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________________ राखेचा. (४५) सिद्धराज जयसिंह ५६ लक्ष सोनइया करज ले सेठकी पद्वि दी यह भी गलत है कारण रांका वांकाके समय उक्त राजाका जन्म तो क्या पर पाटणका भी जन्म नहीं हुवा था. सुरांणा संखलों की ख्यातमें तो यतिजी लिखते है कि सिद्धराज जयसिंह एक जगदेव पँवारको साल भरका क्रोड सोनइया देता था उसे ५६ लाख सोनाइया गुजरातमें कोइ देनेवाला नहीं मीला की पालीमें सेठ पद्वि दे करजा लेना पडा. देखो रांकोकी वंसावली वल्लभीका भंग हुवा तब रांका वांका पाटणका राजा वनराज चावड़ाका बहुत आग्रहसे तथा जैनाचार्योंके उपदेशसे पाटणमें आया और वनराज चावडा उसे सेठ पद्वि दीनी. खरतर यतियोंकी जबरदस्ती देखिये जोधपुरके दफतरीयों ( बाफणों) ने संघ निकाला तब कमलागच्छीय आचार्यको आमन्त्रण कीया उनोंके न आने पर खरतर श्रीपूजको साथ लिये रहस्तामें उनकी क्रिया करने लगे। बस खरतरोंने अपनि छाप मार दी की दफतरी खरतर गच्छके है एसे ही वनाव कोरंटगच्छीय संखलेचोंने मन्दिरकी प्रतिष्ठा समय बनाथा. रांका वांका रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित कमलागच्छोपासक श्रावक है इनोंकी वंसावलियों सरसे आजतक कमलगच्छीय महात्माही लिखते है (१५) राखेचा पुंगलीया जाति । ___ वा० लि. जैसलमेरका भाटी राजा जैतसीका पुत्र कल्हणको कुष्ट रोग हुवा वि० स० ११८७ मे जिनदत्तसूरिने रोग मीटाके जैन बना राखेचा जाति स्थापन करी । श्रीपालजी कुच्छ और ही लिखते है. समालोचना-खुद जैसलमेरही वि. स. १२१२ में बसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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