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(१६) जैनधर्मोपासकोंने आर्य कला-कौशल्य कों दीया हुवा उत्तेजन का वर्णन ।
(१७) जैनाचार्यो का देशाटन से पशुहिंसा बन्ध और 'अहिंसा परमोधर्म' का प्रचार से देश की उन्नति और पशुधन पालन से देश को अनेक फायदा ।
(१८) जैनाचार्योने अनेक विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखके करी हुइ साहित्य की उच्च कोटी की सेवा का वर्णन ।
(१९) जैनाचार्योंने अनेक राजा-महाराजाओं की सभाओं में शास्त्रार्थ कर सत्य धर्म का प्रचार और विजयपताका का वर्णन ।
(२०) जैनधर्मोपासकोंने अनेक उपद्रवो में क्रोडो रुपैये खरच के जनता के हित के लिये कराइ हुइ शान्ति का वर्णन |
(२१) जैन धर्म पर वर्तमान कीतनेक अज्ञ लोग व्यर्थ आक्षेप करते है. जैसे-जैन निर्बल है, जैन कायर है, जैन शाकभाजी के खानेवाले है, जैन गंधी हुइ गटर है, जैन काला नाग है, हिन्दुस्तान की गीरती दशा का कारण जैन ही है इत्यादि. इन सब आक्षेपों का सप्रमाण सभ्यतासे दिया हुवा उत्तर का वर्णन ।
उपरोक्त २१ विभाग में यह “जैन जाति महोदय" नामक कीताब समाप्त की जायगी. जैनों के सिवाय अन्य जातियों का गौरव जो हमे मीला है या मीलेगा वह भी निष्पक्षदृष्टि से इस किताब में दर्ज कर दीया जायगा।
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