलदारके किचडमें खुंचे हुवे श्रोसवालों को कुच्छ भी लिख देंगे तो निर्णयकरने जीतना श्रवकाश बोत्थरो को है नहीं दूसग इतिहासकी तरफ तनक भी रूची नहीं जबतक निर्णय न होगा तबतक बोत्थरा खरतरोंको ही गुरु मान. सेटी पीछोवडी हमको दीया करेगा। एक-दो पीढीमें क्रियाका कदाग्रह जील जावेगा तो फीर अज्ञानी लोक हटको कभी नहीं छोड़ेंगे । इस वास्ते सावंतसिंह देवडा और सागर शिशोदीयाको बाप बेठा बनाके ५०० वर्ष पहेले हुए दादाजीका नाम बोहित्थके साथ जोड दीया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (AP) बोत्रा. परं बोथरा निजर उठाके उस ख्यांतको न देखे वहांतक यतिजीकी पोल चलेगा. यतिजीको इतनासेही संतोष नहीं हुवा | आगे बोत्थरोकी ख्यातमें लिखते है कि दादाजी बोहित्थसे कहा कि तुमारा आयुष्य कम रहा हैं उस समय चित्तोडका राणा रायमल पर दीली का बादशाह चढ आया था चितोड का राणाने बोहित्थकों बुलाया तब आबुका राज जो जैनी नहीं हुवा था उस श्री कर्णको दे चितोड गया संग्राम में बादशाहको पराजयकर आप भी मर गया वह हनुमत वीर होके दादाजीकी सेवामे आगया. + + श्री कर्णके चार पुत्र सीमधर वीरदास हरीदास और उद्धरण + + एकदा श्री कर्ण बादशाहका मच्छेन्द्रगढ़ छीन लीया + + बादशाहाका खजाना जाता हुवाकों लुट लीया + बादशाह फोज ले आया संग्राम श्री कर्ण मारा गया तब राणी अपने चारों पुत्रों को ले भपने पीहर खेडीपुर आगई देवीकी प्रेरणासे खरतराचार्य के पास जैनधर्म स्वीकार कीया चारों पुत्रं व्यापार करने लगे धनाढ्य हुवा शत्रुंजयका संघ निकाला + सीमधरके पुत्र तेजपाल गुजरात ठेके ( इजारे ) लेली और जिनकुशलसूरिका पद महोत्सव कीया तेजपाल का पुत्र बल्हा - बल्हाका पुत्र कडवाशा हुवा + चितोडपर मांडवगढका बादशाह चढ श्राया कडवाशा चितोड जाके आपसमें मेल करवा दीया तब राणा कडवाशाको मंत्रीपद दीया + कडवाशा गुजरात गया पाट्टण पाछी सुप्रत करदी वि. १४३२ जिनेश्वर सूरिका पद महोत्सव कीया मागे कडवाशाके तीन पीढीका नाम याद नहीं चोथी पीढीमे जेसल हुवा इनके वछराज. वछराज मडोरके राव रडमलजीके मंत्री बन गया रङमलजीको चितोडका राणा कुंभाने दगासे मारा तब वछराज अपनी अकलसे जोधाजी को वचाके मंडोर ले आये आगे वीकानेरके वछावतो की पीढीयो जोड दी हैं इत्यादि समालोचना - कहांतो राणा रायमलका समय, कहां बोहित्थ और दादाजी का समय. कहां राव रडमलका समय, कहां राणा कुंभाका समय क्या यतिजी सदैव नशामे ही रहते थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोत्थरा. यतिजीके लेखानुसार बोत्थरोंकी वंसाबलीका समय और चितोडके समान सावंतसिंह देवडा वि. स. ११४७ ०.००.०० राणो सागरदेवडो ,, ,, ११७२........गणो रत्नसिंह राणो बोहित्थ बोथरो,, ,, ११६७........राणो रायमल जैन सीमधर बोत्थरो .., तेजपाल ,, गुजरातको ठेके-इजारे लीवी तथा कुशलसूरिका पद महोत्सव किया वि० स० १३७७ , बल्हा ००० ००० ,, कडवाशा पाटण पाछी दीनी जिनेश्वरसूरिका पद महोत्सव १४३२ में आगे तीन पीढीका नाम यतिजीको | याद नहीं , जेसल " वछराज-- . रावरडमल - अब बोत्थरोके समयके साथ चीतोड के गणों के समयका भी मीलान कीजीये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) बोत्थरा. राणो लाखण १४३६ राणा रत्नसिंह और सागरके विच ४१६ राणो मोकल १४५४ वर्षका अन्तर है राणा गयमन राणो कुंभो १४७५ और बोहित्थ के विच ३३३ वर्षका गणो उदयसिंह १५२५ अन्तर है बोहित्थ और तेजपालके राणो गयमन १५३० विच दो पीढीमे १८० वर्ष खत्म कर गणो सांगो १५६५ दीया तब कडवाशा और वछराजके गणो रत्नसिंह १५८६ विच पांच पीढीमे ४५ वर्ष ही हुबा है धन्यभाग्य है बोत्थरोंकाकि दो पीढी तक अर्थात् ५५ वर्ष तक गुजगत का राज बोत्थरोंके एक कौनामें पड़ा रहा पर कीतने रूपैयोमे ठेकली उस समय गुजरातका राजा कोन था और फीर कडवाशाको क्या जरूरत पडि की गुजरात इनायत कर दी ? उस समय गुजरातका गजा कोन था इतिहासकारोंकी कीतकी अज्ञानता है की इतनी बडी भारी वातको कीसी जगह स्थान न दीया. आश्चर्य तों इस वातका है कि कडवाशाकी छोटीसी दुकांनमे गुजरात कैसी समावेश हुई होगी ? यतिजी ! कडबाशाके समय गुजरातमें मुसलमानोका राज था, बादशाहाप्रोके जोर जुल्मसे राजपुत्त लोकभी जीव वचाते फीरते थे तो वैपार करनेवाले बोत्थराकी क्या ताक्त थी की वह गुजरातका राज ठेके ले सके ! एसे असत्य लेख लिख यतिजी एक अपनी हासी ही नही किन्तु श्रीपूज्योंके पुरांणा दफतगेकोभी कलंकित कीया है। आगे कुंभागणाने गवरडमलको मारना भी गल्त लिखा है कारण राव रडमलकी बेटी हँसाबाईको चितोडके राणा लाखाको परणाई थी जिसके मोकल पुत्र हुवा. राणा लाखाका देहान्त हुवा तब मोकल बालक था तब राव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गेहलडा. (५७) रडमलजी जोधाजी चितोड गये उनकी नियत चितोडका राज छीन लेनेकी थी जिसका दंड रूपमें रडमलजी मारा गया और राव जोधाजी १२ वर्ष तक ईधर उधर भमते म्है मंडौर बारह बर्ष चितोड के हाथोमे रही रावरडमल के मरने के बाद तो राणा मोकलने राज कीया था उसके उत्तराधिकारी राणा कुंभा हुवा था. कहां तो गणा कुंभा कहां बछराज की अकल ! दर असल बोत्थरा कोरन्ट गच्छाचार्य नन्नसूरि प्रतिबोधित है बोत्थरो का कोरंटगच्छ है उत्पति और वंसावलि विस्तारपूर्वक देखो " जैन जाति महोदय" नाम की कीताब । यतिजी की असत्य लिखने कि साहसिकता को........ दीया विगर रहा नहीं जाता है कि जिसने अपने भव बिगडने की परवा न करते हुवे भी बोत्थरों को खरतग बनानेमें ईतना प्रयत्न कीया है. (२३) गेहलरा. इस जातिके बारामें का० लि. वि. स. १५१२में खीची गीरधर को दादाजीने वासचूर्ण दीया गीरधरने एक कुंभार के ईटां के कजावामें ५००० इंटोपर डाल दिया की वह सब ईटो सोनाकी हो गई ** धन खरचनेमे गेहला होनेसे गेहलडे कहलाये हैं. __समा० अव्वलतो गीरधरका ग्रामका ही पत्ता नहीं था स्यात् इटांका कजावा जंगलमे ही होगा, गेहलडोने एकाद पर्वतपर चुर्ण डाल दीया होता तो सब दुनियों गेहलडा बन जाति या तो गीरधरमें इतनी उदारता न होगी या दादाजीने चुरण देनेमें संकोचता की होगी. दर असल गेहलडा सुराणांगच्छोपासक श्रावक है । तथा मलधार गच्छवाले भी वंसावलियों लिखते है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोढा. ( ५८ ) (२४) लोढा जाति इनके बारामें भी यतिजीने अपनी युक्तियोंका ठीक प्रयोग कीया हैं परं इसकी समालोचना करनेकी भावश्यता नहीं हैं कारण नागोर जोधपुर अजमेरादिके लोढे नागपुरीय तपागल हैं लोढोंकी वंसावलियों भी तपागच्छके महात्मा लिखते हैं कोई कोई ग्रामडोंमें अज्ञात लोढा खरतरगच्छकी क्रिया भी करते हैं पर लोढों का गच्छ तपा हैं } (२५) बुरड - आबुगढ के पँवार राजा बुरडको वि. स. ११७५ मे दादाजीने शिवजी का प्रत्यक्ष दर्शन कराया. शिवजीने राजा से कहा कि हे राजन् तु मेरे से मोक्ष चाहता है परं बी तो मेरी भी मोक्ष नहीं हुई है अगर तँ मोक्ष ही चाहता है तो दादाजी को गुरू कर ले इत्यादि** राजा बुरड को प्रतिबोध दे जैन बनाया. समा० यतिजी ! क्या आपको विश्वास है कि इस सुधारे हुए जमाने में दुनिया ईस गप्पों को मान लेगी ? शिवजी प्रत्यक्ष रूपमें