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सींघी भंडारी. कलिकालका भरतेश्वर न बन जाता ? पर इतनी उदारता कहां थी ? दर असल छाजेड कमलागच्छ के श्रावक हैं आगे केइवार अदालतोमे इन्साफ हो परवाणा भी हो चुका है। एक नकल देखो चोराडियोंकी समालोचनामें, विशेष विस्तार : जन जाति महोदय' छाजेडोंकि वंसावलि और सुकृतकार्य की सूची भी दी गई है। ( २८ ) सिंघो
इन के बारामे वा० लिखमारा हैं कि सीरोही के राजमें ननवाणा ब्रह्मण (वोहरा) सोनपालका पुत्र को साप काटा था, वि. सं ११६४ में जिनबालभसूरि विषोतार जैन बनाया बाद संघ निकालने से संधि कहलाये मूलगच्छ खरतर बाद सत्तरेसोमे तपा हुवा।
समा० अव्वल तो ग्राम का नाम नहीं लिखा दूसरा सांप कटा के जैन बनाना तो यतियों के लिये एक बालकों का खेलसा हो गया, संघ निकालने से संघवी तो बहुतसी जातियोंमें हुवे थे पर यह संघि एक हि जातिके है दर असल चंदरावती के पास ढेलडीया गांवके पंवारोको लोग ढेलडीया पँवार कहा करते थे वि० स० १०२३ मे सर्वदेवसूरिने पँवार संघराव को प्रतिबोध दे जैन बना उसके संघि जाति स्थापन करी संघरावका पुत्र विजयरावने एक क्रोड रूपैया खरचके चन्द्रावती में एक मंदिर कराया था संघरावकी सात पीढी तक तो गज कीया था बाद मुसलमानों की लुटफाटसे मुत्शदीपेसा व व्यापार करने लगा वास्ते संघियो का सरूसे तपागच्छ है देखो विस्तार — जैनजाति महोदय' से (२९) भंडारी
इस जातिके बारामें वा. लि. नाडोल के लाखणरावके महेसरादि छ पुत्रों
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