________________
( ४६ )
लुणीया. है तो ११८७ मे जैसलमेरका राजा जैतसी कैसे सिद्ध होता है ? भन्सालीयोंकी समालोचनामे हम भाटीराजाओं कि वंसावलि दी है जिस्में कोइ जैतसी नामका राजा भी नहीं हुवा यतिजी गप्पोंकी भी कुच्छ हद हवा करती है यतिजी खुद अपनी कीताबमें लिखा है कि वि० स० १२१२ में जैसलमेर वसा है इस ख्यातमें लिखते है कि ११८७ मे जैसलमेरका जैतसी राजा था दरअसल राजा तनुभाटी जिसने तनोट वसाया जिसके ५ पुत्रोंसे राखेचा नामका पुत्रको वि० स० ८७८ में उपकेशाचार्य देवगुप्तसूरिने प्रतिबोध दे जैन बनाया इसकी ख्यात और वंसावलि विस्तारसे देखो " जैन जातिमहोदय" कीताबसे (१६) लुणियाजाति ।
वा० लि. मुलतान नगरके राजाका दीवान हाथीशाके पुत्रको साप काटा बाद जिनदत्तसूरि आये. उस दम्पतिको एक शय्यामें सुलाके उसी पडदामें दादाजी बेठे सांपको बुलाया सांपके मुंहसे वेदधर्मकी निंदा करवा कर विषोत्तार जैन बना लुणीया जाति थापी.
समालोचना-अबलतो यतिजीने मुलतानके राजाका नामही लिखा दूसरा दम्पति एक शय्यामे सुता हो उस पडदामे दादाजीका बैठना भी असंभव है सांप मनुष्यकी भाषासे वेदधर्म कि निंदा करे यह भी एक आश्चर्यकी ही बात है कहां कहां पर लुणिया लुकागच्छके भी है दर असल लुणीयोंका कोनसा गच्छ है इसका निर्णय इस समय मैं नहीं कर सक्ता कारण मेरे पास इतनी सामग्री नहीं है लुणीयोंको चाहिये कि वह अपनी जातिका निर्णय करे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com