हो राजा को कह दिया कि तु मोक्ष चाहता हो तो दादाजी को गुरु कर ले और आप शीवजीदादाजीको गुरु कीया ही नही आपका डेग योनीमे या स्मशानमे ही रखा, दरअसल आबु पर कोई बुरड राजा ही नहीं हुवा "बोत्थरोंकी समा० में देखो श्राबुराजा की वंसावलि " न बुरड पँवारो से बना है बुग्ड पडिहार राजपुत्तों से बना है तपागच्छके श्राचायने प्रतिबोध दे जैन बनाया है लगनमलजी बुरड के पास बुडो का खुश नामा तय्यार है बुग्डो का गच्छ तपा है । (२६) नाहार - इन जातिके बारामे वा ० लि० मुदीयाड ग्राममें मेसरी देपाल का पुत्र को कोइ ले गया वहां पर मानदेवसूरि एक शिष्य सुडाजी के साथ आया देपालसूरिजीके पास जाके अर्ज की जैन धर्म की शर्तपर सुडाजी एक देवी सिंहणी का रूपमें थी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाहार-छाजेड. ( ५९ ) उसके पाससे पुत्र दीराया जैन बना उसकी नाह र जाति स्थापन करी इत्यादि गच्छ खरतर । समा० यह ख्यात यतिजी भाटों से लिखी मालुम होती है भाट सुडाजीका नाम लेते है तब यतिजी मानदेवसूरिका नामाधिक लिखा है पर मानदेवसूरि खरतर पट्टावलिमें नहीं है अगर है तो कोनसा समय में हुवा वह नहीं लिखा, साधुप्रो में सुडाजी नाम होना भी प्रसंभव है दरअसल वि. स. १०२९ में प्राचार्य सर्वदेवसूनि मुगी पाटन आये वहां का राठोड केहर का नूतन पुलको एक नाहारडी पूर्व जन्म का स्नेह से ले गई थी केहरने सूरिजी से अर्ज करनेपर नाहारडी को उपदेश दे पुत्र दीगया केहरको जैन बना नाहार गोत्र स्थापन कीया इस ख्यातका विस्तार बहुत है नाहारों का गच्छ तपा है । इनकी वंसावलियों नागोरी तपागच्छके महात्मा लिखते है । ( २७ ) छानेड - इनके बारामे वा०लि० धांधल साखा के राठोड रामदेवका पुत्र काजलकों वि. स. १२१५ में जिनचन्द्रसूरिने शिवाणा मे वास चूर्ण दीया उसने अपने मकान का छाजोपर देवी के मन्दिर के छाजोपर और जिनमन्दिर के छाजोपर वह चूर्ण डाला की सब छाजा सोना का हो गया वास्ते छाजड कहलाया. समा० अव्वलतो बि. स. १२९५ में राठोडोमें धांधल साखा ही नहीं थी कारण विक्रमकी चौदहवी शताब्दी में राव श्रासस्थानजी के पुत्र धांधल राठोडोमें धांधल साखा हुई थी यतिजी को सत्यासत्यकी परवा ही क्या ? उनको तो कीसी न कीसी युक्तिद्वारा सब सवालों को खतरा बना पैसा पीच्छोडी व रोटी लेनी है काजल की कीतनी भूल हुई अगर सम्पूर्ण मन्दिरपर वह चूर्ण डाल देता तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) सींघी भंडारी. कलिकालका भरतेश्वर न बन जाता ? पर इतनी उदारता कहां थी ? दर असल छाजेड कमलागच्छ के श्रावक हैं आगे केइवार अदालतोमे इन्साफ हो परवाणा भी हो चुका है। एक नकल देखो चोराडियोंकी समालोचनामें, विशेष विस्तार : जन जाति महोदय' छाजेडोंकि वंसावलि और सुकृतकार्य की सूची भी दी गई है। ( २८ ) सिंघो इन के बारामे वा० लिखमारा हैं कि सीरोही के राजमें ननवाणा ब्रह्मण (वोहरा) सोनपालका पुत्र को साप काटा था, वि. सं ११६४ में जिनबालभसूरि विषोतार जैन बनाया बाद संघ निकालने से संधि कहलाये मूलगच्छ खरतर बाद सत्तरेसोमे तपा हुवा। समा० अव्वल तो ग्राम का नाम नहीं लिखा दूसरा सांप कटा के जैन बनाना तो यतियों के लिये एक बालकों का खेलसा हो गया, संघ निकालने से संघवी तो बहुतसी जातियोंमें हुवे थे पर यह संघि एक हि जातिके है दर असल चंदरावती के पास ढेलडीया गांवके पंवारोको लोग ढेलडीया पँवार कहा करते थे वि० स० १०२३ मे सर्वदेवसूरिने पँवार संघराव को प्रतिबोध दे जैन बना उसके संघि जाति स्थापन करी संघरावका पुत्र विजयरावने एक क्रोड रूपैया खरचके चन्द्रावती में एक मंदिर कराया था संघरावकी सात पीढी तक तो गज कीया था बाद मुसलमानों की लुटफाटसे मुत्शदीपेसा व व्यापार करने लगा वास्ते संघियो का सरूसे तपागच्छ है देखो विस्तार — जैनजाति महोदय' से (२९) भंडारी इस जातिके बारामें वा. लि. नाडोल के लाखणरावके महेसरादि छ पुत्रों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंडारी. (६१) को वि० सं० १४७८ मे भद्रसुरिने जैन बनाया मूल गच्छ खरतर बाद अन्य गच्छ को मानने लग गये--- __समा० सांभरका रावलाखण वि. सं. १०२४ मे नाडोल के भीलमैणोको पराजय कर अपनी राजधानी नाडोलमे स्थापन की. वि.सं १३६६ तक नाडेलमे चौहानोका राज रहा बाद अलाउदीन खीलजीने नाडोल छीन चौहानोंका राजकी समाप्ति करदी अबयह सोचना चाहिये कि १४७८ में नाडोल पर चौहानोंका राज भी नहीं था राव लाखणका समय १०२४ का था तो भद्रसूरि कीसको प्रतिबोध दीया ? क्या भंडारी एसे अज्ञात हैं कि यतियोंकी गप्पोंके सत्य मान लेगा ? दर असल राव लाखण के समय भद्रसूरि तो क्या पर खरतर गच्छका भी जन्म नही था. सत्यवात यह है कि नाडोलका चौहान राव लाखण के चार पुत्रों से दुद्धाजी नामका पुत्रको वि.स.१०३६ में यशोभद्राचार्य प्रतिबोध दे जैन बनाया आशापुरी माताको भंडार का काम करने से भंडारी कहलाये । दुद्धाजी की २१ वी पीढी में दीपचंदजी हुवे वह अपने मोशाल संचेतीयों के वहां रहते थे वास्ते संचेतीयोंकी कुलदेवी सचायाका और नानाजी के गुरु कमलागच्छवालोंको मानने लगे। शेष भंडारी तपागच्छके है । दुद्धाजी से प्रान तक भंडारियों का खुर्शीनामा जैतारणवाले श्रीयुक्त अभयराजजी भंडारी के पास मोजुद है। (३०) डागागोत्र ___ डागों के बारामे वा० लि. नाडोल के चौहान डुम्जीपर दिल्लि के बादशाहाने फोज भेजी उस समय जिनकुशलसूरिने सुत्ता हुवा बादशाहा का पलंग मंगवाय के बादशाहा से माफी मंगवाइ. उस डुगजी को जैन बना डागा जाति स्थापन करी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) ढा श्रीपति सभा० डागा कीस गच्छके है ? इसका निर्णय के लिये इस समय मेरे पास इतनी सामग्री नहीं है पर यतिजी का ढांचा तो बिलकुल विगर पैरों का है कारण वि. स. १३६६ नाडोल में मुसलमानों का राज हो चुका था तब कुशलसूर का समय १३७७ का है जब उस समय नाडोल में मुसलमानों का राज हो गया फिर एक डुगजीके लिये फोज भेजनेकी क्या आवश्यकता थी चारणलोक डुगजी गीत गाया करते है पर डुगजी जैन हो गया की साबुती कहां भी नहीं मीलती हैं अगर दादाजी सुता हुवा बादशाहाका पलंग मंगवा लिया होता तो हजारो मन्दिर और लाखो ग्रन्थ मुसलमानोंने उस समय नष्ट कर दीया था उसे क्यों नहीं बचाया ? क्या डुगजीको जैन बनाने जीतना भी लाभ उसमें नहीं था ? विद्वान तो कहते है कि यतिजीने श्राचार्यों की तारीफ नहीं किन्तु एक कीस्मकी हांसी करवाई है। (३१) ढठ्ठा श्रीपति और तिलेरा जाति वा०लि० वि. स. ११०१ गोडवाड नाणा बेहडामे ( पाटण ) का सोलंकी सिद्धराज जयसिंह का पुत्र गोविन्दको खरतराचार्य जिनेश्वरसूरि प्रतिबोध दे जैन बनाया इसपर वडा आडम्बर के साथ महेल रचा हुवा है अन्तमें बीकानेर जयपुर के ढक्को की सावलि जोड दी है संघ निकलनादि वडे वडे कार्य कीया लिख ढढेको खुश कर दीया पर उसमें सत्यता कीतनी है इसपर पाठकवर्ग ध्यान दे । समा० यतिजी के ऐतिहासिक ग्रन्थ की कहां तक तारीफ की जाय ! ऐसे प्रमणों का ग्रन्थ स्यात् कीसी विद्वानों के देखने में आया होगा मुझे तो यह प्रथम ही अवसर मीला है । अव्वल तो ११०१ मे सिद्धराज जयसिंह का जन्म