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बाफणा नाहाटा.
( ३९ ) फिर खरतरो में क्या न्युनता हुई की वह बाफणा फिरसे कमलागच्छ को मानने लग गया और आज भी मान रहे है ? श्रागे पृथ्वीराज चौहान का पिता का नाम वनराज और पितामह का नाम अजयपाल लिखा है यह भी मिथ्या है । पृथ्वीराज के बाप के नाम सोमेश्वर ओर दादाका नाम अरोराज था. आगे सावंत बाफणाने काबुलका बादशाह को छे वार घाघरा ओरणी चुडीयो पहनाई यह भी बिलकुल गलत है । नाहाटा जाति उस समय से होना भी गलत है कारण दादाजी का जन्म पहिले हजारो नाहाटा मोजुद थे. पृथ्वीराज के समय कीसी काबुलका बादशाहने दिल्लिपर हुमला नहीं कया था पर गीजनीका शाहबुद्दिनगोरीने हुमला कीया था अगर सामंत बाफणाने बादशाह को घाघरा चुडीयों पहना के बजारमें घुमाया होता तो पृथ्वीराज रासामें उसका नाम अवश्य लिखा जाता पर कीसी इतिहासकारोंने या वीररसपोषक भाटोंने सामंत का नाम तक नहीं लिखा है दर असल यतियों का लिखना हि मिथ्या है.
बाफरा के बारे में जेसलमेर अदालतका इन्साफ वि. स. १८९१ में जेसलमेर के पटवो ( बाफणों) ने संघ निकाला उस समय वीकानेरसे कमलागच्छीय श्रीपूज्य कक्कसूरिजीने अपने ११ यतियोंको बाफणोंकी वंसावलियों दे जेसलमेर भेजे। वहांपर वासक्षेपके समय खरतर श्रीपूज्यके और कमलागच्छयतियों मे तकरार हुई खतरा कहते है कि बाफणा हमारागच्छ में है वास्ते बासक्षेप हम देवेंगें तब कमलागच्छके यतियोंने कहा कि बाफणा
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