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________________ श्रीमाल पोरवाड. बनाया जिस्मे मोहणजीका मुनोत और पांचुजी का पांचावत बाद विद्यासागरका उप- - देशसे मुनोत तपा होगया इत्यादि । __समा० अव्वलतो १५९५ में कीसनगढ था ही नहीं कारण जोधपुरका राजा उदयसिंह के १७ पुत्रो से कीसनसिंह नामका पुत्रने वि. स. १६६६ में कीसनगढ वसाया था तब १५६५ में कीसनगढ के मोहणजीको प्रतिबोधा लिख मारना गप्प नहीं तो क्या गप्पका बच्चा है ? दर असल जोधपुर के राठोडराजा रायपालजी के ११ पुत्रोंसे मोहणजी नामका पुत्र को तपागच्छ प्राचार्य देवेन्द्रसूरि ने प्रतिबोध दे जैन मुनोत बनाया इसका समय विक्रम संवत तेरहसौ के आसपासका है देखो जोधपुरवाले मेहताजीका खुर्शीनामा जोधपुर अजमेर कीसनगढादिके मुनोत आज भी तपागच्छोपासक श्रावक है (४२) श्रीमाल पोरवाडोंके बारामे यतिजीने गप्प मन्दिर के शिखर पर मानो एक ईडा चडा दीया है एसी रद्दी वातों के लिये कागद काला करना मानो अपनि प्रमूल्य टैमका बलिदान करना है दर असल यह वात इतिहास प्रसिद्ध हैं की पार्श्वनाथ प्रभुकी पांचवीं पाट पर आचार्य स्वयंप्रभसूरिने श्रीमाल नगरमे ६०००० घर जैन श्रीमालों (श्रीमालीयों) का और पद्मावती नगरीमे ४५००० घर जैन पोरवाडोका बनाया था बादमें आंचलगच्छ वालोंने श्रीमाल तथा हरिभद्रसूरिने पोरवाड जैन भी बनाया था वास्ते श्रीमाल पोरवाडौंका मूल गच्छ उपकेश ( कमला ) गच्छ ही है । (४३ ) वैद मुत्तोंके बारामें तो यतिजीने गप्प मन्दिर पर ध्वजादंड चढाके सर्वांगसुन्दराकार बना दीया है इस ख्यातमे पँवारोकी वंसावलि लिखी हैं जिसको पढके सामान्य अभ्यासबालोको भी हाँसी आये विगर नहीं रहेगा यतिजीका लिखा ऐतिहासिक ग्रन्थ पढनेसे सांफर मालुम होता है कि यतिजीको किंचित् भी इतिहासका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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