ही नहीं था, जब पुत्र होना तो सर्वथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीपाडा. गो. कां. (६३) मिथ्या है क्या यतिजीने स्वप्ना की तो वात नहीं लिख मारी है ? गुजरात का इतिहास कहता है कि वि. सं ११४६ मे सिद्धराज जयसिंह पाटण की गादीपर गजा हुवा पञ्चास वर्ष राज्य कर ११६६ में स्वर्गवास हुआ । इस राजा के पुत्र न होने से राजाने अपनी मोजुदगीमें चाहड को दत्त लीया था पर राजा का देहान्त होने के बाद सामन्तो--मंत्रियोमें दो मत्त हो गया । एक पक्षवालों का कहना था कि राजगादी चाहड को दी जावे तब दूसरा पक्षवालों का आग्रह था कि त्रीभुवनपाल के तीन पुत्रों से कुमारपाल को राज दीया जावे अाखिर सर्व सम्मति से राजतिलक कुमारपाल को कीया गया । अगर यतियों के लिखा माफीक राजा को पुत्र होता तो यह घटना क्यों बनती ? दर असल ढढ्ढों कहते है कि हमारा तपागच्छ है वंसावलियों नाणावलगच्छवाला लिखते है ढहोकों चाहिये कि वह अपना खुर्शी नामा तैय्यार करें। ' (३२) पीपार इस जाति के बारेमे वा० लि० पीपाड़ नगर का गेहलोत राजा कर्मचन्द को वि. स १०७५ में वर्धमानसूरिने जैन बनाके पीपाडा जाति स्यापन करी. समालोचना--पीपाड खुद ही विक्रम की बारहवी शताब्दीमे पीपाडोंने वसाया था. १०७२में पीपाड ही नहीं था तो कीस कर्मचंद को जैन बनाया दर असल पीपाडा जाति नागपुरीया तपागच्छोपासक है खराडी बलुदा के तपगच्छीपोसालवाला सरूसे वंसावलियो लिखते हैं। पीपाडोंमें हीराणादि चार गोत्र और भी मीलते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) ( ३३ ) गोडबत छजलांणी छलाणी इन जातियों के बारामे भी वारिधिजीने पूर्वोक्त युक्ति रच खरतर होना लिखा है पर यह भी जातियां नागपुरिया तपागच्छोपासक है इनकी सरूमे वंसावलियों मेरे पास मे भी है और तपागच्छ महात्मा खराडि बलुंदावाले लिखा करते है । इन जातियों का गच्छ तपा हैं । श्रीश्रीमाल, पोकरण . -- ( ३४ ) कटोतीयों को सांप कटाया ( ३५ ) भुतेडीयोंमें वाममार्गियों की युक्तिरची पर इसका निर्णय के लिये हमारे पास इस समय इतनी सामग्री नहीं है कारण इसके इतिहास विषय कम है ( ३६ ) जाडिया नागपुरिया तपागच्छके श्रावक है ईसकी सावलि इस समय हमारे पास मोजुद है यतिजी की युक्ति बिलकुल गलत है । ( ३७ ) कांकरीयों के वारामे वारधिजी लि० भीमसी को दादाजीने दो कांकरा दीया जिनसे संग्राममे चितोड को राणो पराजय हो भाग गयो इत्यादि । समा० यह बिलकुल गलत है अगर एसा होता तो दो कांकरा मुसलमानोंके हुमलों की बख्त हिंदूवों को मील जाता तो श्रार्य देश म्लेच्छों का गुलाम क्यों बनता ? दरअसल कांकरीयौका गच्छ कमला है । कांकरीया स्वतंत्र जाति नहीं पर श्री रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित चरडा गौत्रकी एक साखा हैं । खरतरगच्छ के जन्म पहिले हजारों कांकरीयोंने अनेक सुकृत कार्य कीया है देखो " जैन जाति महोदय - (३८) श्रीश्रीमालजाति इनके बारामे तो यतिजी बेहोश हो के एक म्लेच्छ बादशाहा का मुह से हिन्दुधर्म और ब्राह्मणो की वडी भारी निंदा करवाई है सत्यतो यह है कि वीरात ७० वर्षे रत्नप्रभसूरि ओशियोमे १८ गोत्रोमे ८ वांगौल श्रीश्रीमाल स्थापन कीया था देखो जैनजाति महोदय । ( ३९ ) पोकरणा - "" इनके बारामें बा० लि० एक विध्वा ओरत पुष्करमें स्नान कर रही थी उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 澌 कोचरमुत्ता. ( ६५ ) गोहने पकडली तब हरसोर का राजा सक्तसिंह निकालने को तलावमें गया उसे भी गोह पकडलीया उस समय दादाजीका एक साधु आके उन दोनों को बचा जैन बना पोकरणा जाति स्थापी । समा० दादाजीका स्वर्गवास १२११ में हुवा था जिसके कुच्छ समय पहिले यह घटना हुई होगीं वहां उस समय पुष्कर का तलाव ही नहीं था कारण मंडोरका प्रसिद्ध पडिहार नाहडरावने वि. सं. १२१२ में तलाव खोदाया था बाद केइ वर्षोसे गोहें पैदा हुई होगी जब दादाजी के समय तलाव ही नहीं था तो कोनसा श्रज्ञ पोकरणा इस गप्पों पर विश्वास करेगा ? दर असल रत्नप्रभसूरि स्थापित १८ गोत्रोंमे पांच वा मोरख गोलकी पोकरण एक साखा हैं दादाजीके १६०० वर्ष पहिले पोकरणा हुवा था पोकरणो का कमला गच्छ है । " ( ४० ) कोचर मुत्तोंके बारामें तो यतिजीने मानो एक गप्पो का खजानाही खोल दीया हैं कोचरोकों पहला उपकेश गच्छीया पीछे खरतर गच्छीया बाद तपागच्छी या लिखा है एक यह भी लिखा हैं कि वि. स. १०२४ में कोचरो के पूर्बजोने पाल्हनपूरमे दुकान करी थी इतिहास कहता है कि बिक्रमकी तेरहवी शताब्दी मे आबुका राजा यशोधवल पँवार का दूसरा पुत्र प्रल्हणने पालनपुर वसाया था तब १०२४ मे कोचरोने कैसे दुकान करी होगी दर असल वीरात् ७० वर्ष आचार्य रत्नप्रभसूरिने मोशीयो मे १८ गौल स्थापन कीया जिसमे १६ वा डिडुगौत्र की एक साखा कोचर है तथा मुनि ललित विजयजीने माबु तीर्थके बारामे एक कीताब लिखि जिसमें कोचरोंकी उत्पति ओशीयोंमें रत्नप्रभसूरि द्वारा हुई लिखि है इसीसे भी कोचरोंका गच्छ कमला है. ( ४१ ) मुनोतों के बारामे वा० लि० कीसनगढ के राव राजा रायमलजी के पुत्र मोह जी और पोचुजीको वि. स. १५९५ मे जिनचन्द्रसुरि ने प्रतिबोध दे जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमाल पोरवाड. बनाया जिस्मे मोहणजीका मुनोत और पांचुजी का पांचावत बाद विद्यासागरका उप- - देशसे मुनोत तपा होगया इत्यादि । __समा० अव्वलतो १५९५ में कीसनगढ था ही नहीं कारण जोधपुरका राजा उदयसिंह के १७ पुत्रो से कीसनसिंह नामका पुत्रने वि. स. १६६६ में कीसनगढ वसाया था तब १५६५ में कीसनगढ के मोहणजीको प्रतिबोधा लिख मारना गप्प नहीं तो क्या गप्पका बच्चा है ? दर असल जोधपुर के राठोडराजा रायपालजी के ११ पुत्रोंसे मोहणजी नामका पुत्र को तपागच्छ प्राचार्य देवेन्द्रसूरि ने प्रतिबोध दे जैन मुनोत बनाया इसका समय विक्रम संवत तेरहसौ के आसपासका है देखो जोधपुरवाले मेहताजीका खुर्शीनामा जोधपुर अजमेर कीसनगढादिके मुनोत आज भी तपागच्छोपासक श्रावक है (४२) श्रीमाल पोरवाडोंके बारामे यतिजीने गप्प मन्दिर के शिखर पर मानो एक ईडा चडा दीया है एसी रद्दी वातों के लिये कागद काला करना मानो अपनि प्रमूल्य टैमका बलिदान करना है दर असल यह वात इतिहास प्रसिद्ध हैं की पार्श्वनाथ प्रभुकी पांचवीं पाट पर आचार्य स्वयंप्रभसूरिने श्रीमाल नगरमे ६०००० घर जैन श्रीमालों (श्रीमालीयों) का और पद्मावती नगरीमे ४५००० घर जैन पोरवाडोका बनाया था बादमें आंचलगच्छ वालोंने श्रीमाल तथा हरिभद्रसूरिने पोरवाड जैन भी बनाया था वास्ते श्रीमाल पोरवाडौंका मूल गच्छ उपकेश ( कमला ) गच्छ ही है । (४३ ) वैद मुत्तोंके बारामें तो यतिजीने गप्प मन्दिर पर ध्वजादंड चढाके सर्वांगसुन्दराकार बना दीया है इस ख्यातमे पँवारोकी वंसावलि लिखी हैं जिसको पढके सामान्य अभ्यासबालोको भी हाँसी आये विगर नहीं रहेगा यतिजीका लिखा ऐतिहासिक ग्रन्थ पढनेसे सांफर मालुम होता है कि यतिजीको किंचित् भी इतिहासका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैदमुत्ता. (६७) जान नहीं था. भाट भोजकोंकी या इधरउधरकी वातों सुन उनके साथ खरतर दादाजीका नाम जोडके यह ढांचा