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________________ (२) पुस्तक परिचय. सवेत्ता विद्वानोंको क्षणभर मुग्ध होना पड़ता है. पर कमनसिब है जैन समाजका कि आज १५ वर्षमें कीसी साक्षर जैनोंने आपका सत्कार तक भी नहीं कीया क्या यह कम दुःखकी बात है ? आपका नामके साथ ' युक्तिवारिधि ' की उपाधि भी लगी हुइ है वह भी केवल नाम मात्र की ही नहीं किन्तु आपने अनेक युक्तियों रचके वारिधि (समुद्र) भर दीया जिस्में कतीपय युक्तियोंका परिचय इस ग्रन्थमें दे अपनी उपाधिको ठीक चरतार्थ कर बतलाई है आपने इस ग्रन्थमें जीतनी जातियोंका इतिहास लिखा है जिस्में स्यात् ही कोइ जाति कमनसिब रही हो कि जिस्में आपकी युक्ति न हों ! उन युक्तियोंमें जो जो चमत्कार है उन सबके अधिष्ठायक भी खरतराचार्यों को ही बतलाया है कारण एसे चमत्कारी प्राचार्य अन्य गच्छमें होना यतिजीकी बुद्धिके बाहार है यतिजीकी युक्तियों और चमत्कारका थोडासा नमूना तो देख लिजिये । (१) संचेति कटारीया रांका लुणिया संधि कटोतीयादि इन सब जातियोंके श्रादि पुरुषोंको सांप काटा था जिसका विष खरतरा चार्योंने उतारके जैन बनाये यहां पर इतना विचार अवश्य होता है कि अगर उन जातियोंवालोंको कदाच दूसरी दफे सांप काटा हो उसे कीसी गुस्साई जीने विष उतारा हो तो उनको गुस्साईजीके उपासक बनना पडा होगा एवं कीतनी वार सांप काटे और कीतनी वार धर्म बदलावे उनकी संख्या तो हमारे यतिजी ही कर सक्ते है अगर वह प्राचार्य नेपाल देशमें चले जाते तो लाखों करोडो श्रावक सहजमें कर सक्ते कारण वहां सांप बहुत है और बहुतोंको काटा करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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