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________________ (३४) आर्य लुणावत. सिकंदर वि.सं. १५८२ | १५८८ में रुषतमखां बादशाह हुवाही नहीं है क्या मेहसरीयों मे इतनी उदामहमुदशाहा १५६२ । रता थी कि वह क्रोडो रुपैयोंका माल बहादुरशाहा १५६३ । ब्राह्मणों को देदीया और बादशाहा कों सुल्तानमहम्मुद १५६४ | खबर ही नहीं यतिजी ! गप्पोंकी भी कुच्छ हद हुवा करती है दर असल तपागच्छके महात्माओंका कहना है कि विक्रमकी बारह वी शताब्दी में चौहानराजपुतों को तपागच्छाचार्योंने प्रतिबोध दे लुंकड बनाया वास्ते लुंकडोंका गच्छ तपा है। (१०) आर्यगौत्र लुणावतसाखा । वा० लि. सिंधुदेशमें एक हजार ग्रामका राजा अभयसिंह भाटी को बि. सं. ११६८ में जिनदत्तसूरीने गोलीका फूल बनाया जलोपद्रव मिटाके जैन बनाया, राजाकी १७ वी पीढीमें लुणानामी हुवा जिससे लुणावत साखा हुई इत्यादि और यति श्रीपालजी वि० स० ११७५ में दादाजीसे आर्यगौत्र हुआ लिखा है.. समालोचना--अव्वलतो दोनों यतियोंका एक इतिहास होने पर भी २३ वर्षका अन्तर है दूसरा हजार ग्रामका मालक होनेपर भी राजाकी राजधानी या ग्रामका पत्ता नहीं है इतिहाससे वह सिद्ध नहीं होता है कि विक्रमकी बारहवी शताब्दीमें हजार ग्राम का मालक हिन्दुराजा सिंधमें स्वतंत्र राज करता था! न जाने यतियोंने कोनसा गप्पपुरांणसे यह लेख लिखा होगा । इतिहास कहता है कि वि. सं. ७६८ में खीलाफा वलंद के समय महम्मुद कासमने सिंधपर चढाइ करी थी उस समय सिन्धमें पालौर राजधानी का दाहीर नामका राजा को मुशलमानोंने मार डाला और आलौर का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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