तय्यार कीया है और वीकानेरमें श्रीपालजी और रामलालजी कमलागच्छके श्रीपूज्यजीकी पग चंपी करनेको रात्रीमे जाया करते थे कीतनीक वातों उनके मुंहसे सुनी फिर उनके आचार्योंका नाम और साल संवत वदलाके कीतनीक ख्याता लिखी है आखिर असत्यका पग कहां तक चले. आगे इसी ख्यातमे लिखा है कि वि० स० १२०१ में चितोडका राणा भीमसी श्रेष्टिगोत्रवालोंको वेदोकी पद्वि दी और प्राधा गौत्र खरतर हो गया यह भी महा मिथ्या है कारण न तो १२०१ मे चितोड पर भीमसी राणा हुवा है न उस समय वेदोंकी पद्वि मीली हैं न आधा गोत्र खरतरा हुवा. यह सब माया सहित मृषावाद है दर असल वीरात् ७० वर्षे आचार्य श्री रत्नप्रभसूरिने ओशीयों नगरीमें महाराजाधीराज पँवार वंसी उपलदेको प्रतिबोध दे अठारा गोत्रमें श्रेष्ट होनेसे राजाका गोत्र श्रेष्टिगोत्र स्थापन कीया वाद इस गोत्रसे ३० साखाओं निकली है जिस्मे मुख्य वैदै मुत्ता है इस समालोचनाका कर्ताने भी वेद मुत्ता जाति, जन्म लीया है. अन्तमें हम हमारे पाठकोंको यह बतलाना चाहाते है कि यतिजीने 'महाजन वंस मुक्तावलि 'में संचेती चोरडीया बाफणा लुणावत रांका जैसी प्रसिद्ध कमलागच्छकी जातियोंको तथा सींघी लोढा मुनोत ढढ्ढादि प्रसिद्ध तपागच्छकी जातियोंको खरतर होना लिख मारा । क्या यतिजीको यही विश्वास था कि कभी कोइ निर्णय करनेवाला मीलेगा भी नहीं ? खरतर गच्छकी कीसी: प्राचीन पट्टावलि या अन्थमें यह नहीं लिखा है की नेमिचन्द्रसूरि वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि जिनवल्लभसूरिने कोइ नया जैन बनाया हो! दादाजी जिनदत्तसूरिके बारामें तो दन्तकथाएं प्रचलित है कि दादासाहिबने सवालक्ष जैन बनाया. पर इस्मे भी चोरडीया बाफणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) निवेदन. आर्य बोत्थरादि जातियों दादाजी बनाइ लिखना तो बिलकुल मिथ्या है विद्वानोंका यह अनुमान है कि कितनेक अन्यगच्छीय श्रावक पांच कल्याणक माननेवालो कों के कल्याणक मनाके खरतर यतियोंने अपना श्रावक माना है जैसे मूर्तिपूजा छोडाके ढुंढीया तेरापन्थीयोने अपना श्रावक माना है दर असल त्यागी साधुओं को तो सब गच्छवाले गुरू मानके वस्त्र पात्र अशनादिसे सन्मान करते है उनोंके लीये तो गच्छकी खेंचाताण है भी नहीं अगर कोइ करते है तो व्यर्थ है गच्छकी खेंचाताण तो द्रव्य रखनेवाले गच्छकी गोचरी लानेवाले यतियोंने करी है जिनसे समाजको कीतना नुकशान उठाना पडा है ? __ यह समालोचना मैंने खास यति रामलालजीकी बनाइ महाजन मुक्तावलि पर ही करी है अगर इसको पढके अन्य कीसीको राजी नाराजी पाना हो तो मेरा एक रतीभर भी दोष नहीं है दोष है यति रामलालजीका कि जिसने पहलेसे असत्य वातें लिख अन्य गच्छवालोंका अपमान कीया है अगर मेरे लिखने पर कोइ सजन प्रत्यालोचना करना चाहे तो मेरी नम्र निवेदन है कि वह सप्रमाण और सभ्य भाषामें लिखे की आजका जमानामे लेखककी विद्वान लोक कदर करे इत्यलम् । ॐ शान्ति शान्ति शान्ति. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरत्नप्रभाकरज्ञानपुष्पमाला पु. नं. ८२ अथ श्री जैन जाति निर्णय द्वितीयाङ्क. -* *जैनजातिनिर्णय प्रथमाङ्क में यतिजी रामलालजीकी बनाई — महाजनवंस मुक्तावलि' नामकी किताबमे लिखि जैन जातियोंपर समालोचना कर इतिहासद्वारा कुच्छ निर्णयकर पाठकोकी सेवामें रख दीया था अब इस द्वितीयाङ्कमें यह बताया जावेगा कि कौनसी जाति कीसगच्छके आचार्य प्रतिबोधित है और मूलजातिसे कीतनी कीतनी साखा प्रतिसाखा निकली है । भगवान् पार्श्वनाथके संतानियोंकी परम्परा । तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथके प्रथम पाट शुभदत्त गणधर, दूसरे पाट हरिदत्ताचार्य, तीसरे पाट आर्य समुद्राचार्य, चोथे पाट केशी श्रमणाचार्य एवं चार पाट तक तो निग्रन्थगच्छ कहलाता था. पांचवे पाट स्वयंप्रभसूरि हुवा. श्राप विद्याधर-अनेक विद्याओंके पारगामि होनेसे निग्रन्थ गच्छका नाम विद्याधर गच्छ हुवा. आपने श्रीमालनगर (हालका भीनमाल ) में ९०००० घरोंको प्रतिबोध दे जैन श्रीमाल ( श्रीमाली ) तथा पद्मावती नगरीमें ४५००० घरोंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथ के ७ गच्छ. जैन पोरवाड बनाया था. छठ्ठे पाट रत्नप्रभसूरि उपकेशपट्टन ( हालकि ओशीयों) में ३८४००० घरोंको जैन महाजन (ओस वाल ) बनाया तबसे विद्याधर गच्छका नाम उपकेश गच्छ हुवा आपके शासन में कनकप्रभसूरि से कोरंट नगरमें कोरंट गच्छकी स्थापना हुई जब से पार्श्वनाथ संत नियोंकी दो साखाएं हो गई एक उपकेशगच्छ दूसरा कोरंटगच्छ, बाद उपकेशगच्छ से द्विवन्दनिकगच्छ ओसवालगच्छकी उत्पत्ति हुई तथा उपकेशगच्छको कमलाका विरूद भी मीला । ( ७२ ) निग्रन्थगच्छ विद्याधरगच्छ उपकेशगच्छ कोरंटगच्छ द्विन्दनीकगच्छ ओसवालगच्छ और कमलागच्छ एवं पार्श्वनाथ संतानिया सातनामोंसे विख्यात हुवे । श्रीमाल पोरवाडोंकी साखा प्रतिसाखा उनके सुकृतकार्यो व वंसावलियों कोरंटगच्छवालोंके पास थी कोरंटगच्छवालोका एक बडा भारी ज्ञानभंडार कोरंट नगरमें था वहां के महाजनोंसे दरियाफ्त करनेसे ज्ञात हुवाकि कीतनाक तो मुसलमानोंका अत्याचारों से वह भंडार नष्ट हो गया शेष रहा हुवा गृहस्थ लोगों के हाथमें रहा उसका संरक्षण पुरण तौर से न होने से कीतनाक नष्ट हो गया फिर भी रहा हुवा भंडार श्री राजेन्द्रसूरिके हाथ लगा. और वि. सं. १९१० में कोरंटगच्छीय श्रीपूज्य वीकानेरे आये जब कतिनिक पुस्तकों लाये थे. वह कमलागच्छीय श्रीपूज्यजीको दीथी जिसमे एक वहि सावलियोंकी थी वह वि. सं. १९७४ में यतिव माणक सुन्दरजी द्वारा मुझे जोधपुर में मीली जिसमे कोरंटगच्छा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. (७१) चार्यो प्रतिबोधित ओसवालोंकी वंसावलियों थी जिस्के नाम यहां पर दीया जाते है। आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि वीर संवत् ७० विक्रम संवत् के ४०० वर्ष पहला श्रोशीयो नगरीमें ब्राह्मण, क्षत्री और वैश्यों के ३८४००० घरोंको प्रतिबोध दे महाजन संघकी स्थापना करी जिनका अलग अलग १८ गौत्र स्थापन कीया फिर बादमें कीतनेक तो पूर्वजोंके नामसे, कीतनेक व्यापार करनेसे, कीतनेक प्रामोंके नामसे कीतनेक धर्मकार्योमे नाम्बरी करनेसे एकेक मूल गौत्रसे अलग अलग अनेक जातियोके नामसे मशहूर हुई उनोकी वंसावलियोंसे हमे जीतना पत्ता मीला है वह यहां पर लिख देते है । (१) मूलगौत्र तातेड़-तातेड़, तोडियाणि, चौमोला, कौसीया, धावडा, चैनावत् , तलवाडा, नरवरा, संघवी, डुंगरीया, चोधरी, रावत, मालावत, सुरती, जोखेला, पांचावत, विनायका, साढेरावा, नागडा, पाका, हरसोत, केलाणी, एवं २२ जातियों तातेड़ोंसे निकली यह सब भाई है । (२) मूलगौत्र बाफणा-बाफणा, (बहुफूणा) नहटा, ( नाहाटा नावटा ) भोपाला, भूतिया, माभू, नावसरा, मुंगडिया, डागरेचा, चमकीया, चोधरी, जांघडा, कोटेचा, बाला, धातुरिया, तिहुयणा, कुरा, बेताला, सलगणा, बुचाणि, सापलिया, तोसटीया, गान्धी, कोटारी, खोखरा, पटवा, दफतरी, गोडावत, कूचेरीया, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) कमलागच्छ. बालीया, संघवी, सोनावत, सेलोत, भात्रड़ा, लघुनाहटा, पंचवया, हुडिया, टाटीया, ठगा, लघुचमकीया, बोहरा, मीठडीया, मारू, रणधीरा, ब्रह्मेचा, पाटलीया, वानुणा, ताकलीया, योद्धा, धारोला, दुद्धिया, बादोला, शुकनीया. एवं ५२ जातियों बाफरणोंसे निकली. इसमें भाई है । ( ३ ) मूलगौत्र करणावट- -करणावट, वागडिया, संघवी, रणसोत, आच्छा, दादलिया, हुना, काकेचा, थंभोरा, गुदेचा, जीतोत, लाभांणी, सखला, भीनमाला, एवं करणावटोंसे १४ साखाओं निकली वह सब आपस में भाई है । " (४) मूल गौत्र बलाहा - बलाहा, रांका, वांका, शेठ, शेठीया, छावत, चोधरि लाला, बोहरा, भूतेडा, कोटारी, लघु रांका, देपारा, नेरा, सुखिया, पाटात, पेपसरा, धारिया, जडिया, सालीपुरा, चितोडा, हाका, संघवी, कागडा, कुशलोत, फलोदीया एवं २६ साखाओ बलाहा गोत्रसे निकली वह सब भाई है । (५) मूलगौत्र मोरख - मोरन, पोकरणा, संघवी, तेजारा, लघुपोकरणा, वांदोलीया, चुंगा, लघुचुंगा, गजा, चोधरि, गोरीवाल, केदारा, वातोकडा, करचु, कोलोरा, शीगाला, कोटारी एवं १७ साखाओं मोरखगोत्रसे निकली वह सब लाई है । (६) मूलगौत्र कुलहट - कुलहट, सुरवा, सुसाणी, पुकारा, मसांणीया, स्नोडीया, संघवी, लघुसुरवा, बोरडा, चोधरी, सुरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) णीया, साखेचा, कटारा, हाकडा, जालोरी, मन्नी, पालखीया, खूमारणा एवं १८ साखाओं कुलहट गौत्रसे निकली वह सब भाई है । कमलागच्छ. - (७) मूल गौत्र विरहट - विरहट, भुरंट, तुहाणा, घोसवाला, लघुभुरंट, गागा, नोपत्ता, संघवी, निबोलीया, हांसा, धारीया, राजसरा, मोतीया, चोधरी, पुनमिया, सरा, उजोत, एवं १७ साखा - ओं विरहट गौत्रसे निकली है वह सब भाई है । (८) मूल गौत्र श्री श्रीमाल - श्रीश्रीमाल, संघवी, लघुसंघवी, निलडिया, कोटडिया, भावांणी नाहरलांगी, केसरिया, सोनी, खोपर, खजानची, दानेसरा, उद्घावत, अटकलीया, धाकडिया भीनमाजा, देवड, माडलीया, कोटी, चंडालेचा, साचोरा, करवा एवं २२ साखाओं श्रीश्रीमाल गौत्रसे निकली वह सब भाई है । ( ६ ) मूल गौत्र श्रेष्टि — श्रेष्टि, सिंहावत्, भाला, राबत, वैद, मुत्ता, पटवा, सेवडिया, चोधरी, थानावट, चीतोडा, जोधावत्, कोटारी, बोत्थाणी, संघवी, पोपावत, ठाकुरोत्, बाखेटा, विजोत्, देवराजोत्, गुंदीया, बालोटा, नागोरी, सेखाणी, लाखांणी, भुरा, गान्धी, मेडतिया, रणधीरा, पातावत्, शूरमा एवं ३० साखाओ श्रेष्ट गौत्र से निकली वह सब भाई है । (१०) मूल गौत्र संचेति - संचेति ( सुचंति साचेती ) ढेलडिया, धमाणि, मोतिया, बिंबा, मालोत्, लालोत्, चोधरी, पालागि लघुसंचेति, मंत्रि, हुकमिया, कजारा, हीपा, गान्धी, बेगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. (७) णिया, कोटारी, मालखा, छाछा, चितोडिया, इसराणि, सोनी, मरुवा, घरघटा, उदेचा, लघुचोधरी, चोसरीया, बापावत् , संघवी, मुरगीपाल, कीलोला, लालोत् , खरभेडारी, भोजावत् , काटी, जाटा, तेजाणि. सहजाणि सेणा मन्दिरवाला, मालतीया, भोपावत्, गुणीया, एवं ४४ साखाश्रो संचेति गोत्रसे निकली वह सब भाई है (११) मूल गौत्र आदित्यनाग–अदित्यनाग, चोरडिया, सोढाणि, संघवी, उडक मसाणिया, मिणियार, कोटारी, पारख, 'पारखों से भावसरा, संघवी, ढेलडिया, जसाणि, मोल्हाणि, नडक, तेजाणि, रूपावत् , चोधरि, 'गुलेच्छा '-गुलेच्छोसे दोलताणी, सागाणि, संघवी, नापडा, काजाणि, हुला, सेहजावत् , नागडा, चित्तोडा, चोधरी, दातारा, मीनागग, 'सावसुखा' सावसुखोंसे मीनाग, लोला, वीजाणि, केसरिया, वला, कोटारी, नांदेचा, 'भटनेराचोधरी' भटनेराचोधरियोंसे कुंपावत् , भंडारी, जीमणिया, चंदावत् , सांभरिया, कानूनुंगा, 'गदईया' गदइयोसे गेहलोत्. लुगावत् , रणशोभा, बालोत्, संघवी, नोपत्ता 'बुचा' बु!से सोनारा, मंडलीया, करमोत्, दालीया, रत्नपुरा, फिर चोरडियोंसे नाबरिया, सराफ, कामाणि, दुद्दोंणि, सीपाणि, आ. साणि, सहलोत् , लघु सोढाणि, देदाणि, रामपुरिया, लघुपारख, नागोरी, पाटणीया, छाडोत् , ममइया, बोहरा, खजानची, सोनी, हाडेरा, दफतरी, चोधरी, तोलावत् , राब, जौहरी, गलाणि इत्यादि एवं ८५ साखाओं आदित्यनाग गौत्रसे निकली वह सब भाई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. (७५) (१२) मूलगौत्र भूरि-भूरि, भटेवरा, उडक, सिंधि, चोधरी, हिरणा, मच्छा, बोकड़िया, बलोटा, बोसूदीया. पीतलीया, सिंहावत् , जालोत् , दोसाखा, लाडवा, हलदीया, नाचाणि, मुरदा, कोटारी, पाटोतीया एवं २० साखाओं भूरि गौत्रसे निकली वह सब भाई है। (१३) मूलगौत्र भद्र-भद्र, समदडिया, हिंगड, जोगड, लिंगा, खपाटीया, चवहरा, बालडा, नामाणि भमराणि, देलडिया, संघी, सादावत् , भांडावत् , चतुर, कोटारी, लघु समदडिया, लघु हिंगड, सांढा, चोधरी, भाटी, सुरपुरीया, पाटणिया, नांनेचा, गोगड, कुलधरा, रामाणि, नथावत्, फूलगरा एवं २६ साखाओं भद्रगोत्रसे निकली वह सब भाई है । (१४) मूलगौत्र चिंचट-चिंचट, देसरडा, संघवी, ठाकुरा, गोसलांणि खीमसरा, लघुचिंचट, पाचोरा, पुर्विया, निसांणिया, नौपोला, कोठारी, तारावाल, लाडलखा, शाहा, आकतरा, पोसालिया, पूजारा, वनावत् , एवं १६ साखाओं चिंचटगोत्रसे निकली वह सब भाई है। (१५) मूत्रगौत्र कुमट-कुमट काजलीया. धनंतरि. सुंघा जगावत् संधवी पुगलिया कठोरीया कापुरीत संभरिया चोक्खा सोनीगरा लाहोरा लाखाणी मरवाणि मोरचीया. छालीया मालोत् लघुकुंमट नागोरी एवं १९ साखाओं कुंमटगोत्रसे नीकली यह सब भाई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. ( ७६ ) (१६) मूलगोत्र डिडू-डिडू राजोत् सोसलाणि धापा धीरोत् खंडिया योद्धा भाटिया भंडारी समदरिया सिंधुडा लालन कोचर दाखा भीमावत् पालणिया सिखरिया. वांका वडवडा बाद. लीया कानूंगा. एवं २१ साखाओं. डिडूगोत्रसे निकली वह सब भाई है। (१७) मूलगोत्र कनोजिया-कन्नोजिया वडभटा राकावाल तोलीया धाधलिया, घेवरीया, गुंगलेचा, करवा, गढवाणि, करेलीया, राडा, मीठा, भोपावत् , जालोरा, जमघोटा, पटवा, मुशलीया एवं १७ साखानो कनोजिया गोत्रसे निकली यह सब भाई है। (१८) मूलगोत्र लघुश्रेष्टि-लघुश्रेष्टि, वर्धमान, भोभलीया लुणेचा, बोहरा, पटवा, सिंधी, चिंत्तोडा खजानची, पुनोत्गोधरा, हाडा, कुबडिया, लुणा, नालेरीया, गोरेचा, एवं १६ सा. खाओ लघुश्रेष्टिगोत्रसे निकली वह सब भाई है। २२-५२-१४-२६-१७-१८-१७-२२-३०-४४८५-२०-२६-१६-१६-२१-१७-१६ कुल संख्या ४६८ मूल अठारा गोत्रकी ४९८ साखाओ हुई इसपर पाठकवर्ग विचार करसक्ते है कि एक समय ओसवालोंका कैसा उदय था और कैसे बड़वृक्षकी माफीक वंसवृद्धि हुई थी इति ओशीयों नगरीमे बनाये हुवे १८ गौत्र ससाखाओं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेरखा. रत्नप्रभसूरि शीयोंके सिवाय अन्य स्थानोंमें ओसवाल. बनाये कमलागच्छ. हुए (१) मूलगौत्र चरड – चरड़, कांकरीया, सानी, कीस्तुरीया, बोहरा, अनुपत्ता, पारणिया, संघवी वरसांणि. (२) मूलगौत्र सुघड - सुघड, संडासिया, करणा, तुला, बोहरादि. (३) मूलगौत्र लुंग – लुंग, चंडालिया, भाखरीया ( ७७ ) रांणोत् । (४) मूलगौत्र गटिया - गटिया, टींबाणी, काजलीया आचार्य रत्नप्रभसूरके बाद उनके परम्परामें आचार्योंने औरभी क्षत्रीयोंको जैन बनाया था जैसे- (१) मूलगौत्र आर्य - लुणावत संघवी सिन्धुडा | (२) मूलगौत्र काग - (३) मूलगौत्र गरुड- - धाडावत चापड | (४) मूलगौत्र सालेचा -- बोहरा, जोधावत्, बनावत्, गान्धी कोटारी पाटणीया चोधरी । (५) मूलगोत्र वागरेचा - सोनी संधि जालोरा । (६) मूलगौत्र - कुंकुंम चोपडा, धूपिया, कुंकडा, गणधर चोपडा, जावलीया, वटवटा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. (७८) (७) मूलगौत्र-सफला-बोहरा, सांढिया, जालोरा, कोटारी, भलभला । (८) मूलगौत्र नक्षत्र-घीया संपवी खजानची । (६) मूलगौत्र आभड- कांकरेचा कुबेरिया पटवा, चोधरी, कोठारी, सांभरिया संधि मेहता । (१०) मूलगौत्र-छावत् , कोणेजा, गटीयाला लेहेरीया चौहाना। (११) मूलगात्र तुंड-वागमार फलोदीया हरसोरा ताला, साचा संधि । (१२) मूलगौत्र पछोलीया-पीपला, बोहरा, रूपावत नागोरी । (१३) मूलगौत्र हथुडिया-छपनीया रातडीया, गौड, राणावत् । (१४) मूलगौत्र मंडोवरा-रत्नपुरा, बोहरा, कोटारी । (१५) मूलगौत्र मल-मला, वीतरागा, कीडेचा, सोनी । (१६) मूलगौत्र-गुदेचा, गगोलीया वागाणी । (१७) मूलगौत्र छाजेड-संघवी नखा चावा । (१८) मूलगौत्र राखेचा-पुंगलीया पावेचा धामाणि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्या. १ तातेड. गौत्र. २ बाफणा कवट ४ ५ ७ ८ राजपूतों से मूल गौत्र. बलाहा मोरख ត कुलहट विरहट श्रीश्रीमाल & १० ११ १२ भूरि १३ भद्र चिंचट १४ १५ कुंमट १६ डिड्डू १७ कन्नोजिया १८ लघुश्रेष्टि "" १ चरड २ सुघड ३ लुंग ४ गटिया "" "" "2 श्रेष्टि संचेति श्रादित्यनाग,, "" " "" " >> ," " "" 39 " ,, "" गौत्र. 32 "7 91 1 साखाओं. तोडिया आदि २२ नाहाटादि ५२ आच्छादि १४ कावकादि २६ पोकराणादि १७ सुखादि १८ भुरंटादि १७ नीलडियादि २२ वैदमुत्तादि ३० ढेलडियादि ४४ चोरडियादि ८५ भटेवरादि २० समदडियादि २६ देसरडादि १६ काजलीयादि १६ कोचरादि २१ दि १९ वर्धमानादि १६ कांकरीयादि संडासियादि चेडालिया दि टीबांणीयादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat आचार्य. "" "" पार्श्वनाथ भगवानके छटेपाट रत्नप्रभसूरि. वीर निर्वाणके बाद ७० वर्ष विक्रम संवत् से ४०० वर्ष पहेला जिसकों आज २३८३ वर्ष हुवा है । नगर उपकेश पट्टन ( वर्तमान में उसे ओशीयों कहते है ) कुलदेवी सचायिका. "" समय. 27 "" ,, "" नगर. A: "" " "2 कुल देवी. 33 " "" "" www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्या मूलगोत्र. | साखाओ. | आदिपुरुष. | पूर्वनाति. प्र० प्राम. प्रतिबोधित | विक्रम आचार्य. | मंवत् (40) आर्य गौत्र | लुणावतादि राव गौसल भाटी अटवड० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat राव काजल राठोड ૧૪૨ | छाजेड , सुरावतादि राखेचा ,, | पुंगलियादि राव राखेचा भाटी ८७८ काग पृथ्वीधर हान । १०११ गरुड , धाडावतादि महाराय देवगुप्तसूरि । शिवगढ सिद्धत्रि कालेर देवगुप्तसूरि धामाग्रामें | ककसूरि सत्यपुर सिद्धसूरि ,, ,, वागरा ककसूरि । देवगुप्तसूरि । जालोर सिद्धसूरि १०४३ सालमसिंह सोलंकी पाट्टण ९१२ ६ | सालेचा ,, | बोहरादि वागरेचा ,, | सोन्यादि गजसिंह चौहान १००९ कुंकुंम , धुपीयादि अडकमल राठोड कन्नोज ८८५ सफला , बोहरादि लाखणसि चौहान १२२४ www.umaragyanbhandar.com नक्षत्र , धीयादि मदनपाळ राठोड वटवाडाग्रामे | ककसूरि gg४ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौहान | सांभर | ककसूरि १.७१ पँवार धारानगरी सिद्धसूरि १०७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कांकरेचादि . रावआभड कोणेजादि | रावछाहड ,, | वागमारादि - सूर्यमल पीच्छोलिया | पीपलादि । वासुदेव । बौहान | तुंडग्रामे | गौड ब्राह्मण | पाल्हणपुर | देवगुप्तसूरि । १२.४ हथुडिया ,, | छपनयादि । राउ अभय० । राठोड हथुडि ११४१ भंडोवरा ,, | रत्नपुरादिः । देवराज पडिहार भंडोर . सिद्धसूरि ९३५ वीतरागादि मलवराव राठोड खेडयामें - " " ९४९ १८ | मुंदेचा, गोगलीयादि | राव लाधो पडिहार पावागढ़ देवसूरि १०२६ www.umaragyanbhandar.com ... उपकेश गच्छाचार्योमें पहला पाचवे पाट बाद तीसरे पाट वहका वह नाम आया करते है जैसे देवगुप्तसूरि सिद्धमरि ककसरि. उपकेशगच्छ द्विवन्दनिकगच्छ और खजवाणा कि साखा एवं तीनों पटावालियोमें कक्कसूरि, देवगुप्तसरि, सिद्धसरि नाम वारवार आया करते है वास्ते कीतने ही स्थान पर समय निर्णय करनेमें लोक चक्रमें पड जाते है और भाटों कि वंसावलियों में तो संवत् सालमें इतनी गडबड है कि वह सत्यसे सेकडों हाथ दूर रहेती है विशेष खुलासाके लिये लेखकसे दरियाफत करो या " जैन जाति महोदय " कीताब देखो । (८१) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमलागच्छ. (८२) उपर लिखे हुवे ४० मूलगौत्र की साखा प्रतिसाखारुप जातियों हुई है इन सब जातियोंकों प्रतिबोध देनेवाले आचार्य उपकेश गच्छ यानि कमलागच्छके थे वास्ते इन जातियोंका मूल गच्छ उपकेश (कमलागच्छ) है प्रायः इन सब जातियोंकी वंसावलि यां भी उपकेशकमलागच्छ की पोशालोंवाले महात्मा लिखते हैं। कीतनेक ग्रामोंमे महात्माओंका आना जाना न होनेसे भाट लोक भी ओसवालोंकी वंसावलियों लिखनी सरू करदी है पर भाटोंके पास पुरांणी वंसावलियो नहीं है. कमलागच्छीय महात्माओंकी पोसालो-वीकानेर, नागोर, खजवाणा, खीवसर, संखवाय, मेडता, जोधपुर, पाली, बुंदी, नरवर, आनंदपुर ( कालु ) जसनगर ( केकीन्द ) वैड, लाबीयों जैतारण, रास, आमेट, केलवे, पादडी, पीपलोद, लाहवे, सोजत, राजनगर, पीपलाज, हुरडे, सादडी, चोकडी, पालासणी, कोटा, माधुपुर, ईडवे, सेथाणे, जैपुर, सागानेर, छीपीये, रामपुर, चौणंद, भणाय, कणेडे, इन के सिवाय भी कमलागच्छ की पोसालों होगा इन पोसालोंवाले महात्मा उपर लिखे ४० मूलगोत्र और साखाओं अर्थात् इतनी जातियोंवाले की वंसावलि लिखते है अगर इन जातियोंसे कीसको अपना सरुसे खुर्शी नाम उतारना होतो पत्ता मील सक्ता है. __उपर लिखी जातियोंका मुद्दासर खुलासा साल संवत् आदि पुरुष तथा सुकृत कार्य कीया हुवोंका वर्णन “ जैन जाति ग्रहोदय " नाम की कीताबमें दीया गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट - तपागच्छ. ( ८३ ) -- ( २ ) कोरंट गच्छोपासक ओसवालोंके गौत्र - माडोत सुंघेचा, धूवगोता, रातडिया, बोत्थरा ( वच्छावत मुकीम फोफलीया) कोटारी, कोटडिया, धाडिवाल, धाकड़, नागगोत्ता, नागसेठिया, धरकट, खीवसरा, मथुरा, सोनेचा, मकवारणा फीतुरीया, खाबीयो, सुखीया, संकलेचा, डागलिया, पांडुगोता, पोसालेचा, सहाचेती, नागरणा, खीमाणदीया, बड़ेरा, जोगणेचा, सोनाणा, जाडेचा, चिचडा, कपुरिया, निंबाडा, बाकुलिया. एवं ३४ गौत्र. इन गौत्रोंसे साखाओं कीतनी निकली वह फिर प्रकाशित की जावेगा कोरंटगच्छ पोसालोवाला इन जातियों कि वंसावलि ad है । ( ३ ) वृहत्तपागच्छ या नागपुरिया तपागच्छोपासक सवालों की जातियों - ( १ ) मोहलोगि, नौलखा, भुतेडीया, ( २ ) पीपाडा, हीरण, गोगड़, शिशोदीया, ( ३ ) रूणिवाल, बेगाणी, ( ४ ) हिंगड, लिंगा, (५) रायसोनी, (६) झाड, झाबक, ( ७ ) छलाणी, छजलाणी, गोडावत, (८) हीराउ, केलाणि, ( ६ ) गोखरू, चोधरी, (१०) राजबोहरा, ( ११ ) छोरीया, सामडा, ( १२ ) श्रीश्रीमाल, (१३) दूगड, (१४) लोढा, (१५) सुरिया - मठा (१६) जोगड, नक्षत्र, ( १७ ) नाहार, ( १८ ) जडिया. इन अठारा मूलगौत्र तथा इन की १ खाबीया ललवाणि कलबाणि मोलागि. कंदरसगच्छका भी कहते हैं स्यात् इन जातिकी वीरतां मुशाला विगेरहमे दे दी हो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) साखाओं की वंसावलि खराडी, बलुंदो, पांदु, नागोर के तपा गच्छीय महात्मा लिखते है . * तपागच्छ. वरडिया, वरदिया, वरहुडिया, बांठीया, चामड़, कवाड, शाहा, हरखावत, लालागि, गांधी, राजगांधी, वेदगान्धी, सराफ, लुंकड, बुरड़, सांध, मुनौत, गोलीया, आस्तेवाल, कछोला, मरडेचा, सीलरेचा, मादरेचा, लोलेचा, भाला, विनायकीया, कोटारी, मीन्नी, खटोल, चोधरी, सोलंखी, आंचलीया, गोठी, छत्रीया, डफरिया, गुजराणी, शेष अज्ञात इत्यादि इन सब जातियोंका तपागच्छ है । (४) आंचलगच्छोपासक ओसवाल जातियों गाल्हा श्रथागोत, बुहड, कटारीया, रत्नपुरा, कोटेचा, सुभादा, बोहरा, नागड, मीठडीया, वडोरा, गन्धी, देवानंदा, गोतमगोत्ता, दोसी, ( डोसी ) सोनीगरा, कांटीया, हरीया, देडिया, बोरेचा स्याला घरबेला इन मूलगोत्रोसे केई साखाओं भी नीकली है इन सब 'जातियोंका गच्छ आंचलगच्छ है । ( ४ ) मलधारगच्छोपासक - पगारीया, कोटारी, बंबगंग, गीरीया, गेहलडा, चंडालिया, खींवसरा, शेष अज्ञात । ( ५ ) पुनमियागच्छोपासक - सांढ, सीयाल, सालेचा, पुनमिया, शेष, अज्ञात । ر (६) नाणावालगच्छ— रणधीरा, काटारी, ढड्ढा, श्रीपति, तिलेरा, कावडिया शेष अज्ञात । * महात्मा जसराजजी नागोरवालोंकी वसावलियोंसे उत्तारों कीनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुराणादिगच्छ. (७) सुराणागच्छोपासक-सुराणा संखला, वणवट, मिटडियासोनी, उस्तबाल, खटोड, नाहार, शेष अज्ञात । (८) पलिवालगच्छोपासक-धोखा, बोहरा, डुंगरवाल, शेष अज्ञात । (६) कंदरसागच्छोपासक-खाबिया, गंग, बंब, दुधेडिया, कटोतीया शेष अज्ञात । (१०) सांडेरागच्छोपासक-गुगलिया, भण्डारी, चुतर, धारोला, कांकरेचा, बोहरा, दुधेडिया, शिशोदीया, शेष, अज्ञात एवं १२ गोत्र सांडेरा गच्छवालोंको के थे वह आसोपवाले खरतरगच्छीय महात्माओं को मुशाला में देदीये थे जबसे उक्त १२ गोत्रोंकी वंसावलि आसोप पोसालके महात्मा लिखते है । . इनके सिवाय मंडावरागच्छ आगमियागच्छ छापरियागच्छ वडगच्छ चित्रवालगच्छ जीरावलागच्छ द्विवन्दनिकगच्छादिके महात्मा भी ओसवालोंकि वंसावलियों लिखा करते है पर वह कीतने गौत्र और कोन कोनसे गोत्र लिखते है वह ज्ञात होनेपर आगेके अंकोंमे प्रकाशित कीया जावेगा। उपर लिखी जातियों में संधि चोधरी बोहरा. खजांनची. कोठारी आदि के नाम बहुत से गोत्रोंमें आते है वह संघ निकाल नेसे चोधर या कोठारका काम करनेसे हुवा है और कितनिक जातियोंका एक गच्छमें नाम है वह ही नाम दूसरा गच्छमें आता है इसका कारण यातो एक गच्छवाला दूसरा गच्छवालोंको दे दीया हो जैसे सांढेरा गच्छवाले १२ गोत्र खरतरगच्छवालोंको दे दीया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () कर्मचंद. था. या कोई अन्य कारण होगा। अगर सब गच्छोंके महात्मा अपने अपने गोत्रोंको छपाके प्रगट करे तो इसका निर्णय ठीक तौरपर हो सकता है। . जैसे अन्य गच्छों की पोसालें है वैसे खरतरगच्छकी भी बहुत पोसालें है पर वह एकाद पोसाल के सिवाय ओसवालों कि वंसावलियो नहीं लिखते है उनका कहना है कि बीकानेरमे कर्मचंद वछावतने हमारी वंसावलियां कुँवामे डाल दी थी वहांपर हमारे पूर्वजोंने आत्मघात करी और कर्मचंद वच्छावत तथा वछावतोंके कुल परिवार को बीकानेर राजाने मारडाला था मात्र एक वच्छावत कि सगर्भा ओरत ढाढी के घरमें छीपके अपना प्राण बचाया था उसकी ओलाद के वछावत हाल है उनका नाम ढाढी लिखा करते है । परं बीकानेर का इतिहाससे यह वात कल्पित पाइ जाती है बीकानेर इतिहास कहता है कि कर्मचंद वछावत बीकानेर का राजा रायसिंहजी का मंत्री था और बादशाह अकबर का कृपापात्र भी था. वि. स. १६५२ में कर्मचंदादि केइ लोगोने राजा रायसिंह के विरुद्ध में षट् यंत्र रच राजगादी राजकुमार दलपसिंह को देने की खटपट कर रहे थे वह खबर राजा रायासिंहको पडी. तब कर्मचंद बीकानेरसे भाग दिल्लि बादशाह अकबरके सरणमें चला गया. बाद वि. सं. १६६४ मे राजा रायसिंहजी दिल्लि गया उस समय कर्मचंद मृत्युकी शय्या पर सुता हुवा था अर्थात् सख्त बीमार था राजा रायसिंह कर्मचंदके पास गया सुखसाता पुच्छ शोक प्रगट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मचंद. (20) कीया उसका मतलब यह था कि कर्मचंद मरणेकी तय्या में है में मेरा बदला ले नहीं सका । कर्मचंद मरते समय अपने पुत्रों को यह शिक्षादी की वीकानेर राजा तुमको कीतनाही लालचा देवे तो भी तुम बीकानेर नहीं जाना. कर्मचंद दिल्लिमें काल कर गया. राजा रायसिंहजीभी वि. सं. १६६८ मे काल करते समय अपने छोटा पुत्र शूरसिंहसे कहा कि कर्मचंदका बदला मेरा हृदयमें खटक रहा है वास्ते उनके पुत्रोंसे तुम बलला जरुर लेना इत्यादि. अगर यह इतिहास सत्य है तो महात्मा या यतियों का लिखना है कि कर्मचंद वछावतने वंसावलिये कुवामें डाल दी और बीकानेर राजाने कर्मचंदको इस अत्याचार के बदलेमें मारा और बछावतोंका सर्वनाश कीया यह बिलकुल मिथ्या है। कारण कर्मचंदका मृत्यु हुवा दिल्लिमें और राजा रायसिंहका मृत्यु हुवा बुरानपुरमें । . कीतनेक श्रीपूज्योंने अन्यगच्छीय श्रावकों पर अपनी छापमार अपने दफतरोंमें उनको अपने गच्छके लिखनेकीभी साबुती मिलती है जिसका कारण. (१) जिस देश जिस प्रान्त में जीस आचार्योका विहार हुवा वहांके अन्यगच्छीय श्रावकों को अपनी क्रिया करवाके अपने दफतरोमे उनका नाम लिख अपने गच्छकी छाप ठोकदी. (२) अन्य गच्छीय श्रावके को माला मंत्र यंत्र बतलाके अपनि छाप मार दी कि यह श्रावक हमारे गच्छ के है । (३) अन्य गच्छीय श्रावक कीसी श्रीपूज्योंसे प्रतिष्टा कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (44) श्रीपूजों की पोलिसी. वाई हो तो श्रीपूज उन श्रावकका नाम अपने दफतर मे अपने गच्छके श्रावक तरीके लिख दीया. (४) अन्य गच्छीय श्रावकके निकाला हुवा संघ में कीसी श्रीपूजकों साथ ले गये तो उस परभी अपने गच्छके श्रावकों की छाप ठोक दी. (५) अन्य गच्छीय श्रावक कीसी श्री पूज्योंसे मगवत्यादि प्रभाविक सूत्रका महोत्सव कर सुना हो उसे भी अपना श्रावक होना मान लीया. (६) अन्य गच्छीय श्रावक कीसी श्री पूजको खमासमण दीया हो वा नगर प्रवेशका महोत्सव कीया हो उसेभी स्वगच्छकी श्रेणिमें मान लीया. (७) अन्य गच्छीय श्रावक कीसी दूसरा गच्छके आचाका पद महोत्सव कीया हो तो दफतरोंमे दाखल कर लेते है की यह श्रावक हमारे गच्छका है इत्यादि एसी बहुतसी घटनाएं हुई है जिसका खुलासा जैन जाति महोदय नामकी की ताब में विवर्णके साथ लिखा गया है । पाठक वर्ग यह नहीं समजे की लेखकके हृदयमें गच्छकदाग्रह है मेरा खास हेतु यह है कि जो असलि वस्तु इतिहास के रुपमेंथी ऊसे बदलाके एक कपोल कल्पीत गप्पोंकि श्रेणिमें लेजाना इससे इतिहासकों कितनि हानि पहुंचती है उसे रोकना. दूसरा जिन महात्माओंने अपनी आत्मशक्ति व उपदेश द्वारों जिन भव्यात्माओं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat • www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तिम निवेदन. ( ८९) को दुर्गतिका रस्ता छोडा के सुगतिकि सडकपर लगाया था उन पूज्यवरोंका नाम तकको भुला देना क्या यह सरासर अन्याय नहीं है ? अगर अन्याय है तो उसे न्याय देना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है। अब हम हमारे पाठकों को यह कहना चाहते है कि कोइ भी श्रावक यथारूची कीसी भी गच्छकी क्रिया करता हो उससे हमारा किंचत् भी विरोध नहीं है हमारा विरोध तो खास उससे है कि इतिहासके खिलाप लेख लिख कर जैन लेखकोंकि हांसी कराता है इस वास्ते ही जनताको यथार्थ सरूप बतलानेको यह मेरा प्रयत्न है. इसको पढके हमारे ओसवाल सजन अपनी अपनी जातिका निर्णय कर अपना वंशवृक्ष--खुर्शी नाम शीघ्रतासे तय्यार करेंगें। अन्तमें यह निवेदन है कि इस दोनों अंक लिखनेमें मेने बहुत छानबीन करी है तथापि मेरे जैसे अल्पज्ञ से त्रुटियों रहना स्वाभाविक वात है इस नियमानुसार अगर मेरे लिखने में कोई त्रुटियों हो उसे सुधारके पढे ओर मुझे सूचना देनेकी कृपा करे तांके द्वितीयावृत्तिमे सुधारादी जावे शम् ॐ शान्ति शान्ति शान्ति eGESEAREIDOESO समाप्तम् SRIDEREDGeo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'जैन जाति महोदय' नामकी किताब तय्यार हो रही है जिसकी विषय सूची. (१) जैन धर्म अनादि कालसे प्रचलीत है जीसमें वर्तमान चौवीस तीर्थकरो का वर्णन । (२) भगवान पार्श्वनाथ प्रभुकी परम्परा से आज तक आचायोंकी बृहत्पट्टावलि और जैन जाति बन्धारण की शरुआत । (३) जैन जातियों द्वारा देशसेवा, राजसेवा, समाजसेवा, धर्मसेवा और उनके प्राचीन वंशावलियों, मूल गौत्र, शाखा--प्रतिशाखाओंका वर्णन । (४) जैनधर्मोपासक राजा-महाराजाओं द्वारा देशोन्नति और शान्ति का साम्राज्य । (५) जैनधर्मोपासक मंत्री, महामंत्री, दीवान, प्रधानादि पदाधिकारियों से देशोन्नति। (६) जैनधर्मोपासक रणकुशल, संधिकुशल वीर योद्धाओं की विजयपताका और वीर योद्धाओं के पीछे वीराङ्गनाओं की सती होने की लोकप्रथा । (७) जैनधर्मोपासक व्यापारीयों के जरिये देश-विदेश में न्यापारोन्नति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१ (८) जैनधर्मोपासक दानवीरों की तरफ से अनेक भयंकर दुष्कालों में उदारतापूर्वक खोली हुइ दानशालाओं, पशुपालन, गौरक्षक संस्थाओं का वर्णन | (A) जैनधर्मोपासकों को राजा-महाराजा, बादशाहों की तरफ समीला हुआ पदाधिकार- जगतशेठ, नगरशेठ, कमलापति, शाहादि शेठजी बोहराजी आदि का वर्णन । (१०) जैनधर्मोपासकोंके राजा-महाराजा, जागीरदार और कीसान लोग जिन के करजदार रहते है उन्हों को " बोहरों" की पद्वि मीली थी । (११) जैनाचार्योने अपना मंत्रबल, विद्याबल, ज्ञानबल द्वारा जनता का कीया हुवा कल्याण का वर्णन | (१३) जैनधर्मोपासकोंने जनता का कल्याण के लिये क्रोडों द्रव्य खरच कर बडे बडे तीर्थों पर ग्राम-नागरादिक में बन्धाये हुवे भव्य जिनालयों का वर्णन | (१४) जैनधर्मोपासकोंने -- क्रोडों रुपये खरच कर अनेकवार तीर्थयात्रा निमित्त निकाले हुवे संघ जिस में अन्यधर्मीयों की सहानुभूति का वर्णन | (१५) जैनधर्मोपासकोने जनता के आरामी के लिये क्रोडो द्रव्य खरच कर बनाये हुवे तलाव, कुआ, वावडीयां, मठ, धर्मशाला आदि का वर्णन | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) जैनधर्मोपासकोंने आर्य कला-कौशल्य कों दीया हुवा उत्तेजन का वर्णन । (१७) जैनाचार्यो का देशाटन से पशुहिंसा बन्ध और 'अहिंसा परमोधर्म' का प्रचार से देश की उन्नति और पशुधन पालन से देश को अनेक फायदा । (१८) जैनाचार्योने अनेक विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखके करी हुइ साहित्य की उच्च कोटी की सेवा का वर्णन । (१९) जैनाचार्योंने अनेक राजा-महाराजाओं की सभाओं में शास्त्रार्थ कर सत्य धर्म का प्रचार और विजयपताका का वर्णन । (२०) जैनधर्मोपासकोंने अनेक उपद्रवो में क्रोडो रुपैये खरच के जनता के हित के लिये कराइ हुइ शान्ति का वर्णन | (२१) जैन धर्म पर वर्तमान कीतनेक अज्ञ लोग व्यर्थ आक्षेप करते है. जैसे-जैन निर्बल है, जैन कायर है, जैन शाकभाजी के खानेवाले है, जैन गंधी हुइ गटर है, जैन काला नाग है, हिन्दुस्तान की गीरती दशा का कारण जैन ही है इत्यादि. इन सब आक्षेपों का सप्रमाण सभ्यतासे दिया हुवा उत्तर का वर्णन । उपरोक्त २१ विभाग में यह “जैन जाति महोदय" नामक कीताब समाप्त की जायगी. जैनों के सिवाय अन्य जातियों का गौरव जो हमे मीला है या मीलेगा वह भी निष्पक्षदृष्टि से इस किताब में दर्ज कर दीया जायगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस किताब के पढने से आप को यह रोशन हो जायगा कि पूर्व जमाना में जैन जाति का कितना गौरव और कितनी विशाल संख्या थी. वह कीस कीस कारणोंसे आज गरी दशा को भोग रही है और अब कीन कीन उपायों से पुनः गया गौरवको प्राप्त कर सके. वह उपाय साध्य है या असाध्य ? अगर साध्य है तो जैनकोम आंखो मिंच क्यों अंधारा कर बेठी है वह सब स्पष्टता से बतलाये गये हे और भी कोइ उपयोगी विषय इस किताब में लिखा जावेगा. ओसवालो जागो ! और आपका सच्चा इतिहास जनताके सामने रखो ! इस किताब कि समाप्ति के समय मुझे एक " जाति अन्वेषण प्रथम भाग " नाम कि किताब मीली जिस्का लेखक फूलेरा निवासी. पं. छोटालाल शर्मा है इस्वीसन १९१४ में छपी है उस किताब के पृष्ट १३२ से १३६ तक ओसवालों के बारामे उल्लेख करता हुवा लेखकने लिखा है किओसवाल, डोसी-शूद्रपापीष्टकुकर्मिजातियोसे बने हैं। ... , . छाजेड-छाज वेचनेवालि जातियोंसे बने है ,, संघी-सींग वचनेवालि जातियोंसे बने है चंडालिया-भंगीयों--चंडालोसे बने है बलाई-बांभीयोसे बने है, तेलीया-तेलीयोंसे बने है... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्यादि 31 जातियो के नाम लिख लेखकने शंका करी है कि ओसवालों को कोनसा वर्ण में लिखा जावे ? उक्त कीताबको पढतेही पीपाड के ओसवालों ने एक नोटिस उक्त लेखकको दीया हे कि पवित्र क्षत्रीवर्ण से बनीहुई ओसवाल जातिपर आपने मिथ्या आक्षेप कीया है इसे आप शीघ्रतासे वापीस खींचलो नहीं तो ओसवालजाति इस मिथ्या आक्षेपको कभी सहन नहीं करेगी इत्यादि / आशा है कि शर्माजी अपना--मिथ्या आक्षेपको पाच्छा हटा लेगा नहीं तो हमे आगे बढना होगा। ओसवालो ? आपने देखा होगा, पढा होगा, सुना होगा, की जाट क्षत्रीमहासभा " मालिक्षीसभा" मेण (सुनार)क्षत्रीसभा सुतार विश्वाकांकी संतान है कुंभारराजा प्रजापतिका संतान है ढेढ खास परमेश्वरके अंगसे पैदा हुवे. नाई इश्वरकी संतान है. मेणा भीलभी राजपुत्त बनने को तैय्यार है तब आप खास क्षत्रीयोसे ओसवाल बने हो जिसकि साबुति इतिहास दे रही है इतने परभी अज्ञलोक आपको शूद्रादि हलकी जातियोंसे ओसवाल बने हुवे लिखने को तय्यार होगये है / क्या आपमें जाति गौरव है ? क्या आपमें कुच्छ जीवन रहा है ? अगर रहा है तो अपनि पवित्र जातिका सत्य इतिहास लिख जनताके सन्मुख रखो कि मिथ्या लेख लिखनेवालेका मुंह खटा होजाय आगे स्थान अभाव / onance समाप्त. too-e0000 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com