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भंडारी.
(६१)
को वि० सं० १४७८ मे भद्रसुरिने जैन बनाया मूल गच्छ खरतर बाद अन्य गच्छ को मानने लग गये---
__समा० सांभरका रावलाखण वि. सं. १०२४ मे नाडोल के भीलमैणोको पराजय कर अपनी राजधानी नाडोलमे स्थापन की. वि.सं १३६६ तक नाडेलमे चौहानोका राज रहा बाद अलाउदीन खीलजीने नाडोल छीन चौहानोंका राजकी समाप्ति करदी अबयह सोचना चाहिये कि १४७८ में नाडोल पर चौहानोंका राज भी नहीं था राव लाखणका समय १०२४ का था तो भद्रसूरि कीसको प्रतिबोध दीया ? क्या भंडारी एसे अज्ञात हैं कि यतियोंकी गप्पोंके सत्य मान लेगा ? दर असल राव लाखण के समय भद्रसूरि तो क्या पर खरतर गच्छका भी जन्म नही था. सत्यवात यह है कि नाडोलका चौहान राव लाखण के चार पुत्रों से दुद्धाजी नामका पुत्रको वि.स.१०३६ में यशोभद्राचार्य प्रतिबोध दे जैन बनाया आशापुरी माताको भंडार का काम करने से भंडारी कहलाये । दुद्धाजी की २१ वी पीढी में दीपचंदजी हुवे वह अपने मोशाल संचेतीयों के वहां रहते थे वास्ते संचेतीयोंकी कुलदेवी सचायाका और नानाजी के गुरु कमलागच्छवालोंको मानने लगे। शेष भंडारी तपागच्छके है । दुद्धाजी से प्रान तक भंडारियों का खुर्शीनामा जैतारणवाले श्रीयुक्त अभयराजजी भंडारी के पास मोजुद है। (३०) डागागोत्र
___ डागों के बारामे वा० लि. नाडोल के चौहान डुम्जीपर दिल्लि के बादशाहाने फोज भेजी उस समय जिनकुशलसूरिने सुत्ता हुवा बादशाहा का पलंग मंगवाय के बादशाहा से माफी मंगवाइ. उस डुगजी को जैन बना डागा जाति स्थापन करी ।
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