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________________ ( २८ ) चोरडिया गौत्र. अर्थात् यतिजीका लिखा मिथ्या है उसी पट्टावलिमें एक बात और भी महत्वकी लिखी है वह यह है कि उपकेशाचार्य देवगुप्तसूरिकी बहेन सुगनीबाई खरतराचार्य जिनचन्द्रसूरिके पास दीक्षा ली थी बाद श्रावणपूर्णिमाके रोज जिनचन्द्रसूरि उस सुगनी साध्वी को राक्खीदे देवगुप्तसूर के पास भेजी साध्वी अपने भाई आचार्य को बन्दनकर राक्खी को आगे रखी, सूरिजीने कहा साध्वी यह राखी कीस बास्ते ? साध्वीने कहा आप हमारे संसार पक्ष के भाई वास्ते मे राखी बन्धनेको आई हुं सूरिजीने राखी ले के कहा कि में तुझको क्या देउं ? इसपर साध्वीने कहा कि आपके महाजनों का बहुत गोत्र है उनसे गुलेच्छा पारख बुचा सावसुखा एवं चार गोल हमको दे दिरावे ? इसपर उदारवृत्तिवाला श्राचार्यने उक्त चार गौत्र सुगनी साध्वीको राखीका दानमें देदीया यह जिक्र बीकानेर में विक्रमके सतरवी शताब्दीकी है अगर इस घटनाको सत्य मानली जावे तो एक वीकानेर के लिये ४ गोत्रदे भी दीया हो तो भी उनके मूलगच्छ तो उपकेशगच्छ (कमला) ही है । आगे भैसाशाहाका संघके बारामें यतिजीने कागद काला कीया है वि.स. १९७९ के आसपास में कोई भी भैसाशाह हुवा भी नही है इतिहासक सोधखोल से पत्ता भी लगा है कि चोरडियों में चार भैसाशाह हुवा ( १ ) वि. स. २०६ आभानगरी में भैसाशाह हुवा जिसकी एक दुकान मांडवगढमें भी थी भैसाशाहकी माताने शत्रुंजयका बड़ा भारी संघ निकाला इसके पास चित्रावेली थी ओशीयों मे स्नानमहोत्सव कर एक लक्ष अश्व एक लक्ष गौएं दानमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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