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________________ ( ८४ ) साखाओं की वंसावलि खराडी, बलुंदो, पांदु, नागोर के तपा गच्छीय महात्मा लिखते है . * तपागच्छ. वरडिया, वरदिया, वरहुडिया, बांठीया, चामड़, कवाड, शाहा, हरखावत, लालागि, गांधी, राजगांधी, वेदगान्धी, सराफ, लुंकड, बुरड़, सांध, मुनौत, गोलीया, आस्तेवाल, कछोला, मरडेचा, सीलरेचा, मादरेचा, लोलेचा, भाला, विनायकीया, कोटारी, मीन्नी, खटोल, चोधरी, सोलंखी, आंचलीया, गोठी, छत्रीया, डफरिया, गुजराणी, शेष अज्ञात इत्यादि इन सब जातियोंका तपागच्छ है । (४) आंचलगच्छोपासक ओसवाल जातियों गाल्हा श्रथागोत, बुहड, कटारीया, रत्नपुरा, कोटेचा, सुभादा, बोहरा, नागड, मीठडीया, वडोरा, गन्धी, देवानंदा, गोतमगोत्ता, दोसी, ( डोसी ) सोनीगरा, कांटीया, हरीया, देडिया, बोरेचा स्याला घरबेला इन मूलगोत्रोसे केई साखाओं भी नीकली है इन सब 'जातियोंका गच्छ आंचलगच्छ है । ( ४ ) मलधारगच्छोपासक - पगारीया, कोटारी, बंबगंग, गीरीया, गेहलडा, चंडालिया, खींवसरा, शेष अज्ञात । ( ५ ) पुनमियागच्छोपासक - सांढ, सीयाल, सालेचा, पुनमिया, शेष, अज्ञात । ر (६) नाणावालगच्छ— रणधीरा, काटारी, ढड्ढा, श्रीपति, तिलेरा, कावडिया शेष अज्ञात । * महात्मा जसराजजी नागोरवालोंकी वसावलियोंसे उत्तारों कीनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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