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________________ इत्यादि 31 जातियो के नाम लिख लेखकने शंका करी है कि ओसवालों को कोनसा वर्ण में लिखा जावे ? उक्त कीताबको पढतेही पीपाड के ओसवालों ने एक नोटिस उक्त लेखकको दीया हे कि पवित्र क्षत्रीवर्ण से बनीहुई ओसवाल जातिपर आपने मिथ्या आक्षेप कीया है इसे आप शीघ्रतासे वापीस खींचलो नहीं तो ओसवालजाति इस मिथ्या आक्षेपको कभी सहन नहीं करेगी इत्यादि / आशा है कि शर्माजी अपना--मिथ्या आक्षेपको पाच्छा हटा लेगा नहीं तो हमे आगे बढना होगा। ओसवालो ? आपने देखा होगा, पढा होगा, सुना होगा, की जाट क्षत्रीमहासभा " मालिक्षीसभा" मेण (सुनार)क्षत्रीसभा सुतार विश्वाकांकी संतान है कुंभारराजा प्रजापतिका संतान है ढेढ खास परमेश्वरके अंगसे पैदा हुवे. नाई इश्वरकी संतान है. मेणा भीलभी राजपुत्त बनने को तैय्यार है तब आप खास क्षत्रीयोसे ओसवाल बने हो जिसकि साबुति इतिहास दे रही है इतने परभी अज्ञलोक आपको शूद्रादि हलकी जातियोंसे ओसवाल बने हुवे लिखने को तय्यार होगये है / क्या आपमें जाति गौरव है ? क्या आपमें कुच्छ जीवन रहा है ? अगर रहा है तो अपनि पवित्र जातिका सत्य इतिहास लिख जनताके सन्मुख रखो कि मिथ्या लेख लिखनेवालेका मुंह खटा होजाय आगे स्थान अभाव / onance समाप्त. too-e0000 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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