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________________ 澌 कोचरमुत्ता. ( ६५ ) गोहने पकडली तब हरसोर का राजा सक्तसिंह निकालने को तलावमें गया उसे भी गोह पकडलीया उस समय दादाजीका एक साधु आके उन दोनों को बचा जैन बना पोकरणा जाति स्थापी । समा० दादाजीका स्वर्गवास १२११ में हुवा था जिसके कुच्छ समय पहिले यह घटना हुई होगीं वहां उस समय पुष्कर का तलाव ही नहीं था कारण मंडोरका प्रसिद्ध पडिहार नाहडरावने वि. सं. १२१२ में तलाव खोदाया था बाद केइ वर्षोसे गोहें पैदा हुई होगी जब दादाजी के समय तलाव ही नहीं था तो कोनसा श्रज्ञ पोकरणा इस गप्पों पर विश्वास करेगा ? दर असल रत्नप्रभसूरि स्थापित १८ गोत्रोंमे पांच वा मोरख गोलकी पोकरण एक साखा हैं दादाजीके १६०० वर्ष पहिले पोकरणा हुवा था पोकरणो का कमला गच्छ है । " ( ४० ) कोचर मुत्तोंके बारामें तो यतिजीने मानो एक गप्पो का खजानाही खोल दीया हैं कोचरोकों पहला उपकेश गच्छीया पीछे खरतर गच्छीया बाद तपागच्छी या लिखा है एक यह भी लिखा हैं कि वि. स. १०२४ में कोचरो के पूर्बजोने पाल्हनपूरमे दुकान करी थी इतिहास कहता है कि बिक्रमकी तेरहवी शताब्दी मे आबुका राजा यशोधवल पँवार का दूसरा पुत्र प्रल्हणने पालनपुर वसाया था तब १०२४ मे कोचरोने कैसे दुकान करी होगी दर असल वीरात् ७० वर्ष आचार्य रत्नप्रभसूरिने मोशीयो मे १८ गौल स्थापन कीया जिसमे १६ वा डिडुगौत्र की एक साखा कोचर है तथा मुनि ललित विजयजीने माबु तीर्थके बारामे एक कीताब लिखि जिसमें कोचरोंकी उत्पति ओशीयोंमें रत्नप्रभसूरि द्वारा हुई लिखि है इसीसे भी कोचरोंका गच्छ कमला है. ( ४१ ) मुनोतों के बारामे वा० लि० कीसनगढ के राव राजा रायमलजी के पुत्र मोह जी और पोचुजीको वि. स. १५९५ मे जिनचन्द्रसुरि ने प्रतिबोध दे जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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