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________________ भन्साली गोत्र. ... (८) भन्साली चडालीया भूरी भादाणी। .वा. लि. लोद्रवा पट्टनमे यादववंसी धोराजी राजा था उसके पुत्र सागर युग राजा था सागरकी माताको ब्रह्म राक्षस लागा. वि. सं. ११९६ में दादा जिनदत्तसूरि भाये राक्षसको निकाल राजाको जैन बना भन्साली जाति थापी पर राक्षसने दादाजीको मरणान्त कष्ट भी दीया था. - समालोचना–लोद्रवा पाट्टणमें पहला पँवारोका राज था जिसको देवराज भाटीने छीन लीया वि. स. ६०६ में देवराजने एक कीला बनाया अर्थात् देवराज भाटीसे लोद्रवामें भाटीयोंका राज कायम हुवा देवराज भाटीसे दादाज के समय तक लोद्रवामें धीराजी नामका राजा हुवा या नहीं इस बारामें इतिहास क्या कहता हैभाटी देवराज (९४९) | इस वंसावलिसे यह सिद्ध होता भाटी मुदाजी है कि यतिजीके लिखा समय लोद्रवा की गादी पर न तो धीराजी राजा भाटी वछुराव (१०३५) हुवा न सागर युगराजा हुवा न भाटी दूसाजी (११००) भन्सालीयोंसे चंडालीया साखा भाटी विजयराव निकली यतिजी स्वयं अपनि कीता बमे लिखा है कि रत्नप्रभसूरि १८ भाटी भोजदेव गौत्रोंके सिवाय सुघड चंडालीया भाटी जैसलराव (१२१२)| गोत्र बनाया था, केई केई ग्रामोंमे भन्साली तपागच्छके भी है हमारे पास इतनी सामग्री इस बख्त नहीं है कि हम निर्णय कर सके पर एसे प्रमाणशून्य लेख पर भन्साली कैसे विश्वास कर सकेगा. . . . . . . . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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