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________________ ( ३८ ) जालौर के पँवारराजा पँवार राजा चंदन. 11 19 " ," 99 " देवराज. अप्राजित. विजल. धारावर्ष. ,, विशलदेव ( ११७४ ) कुंतपाल ( १२३६ ) 35 " बाफणा नाहाटा. 17 धाराके पँवार राजा वर्मा ( ११६४ ) यशोवर्मा (१९६२) जयवर्मा लक्षमणवर्मा ( १२०० हरिचन्द्र ( १२३६ ) इनके बाद जालौरपर चौहानों का राज रहा था. > धारा और जालौर दोनों राजाओं की वंसावलियों में जवन सच्चुका नाम तक भी नहीं है आगे रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित बा - फणा खरतर हो गया लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat अव्वलतो पहिले बाफणा जाति थी तो दादाजी को बाफणा बनाने की जरूरत ही क्या थी ? दूसरा एसा कोई कारण भी नहीं था की जवन सच्चुकी जाति बाफणा रखे । खेर ! हम पुच्छते है कि रत्नप्रभसूरि स्थापित बाफरणा खरतर हो गया था तो क्या जालौर में हुवा या सर्व मुल्कमें ? अगर हो भी गये हो तो उपकेश गच्छ में क्या न्यूनता और खरतरो में क्या अधिकता थी ? यतिजीने यह भी नहीं लिखा की रत्नप्रभसूरि स्थापित बाफणों कों जवन सच्चूकी माफीक कोई यंत्र मंत्र धनपुत्र विगैरह दिया ? अगर यंत्र मंत्र धनपुत्र भी दीया तो एकाद बाफरणा को दीया या सब मुलक के बाफरणा को ? मान लिया जाय कि सब बाफणा खरतर हो गया तो www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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